शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

पक्षियो के घटते घर

राम राम सा
मित्रो आज इन्सानो ने विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र मे इतनी तरक्की कर ली है कि आज का इंसान एक दिन में पुरी दुनिया की सैर कर सकता है। लेकिन उतना ही उसके भीतर हिंसा, वैर-विरोध, शोषण की भावना भी  बढ़ गई है।
आज पूरी दुनिया ने बहुत तरक्की कर ली है सभी प्रकार के सुख सुविधाओं के साधन हैं लेकिन दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है
कि हम आजकल प्रकृती के अनुरुप नही चल रहे हैं। गत सौ सालो के आंकड़ों की गणना के अनुसार जनसँख्या मे बढोतरी सिर्फ इन्सान की हुई है पशुओं  पक्षियों व अन्य जन्तुओ की संख्या मे भारी कमी हुई है
इसका मुख्य कारण है मानवजाति का पशु-पक्षियों के प्रति अत्याचार। 
   मित्रो ज्यादा पुराने समय का तो मुझे पता नहीं है लेकिन मेरे देखते हुये इन पच्चीस तीस  वर्षों मे जो बदलाव आया है। उनसे वहुत कुछ फर्क पड़ा है पहले हमारे  घर भी पक्षियों के लिए अनुकूल बने हुये थे।इंसानों के प्राकृतिक आवास से पक्षियों  को इतना खतरा नहीं था।पहले लोगों के घर कच्चे होते थे । ये कच्चे आवास घास फूस तथा लकडिय़ों से बने होते थे।इनमें रूप से झोंपड़ो, पोळे ,ओळे , तथा कोटड़ियों  में पक्षियों  के बसने तथा घोंसलें बनाने में आसानी होती थी।इन झूपड़ियों के वळों में',कैन्सियो में ,छाजो में,सोंपड़ियों में चिड़ियों को अपने माळे (घर) बनाने में आसानी होती थी,मानव  के नजदीक रहने वाले अनुकूल पक्षी इन झूपड़ियों में भारी संख्या में माळे बनाकर अपनी संतानोत्पत्ति करती थी,अपनी वंशवृद्धि करती थी,अपने शत्रुओं से अपने अंडों तथा बच्चों की सुरक्षा भी पक्की करती थी।
बचपन मे हम झुन्पड़ो ,ओरो, पोळौ,ओळो कोटड़ियों में सैकड़ों पक्षियों के माळै देखते  थे। बाजरा पकते समय व लाटा लेते समय  हम इन चिडियों को उड़ाते थे। घरो में हर समय चिड़ियों की चहक गुंजती थी।
अब हमारे गाण्वोमे भी सब  मकान पक्के हो गए है,कच्चे झूपड़ों ,चपरो पोलो ,कुढ़ालो को बिखेरकर पक्की कंक्रीट की बिल्डिंग बना रहे हैं तो अब कुछ चिड़ियों से ,जो मनुष्य के आस-पास घरो मे रहती थी ,उनके आवास भी छिन गये  है,अब इन पक्के मकानों में कही खड्डा या छोटे आळै,सूराख भी नहीं रखते हैं कि ये मानव प्रेमी पक्षी अपने  घर (माळै) बनाकर अपने संतान पैदा कर अपने वंश को बचा सके। पेड़ तो पहले से ही कम हो गये हैं ।  कच्चे आवासों को पक्के आवासों में बदलकर इन पक्षियों  के लिए माळै बनाने की जगह नहीं छोड़कर हम दरिंदे तो  बन चुके है। इसके अलावा एक सबसे बड़ा कारण है बुवाई के लिये उपयोग किया गया जाने वाला बीज के साथ  कीटनाशक का प्रयोग। 
ज्यादतर पक्षी बीजों में मिले कीटनशाकों की वजह से मारा जा रहे है, किसान खेत में बीज बोते है वो अगर पक्षी खा जाते है  और मरते भी है ।
वहीं पर्यावरण को स्वच्छ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला गिद्ध जैसा पक्षी पशुओं को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा की वजह से मौत का शिकार होकर आज विलुप्त हो गया है । गिद्ध मरे हुए पशुओं का मांस खाकर पर्यावरण को साफ रखने में मदद करता था  लेकिन उसका यह भोजन ही उसके लिए काल का संदेश ले आया।
पशुओं को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा गिद्ध के लिए जानलेवा साबित हुई । 
पक्षियों से रिश्तों की याद तो हमे बहुत आती है । बचपन मे जिसमें सूरज निकलने के पहले से लेकर उसके डूबने तक छोटी-छोटी चिड़िया घर मे  चहकती, फुदकती रहती थीं। एक बार बचपन मे हमने एक छोटी गौरेय्या  चिड़िया को पकड़ कर रन्ग कर दिया था तो दादा जी ने बहुत डाँटा था । 
मित्रो  गौरेया के अलावा घर मे पिन्चे कमेड़ी कबूतर भी हमारे घर के आंगन में चहचहाते रहते थे। आज भी गौरेया और उस जैसे अन्य पक्षियों को घर-आंगन में देखते तो है । जब हम पक्के मकान बनाकर पक्षियो के आवास के लिए जगह नहीं रखेंगे तो पंछी कहाँ से दिखेंगे।
शहरो मे अब आज के बच्चों को गौरैया या अन्य पक्षियो को दिखाने के लिए किताबों में छपे चित्र ही दिखाने पड़ते हैं। पक्षी कभी हमारे जीवन का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन अब वे हमसे दूर होते जा रहे हैं। बढ़ते शहरीकरण,औद्योगीकरण या फिर इन सबका मिला-जुला कारण जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हमारे आसपास के वातावरण पर इतना गहरा होता जा रहा है कि अन्य अनेक नैसर्गिक देनों के साथ-साथ अनेक पंछी भी हमसे दूर होते जा रहे हैं।
जिन पक्षियों को हम पहले हररोज अपने आसपास देखते थे  लेकिन आने वाले समय में  उन्हें देखने-सुनने के लिए चिड़ियाघरों का रुख करना पड़ेगा । पक्षियों की भी अनेक प्रजातियों का अस्तित्व अब ख़तरे में दिखाई दे रहा है।
बचपन मे हमारे घरो के आस-पास  मे गौरया,कालचिड़ी, कौए,मैना, कठफोड़वा, बुलबुल,( पिन्चा)  लैला, नीलकंठ, बया, टिटहरी, तीतर, बगुला, तोता, कबूतर आदि बहुत थे जो  अब कम ही दिखाई देते हैं।
गाँव मे  जब गिद्ध मडराने लगते थे तो पता चल जाता था की आज गाँव मे  किसी की कोई गाय या भेंस मर गई है ।  
पर्यावरण को साफ और रोग मुक्त रखने में गिद्धों की अद्भुत भूमिका थी । गिद्धों का बड़ा  झुण्ड एक जानवर के शव को मुश्किल से दो मिनट में पूरी तरह साफ कर देते थे। गिद्ध के गायब होने से हम कई तरह से प्रभावित हुए हैं और होंगे। ये प्रकृति के अत्यंत कुशल सफाईकर्मी थे। इनके अभाव और अनुपस्थिति में गावों में पशुओं के शव आज महिनो तक सड़ते रहते हैं ।
समूची सृष्टि में इंसानों, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं के आपसी गहरे संबंध हैं। ऐसे में किसी भी जीव, पेड़-पौधे का विलुप्त होना यही बताता है कि जल्द ही मानव जाती का अन्त होना निच्चित है

गुमनाराम पटेल सिनली

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