।। राम राम सा ।।
मित्रो आज कल मारवाड़ मे लू के थपेड़ों और सूरज के कोप से तवे की तरह तप रहा है, मेरे गाँव व आसपास के गांवो मे कैर सान्गरी पिलू आने लगे है ।
पाणी की कमी होने के बाबजूद भी मारवाड़ की वनस्पतियां ,हमे अमूल्य मेवे देती हैं, सब्जियां की भरमार पैदा देती है। धन्य है ये मारवाड़ के रूखड़े ।
मित्रो इन दिनों जालें सरस और गुड़ी हो गयी है, उन पर नई कोंपल आई है, मिंमझर के गुच्छों में रंग रंगीले पीलू आने लगे हैं, लू जहाँ इंसानों के लिए कहर है पर पीले के पकने के लिए महर हैं, लाल पीलू, हरे पीलू, सेडिये रंग के पीलू, एक ही रंग की जालें, पर कुदरती करिश्मा कि पीलू का रंग अलग अलग है, पीलू चुगने का मजा ही अनोखा है, कमर पर लोटा बांध जाल की डाल पर संतुलन बनाकर मासूम पीले को तोड़ने की कला हरेक के पास तो नहीं होती है, पीलू के फिसने का भी तो रहता है, यह पीलू सुखकर कोकड़
बनती है, इससे भी मदमाती मदिरा भी बनाई जाती है।
वैसे कोकड़ खाने की भी कला आनी चाहिए।कोकड़ खाणा हर किसी के बस की बात नहीं है
खैजड़ी तो खुशहाल है इन दिनों। उस पर मिंमझर के साथ छोटे छोटे टोइये यानि छोटी सांगरीयां लग गई है, अब तो फूलने और फलने के भाव से लजाती लांण खेजड़की झुकने लगी है, सांगरी सदाबहार और स्वादिष्ट सब्जी है, सुखने के बाद रायते के काम आने वाली है, पंचकुटे और सतकुटे में सजेगी।
लू के लपटें इसको भी सुखाकर खोखा बना देगी।
कैर भी कम नहीं है, उसने भी लाल फूलों की चुनरी औढ़ ली है, बाटा बोहराने लगा है, हरे कैरिये बनने लगे हैं और कुछ कुछ तो मीठे मीठे रसीले लाल ठालू यानि पाका बन गये हैं।
कैर का स्वादिष्ट अचार से सभी वाकिफ हैं।रोहिड़ा की पतियां तो झड़ गयी है, सिर्फ लाल पीले फूलों से लबालब है, यह थार का सागवान। थार के रेतीले धोरों पर रोहिडा के फूलों की बहार थार में आग लगने का अहसास करवा देती है।इसलिए तो इसे थार की आग कहते हैं।
कूमट तो हमेशा से ही करड़े रहे हैं, इन दिनों भी फले हूए है, चापटिया लगने लगे हैं, गोद की गंध से सराबोर हो रहे हैं कुमटिया ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें