।। राम राम सा ।।
मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज ।
मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥
बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक ।
गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख॥
दादोसा पुचकारता दादा करता लाड ।
पीसाँ खातर आप जी दियो दिसावर काढ।।
मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप ।
जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप॥
जद सूँ परदेसी हुयो भूल्यो सगळा काम ।
गांवा रो हंस बोलणौ कीयाभूलूराम ॥
गरजै बरसै गांव मै चौमासै रो मेह ।
सेजा बरसै सायनी परदेसी रो नेह ॥
कुणचुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात ।
रात हमेशा आवती रात नै आयी रात॥
आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत ।
मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत ॥
दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम ।
च्यार पहर री रात आ कीयाँ ढळसी राम॥
सांपा री गत जी उठी पुरवाई मँ याद ।
प्रीत पुराणै दरद रै घांवा पडी मवाद॥
नैण बिछायाँ मारगाँ मन रा खोल कपाट ।
चढ चौबा रै सायनी जोती हुसी बाट॥
प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ ।
दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ॥
पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम ।
उपर लिखदे पीव रो नीचै म्हारो नांम॥
दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम ।
इण कातिक तो आ घराँओ!परदेसी राम॥
जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव ।
म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव॥
जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक ।
म्हारै घर रै आंगणै कदै न देख झांक॥
मैडी उभी कामणीकामणगारोफाग ।
उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥
बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर ।
जब अम्बर मँ बादळी घिर तालो राँ लोर॥
बाबल रै घर खेलती दरद न जाण्यो कोय ।
साजन थारै आंगणैउमर बिताई रोय ॥
बाबल सूंपीगायज्यूँ परदेसीरै लार ।
मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार ॥
नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास ।
सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास॥
सुस्ताले मन पावणा गांव प्रीत री पाळ ।
मिनख पणै रै नांव पर सहर सूगली गाळ॥
सहर डूंगरी दूर री दीखै घणी सरूप ।
सहर बस्याँ बेरो पडै किणरो कैडो रूप॥
खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम
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