।। राम राम सा ।।
घर आओ नीं सायबां , बादळ बरसे भोत ।
थांरै आयां मौल है , बिन आयां है मौत ।।
धरती अंबर जोट है , दोन्यूं एकम ऐक ।
आओ अब तो राखल्यो, गठजोडै़ री टेक ।।
घणों कमायो सायबां , अब छोडो परदेस ।
बादळ बरस्या मोकळा, जोबण देखो ऐस ।। काया बळगी जेठ में, चाली लूंआं भोत ।
सावण बरसे ऐसकै, मिटे हैं सगळी छोत ।।
आ काया तो दाझणीं, बिन्यां सांकडै़ कंत ।
थे आवो जी सायबां , नीं तो नैडो़ अंत ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें