बुधवार, 22 मई 2019

मै परदेशी दरद हूँ तू गाँवा री मौज


।। राम राम सा ।।
मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज ।
मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥

बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक ।
गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख॥

दादोसा पुचकारता दादा करता लाड ।
पीसाँ खातर आप जी दियो दिसावर काढ।।

मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप ।
जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप॥

जद सूँ परदेसी हुयो भूल्यो सगळा काम ।
गांवा रो हंस बोलणौ कीयाभूलूराम ॥

गरजै बरसै गांव मै चौमासै रो मेह ।
सेजा बरसै सायनी परदेसी रो नेह ॥

कुणचुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात ।
रात हमेशा आवती रात नै आयी रात॥

आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत ।
मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत ॥

दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम ।
च्यार पहर री रात आ कीयाँ ढळसी राम॥

सांपा री गत जी उठी पुरवाई मँ याद ।
प्रीत पुराणै दरद रै घांवा पडी मवाद॥

नैण बिछायाँ मारगाँ मन रा खोल कपाट ।
चढ चौबा रै सायनी जोती हुसी बाट॥

प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ ।
दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ॥

पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम ।
उपर लिखदे पीव रो नीचै म्हारो नांम॥

दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम ।
इण कातिक तो आ घराँओ!परदेसी राम॥

जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव ।
म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव॥

जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक ।
म्हारै घर रै आंगणै कदै न देख झांक॥

मैडी उभी कामणीकामणगारोफाग ।
उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥

बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर ।
जब अम्बर मँ बादळी घिर तालो राँ लोर॥

बाबल रै घर खेलती दरद न जाण्यो कोय ।
साजन थारै आंगणैउमर बिताई रोय ॥

बाबल सूंपीगायज्यूँ परदेसीरै लार ।
मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार ॥

नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास ।
सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास॥

सुस्ताले मन पावणा गांव प्रीत री पाळ ।
मिनख पणै रै नांव पर सहर सूगली गाळ॥

सहर डूंगरी दूर री दीखै घणी सरूप ।
सहर बस्याँ बेरो पडै किणरो कैडो रूप॥

खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम

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