*खरी खरी बात*
*'मारवाड़ी' लोगां की देखो, हालत हो रही माड़ी।*
*अस्त व्यस्त व्यपार हुयो, पटरी सूं उतरी गाड़ी।।*
*पटरी सूं उतरी गाड़ी, नही काबू मे आवे।*
*कमाई तो कमती हुगी, खरचो रोज बढ़ावे।।*
*कई साल पहला तक सगळा, आछी करी कमाई।*
*मारकेट मे रहता और, बासे री रोटियां खाई।।*
*बासे री रोटियां खाई पण, चोखी मौज मनाता।*
*साल में दो बार गाँव री, मुसाफ़री कर आता।।*
*जके दिन से गाँव सु, फैमेली अठे लाया।*
*उण दिन सु ही खुद रे हाथा, खुद रा पाँव कटाया।।*
*खुद रा पाँव कटाया, मति गई थी मारी।*
*लुगायाँ ने सूरत-मुंबई रो, चस्को लाग्यो भारी।।*
*बैंका सूं लेकर के लोन, अठे फ्लैट मोलाया।*
*कोई लिया 'बेंगलोर' मे तो, कोई 'सूरत' आया।।*
*कोई 'बम्बोई' आया बां की, किस्ता भरणी भारी।*
*ई मन्दी के मायने तो, अकड़ निकल गई सारी।।*
*अणुता पैसा वाला रे, कमी नही है भाई।*
*प्रॉपर्टी है घर की बे, भाड़ा सूं करे कमाई।।*
*भाड़ा सूं करे कमाई, बां के फरक नही पड़ेला।*
*ओछी पूंजी वाळा ही, ई मन्दी में झडेला।।*
*घर दुकान दोनु भाड़े रा, वे सगळा सूं दोरा।*
*धंधो बिलकुल ठप पड्यो है, कियां होवे सोरा।।*
*कियां होवे सोरा या ही, चिंता फिकर लागी।*
*पाछा गांव जाणे री भी, अब तो मन में आगी।।*
*गांव चालण रो केवे जद, लुगायाँ आँख दिखावे।*
*करे रूप विकराल और फिर, रणचण्डी बण जावे।।*
*कहे कवि अब तो उड़ने लाग्या होश।*
*आप गमाया कामणा, अब कुण ने देवा दोस ।।*
*सगळा न खम्मा घणी*
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