गुरुवार, 9 मई 2019

राजस्थानी चित्रकला (मोड़) देवकोठा

राम राम सा
मित्रो राजस्थान मे शादी के रीतिरिवाजों मे अब पहले से कुछ अलग रस्मे जरूर हो रही है । पर आज मै मारवाड़ की चित्रकलाओं के बारे मे बता रहा हुँ।  जिसमे अलग अलग समाज के अलग-अलग रीति रिवाज है । जिस घर मे शादी होती है वो कुछ दिन पहले लिपाई सफेदी ओर मान्डणा से घर को सजाते है । पहले कच्चे रंगो का इस्तेमाल किया जाता था अब  पक्के रंगो का इसेमाल करते हैं।  मारवाङ की अनूठी और सतरंगी संस्कृति में हर त्यौहार , हर रीति - रिवाज और समारोह के अपने मायने है  अपने रंग है , चित्रकला अपनी खूबसूरती की पहचान है 
    जिनके घर मे ब्याह होता है वो अपने रिस्तेदारो को आमन्त्रित करते है । शादी की  इन रस्म में दूल्हा और दुल्हन के दादा , दादी , माँ , पिताजी , भाई , भाभी , बहिन , बहनोई , पूर्ण ननिहाल , दोस्त , सहेली के साथ - साथ हर सामुदायिक व्यक्ति का जुङाव और अपनी - अपनी ठसक  लाडकौड अपने चरम पर होती है !
  वैसे शादी मे  गणेश स्थापना पाट  से लेकर विवाह के बाद देवताओ की जात देने तक बहुत सी रस्में हैं , जो अपने आप में हँसी , ठिठोली और समाज की एकता का प्रतीक होती है !
इनमें से एक परम्परा है । जो बिन्द और बिन्दणी दोनो के घर चित्रित किया जाता है । जिनको अलग-अलग क्षेत्रो मे अलग-अलग नामो से पुकारते है मोड़  (देवगण) ( देवाकोठो) । बींद बींदणी दोनों के घर पर कुछ परिवर्तनों के साथ इसे चित्रित किया जाता है !
     आज इन्हें देखकर कुछ यूँ लगता है कि ये छोटा - मोटा वैवाहिक एलबम सा बना होता है ! मोड़  एक आयताकार या वर्गाकार चित्ररूप है , जिसको घर के किसी खुले कमरे  की दिवार पर  मांडा जाता है ! इसके बाँयें हाथ की ओर से देखने पर दो मोङ ( बींद - बींदणी के सिर पर बाँधा जाने वाला सेहरा ) अँकित होते हैं ! जिनके सामने बैठकर जुए जुए खेलना रस्म अदा की जाती है ,चाँद व सूर्य चित्रित हैं , जो प्रकृति व सनातन काल से चली आ रही परंपरा को इँगित करता है । मोड़ के निचे बिन्द बिन्दणी  व चंवरी चित्रित करते है।
       बिन्द के घर पर चित्रित मोड़  व बिन्दणी  के घर पर चित्रित मोड़  में कुछ भिन्नता होती है ! विन्दणी के मोड़ पर चँवरी चित्रित होती है और बिन्द के घर पर मोड़ मे थाली चित्रित करते  है मोड़  के चारों और फूल - पत्तियाँ चित्रित होते हैं ! अब तो बाजार मे ब्रस मिल जाते है पहले तो धागा रूई व लकड़ी के पतले हिस्से से ही ब्रस बनाते थे।  
     ये चित्रकला राजस्थान  की नारियाँ इसे बङे चाव से बनाती है ! आजकल ये मोड़  भी रेडीमेड मिलने लगे हैं  क्योकि लोग अपने मकानो मे ये चित्रकला बनाकर दीवार खराब करना नही चाहते हैं , जिनसे कि नव पीढी की बालिकाएँ इस अनोखी और सरस विरासत से वंचित सी हो रही हैं !            

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