मंगलवार, 16 जुलाई 2019

गुरु पूर्णिमा 2019

राम राम सा
हमारे माता पिता हमारे सब से बड़े गुरु है जिन्होने हमे जीवन जीना सिखाया .हमारे लिये अपने जीवन की सारी पूँजी हम पर लुटा दी .हमारे लिये जिये ,हमारे सुख,चैन के लिये अपना आराम ,अपना सुख चैन भूल गये .हम सदैव उनके ऋणी रहेंगे .हमारे शिक्षक, जो ज्ञान का भंडार हम पर लुटाते रहे ,हमारे व्यक्तित्व विकास मे सर्वोपरि सहायक ,हमारे जीवन के शिल्पकार हमारे शिक्षक ,उन्हे हमारा सादर प्रणाम
मित्रौ एक बात और  है हम अपने व्यवसायिक जीविकोपार्जन खेती व्यापार या अन्य क्षेत्र में स्थापित होने के लिए हमको जिस किसी ने  गुर  सिखाये है। उनको भी एक श्रेष्ठ गुरु की शिक्षा से कम नहीं आंका जा सकता है। सभी को हर समय उनको कभी नही भुलना  चाहिये।राम राम सा
गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर हमारे गुरुजनों को हमारा सादर नमन । और सभी देशवाशियों को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें
मित्रो हमारे देश मे ही नही बल्कि पुरे विश्व मे आज भी गुरु का आदर सत्कार किया जाता है। लेकिन, गुरु के रूप व महत्व बदल गये हैं। गुरू के स्वरूप कई प्रकार के माने जा सकते हैंं।
एक वह गुरु, जो धर्म-कर्म की रीति रिवाज के अनुसार, उस समाज के बनाए हुए नियमों के अनुसार बनाये जाते हैं।
दूसरे गुरु जो स्कूली शिक्षा प्रदान करने नियुक्त किए जाते हैं। पौराणिक समयों में यह दोनों गुरुजन एक ही होते थे। जब सम्पूर्ण आश्रम व्यवस्थाएँ होती थीं। जिसे गुरुकुल भी कहा जाता था और गुरु, कुलगुरु हुआ करते थे।आज भी वह शिक्षक जो पहली कक्षा के बच्चे को हाथ पकड़कर लिखने की कला और उच्चारण करते हुए पढ़ने की शिक्षा दे, शास्त्र गुरु और श्रेष्ठ गुरु माना जाता है।
स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के अध्ययन हेतु, विद्यार्थी आज के औद्योगिक, व्यापारिक प्रबंधन में प्रवेश लेता है। तो उन्हे वहॉं, एक और गुरु मिलता है। आज इनके नाम अध्यापक, लेक्चरर, या प्रोफेसर कुछ भी हों।
पौराणिक कालों में यही शिक्षा गुरु-कुलों में दिया जाता था। जो एक प्रशंसक व श्रेष्ठ राजा तक तैयार कर देता था।
गुरु: ब्रम्हा गुरु: विष्णु,
गुरु: देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परब्रह्म,
तस्मै: श्री गुरुवे नम:।।
अर्थात् गुरु ही ब्रम्ह स्वरूप है, जो परब्रह्म से साक्षात्कार कराते, गुरु ही विष्णु स्वरूप भगवान् के रूप हैं। गुरु ही शिव स्वरूप साक्षात् परब्रह्म है। और हम ब्रम्हा से शुरू होकर पुन: परब्रह्म में पहुंच जाते हैं। अत: गुरु को ही करें सभी रूपों में नमन। इसे अलग-अलग धर्म और संस्कृति के अनुसार समझा जा सकता है।
गुरू से हमारे रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे मां-बेटे का, पिता-पुत्र का। एक गुरु द्वारा बतलाया गया ज्ञान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। वह कभी ना कभी, जीवन के इस सफर में काम जरूर आता है। यह ज्ञान, गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और भक्ति रखने हमें प्रेरित जरूर करते रहता है।

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