।। राम राम सा ।।
पुरुष बिचारो के करै ,जे घर मैं नार कुनार।
बो सिंमै दो आंगली बा फाड़ै गज च्यार।।
२ एक सेर की सोला पोई ,सवा सेर की एक।
बो निगोड्यो सोला खायगो ,मैं बापड़ी एक।
३ इसी रांड का इसा ही जाया ,
जिसी खाट बीसा ही पाया।
४ कांसी कुति कुभरजा ,अण छेड़ी कूकन्त।
५ चाकी फोड़ूं चूल्हो फोड़ूं ,घर कै आग लगाउंगी।
चालै है तो चाल निगोड्या ,मैं तो गंगा नहाऊँगी।।
6. लूखा भोजन मग बहण, बड़का बोली नार।
मंदर चुवै टपूकड़ा पाप तणा फल च्यार।।
७. धान पुराणों घी नयो ,आज्ञा कारी नार।
पथ तुरी चढ़ चालणों ,पुण्य तणा फल च्यार।।
८. साठी चावल भैस दूध ,घर सिलवन्ती नार।
चौथी पीठ तुरंग री ,सुरग निशाणी च्यार।।
९. इज्जत भरम की कमाई करम की लुगाई सरम की।
बुधवार, 22 मई 2019
राजस्थानी कहावते
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें