सोमवार, 3 सितंबर 2018

कृष्ण जन्माष्टमी 2018


।।राम राम सा।।
।।जय श्री कृष्णा ।।

मित्रो जन्माष्टमी को श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इनका जन्म देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में मथुरा में हुआ था|
उन्होंने मथुरावासियों को निर्दयी कंस के शासन से मुक्ति दिलाई इतना ही नहीं महाभारत के युद्ध में पांडवों को जीत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई थी ।
पौराणिक ग्रथों के अनुसार भगवान विष्णु ने इस धरती को पापियों के जुल्मों से मुक्त कराने के लिए भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिए था।
श्रीकृष्ण ने माता देवकी की कोख से इस धरती पर अत्याचारी मामा कंस का वध करने के लिए मथुरा में अवतार लिया था इनका पालन पोषण माता यशोदा ने किया। श्रीकृष्ण बचपन से ही बहुत नटखट थे उनकी कई सखिंया भी थी

जन्माष्टमी अलग अलग शहरो मे अलग-अलग तरीक में मनाई जाती है। कई जगह इस दिन फूलों की होली भी खेली जाती है तथा साथ में रंगों की भी होली खेली जाती है। शहरो मे जन्माष्टमी के पर्व पर झाकियों के रूप में श्रीकृष्ण का मोहक अवतार देखने को मिलते है। मंदिरो को इस दिन काफी सहजता से सजाया जाता है। और कई लोग इस दिन व्रत भी रखते है। जन्माष्टमी के दिन मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को झूला झूलाया जाता है। जन्माष्टमी हमारे गाँव सिनली  में भी बहुत ही हर्षोल्लास से मानाया जाती है। रात्रि  जागरण होता है जिसमे गाँव के बच्चो से लेकर बुजुर्गों तक सभी लोग ठाकुरजी के मन्दिर में आते हैं ।जागरण  का आनन्द लेते हैं 12 बजे तक प्रोग्राम होता है बचपन मे जब छोटा था  तब मै भी अपनी दादी के साथ हर वर्ष जन्माष्टमी को ठाकुर जी के मन्दिर में जरुर जाता था । जागरण के लिये नही जाता था सिर्फ कब रात के  12 बजे और कब बाल गोपाल की रोने की आवाज सुनाई दे । ठाकुर जी के मन्दिर के मठाधिश छोटे बाल गोपाल के रोने की आवाज निकालते थे । आवाज सुनकर हम इतने  खुश हो जाते थे की आजकल के बच्चे को dj song लगाकर मोबाईल देने पर भी नहीं होते है ।उसके बाद हमारा काम प्रसाद खाने का होता  था फुल्ल प्रसाद मिलती थी लोग थालिया भरभर कर प्रसाद लाते थे क्योकि गाये भी बहुत थी दुध घी की कोई कमी नहीं थी वैसे दुध तो आज भी होता ही है पर ढोल वाले सुबह जल्दी ही आ जाते हैं घर मे बच्चो को पिलाने के लिये भी पानी के लोटे  को भरकर डालना पड़ता है तब कही जाकर एक लोटा भर दुध बचता है और उन मे से चाय भी तो बनानी पड़ती है। फिर बचा हुआ दुध बच्चो को नशीब होता है ।माखन का जमाना तो गया गाँव के कुछ ही बच्चे देख सकते हैं। शहरो मे तो सिर्फ माखन के फोटो ही देख सकते हैं।  अब लिखने को तो बहुत है पर रात के 12 बज गये है तो सभी देशवाशियों को कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें