शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

तालाब अब पहले जैसे नहीं रहे है ।

।।राम राम सा।।

मित्रो देवझूलनी ग्यारस और समंद हिलोरना एक त्योहार है।अब तालाब पर सभी  गाँव वालो को एकत्रित करने का बस येही एक पर्व बसा है । समंद हिलोराने के लिये भाई अपनी बहिन के घर आता है और तालाब पर अपनी रस्म अदा करता है पर अब गाँवो के तालाब ना होकर खड्डे मात्र रह गये है ना तो गाँव वाले ध्यान देते ना ही प्रसासन । लेकिन अब  कंहा झूलें "ठाकुरजी " और कैसे हिलोरें "समंद । कई गाँवो के नाडी तालाबों में तो पानी छोड़ कादा भी नहीं,,मगर परंपरा निभानी है तो पाइप से पानी डाल कर नहीं तो टैंकर डलवा कर भी ये रस्म अदा  तो करनी पडती  है,, नलकूप के नीचे झूलते ठाकुर जी और टखने तक कीचड़ में समंदर हिलाते भाई बहन,, भीड़ के बीच नजारे को मोबाइल से सोशल मीडिया पर लाइव चलाते युवा,,वाह भाई ,शानदार,नाइस, सुपर्ब के रिप्लाई लाइक कमेंट पाकर बड़े खुश होते है ,,,,आजकल का माहोल देख कर  हमे शर्म के साथ ग्लानि महसूस होती है,,सोच कर बड़ा दर्द होता है,,हम पढे लिखे डेढ हुशियार लोग कैसा विकास कर रहे हैं,,सजी धजी औरतें डेकोरेटिव कलश उठाए पंक्तिबद्ध गढ्ढे रुपी तालाब की परिक्रमा कर रही है,, कलरफुल नजारा बड़ा सुंदर है दिखावा बहुत है, खर्चा हजारों का कर रहे लेकिन परम्परा क्यों शुरू हुई, क्या महत्व है इसको कोई समझना नहीं चाहता,,बस परम्परा निभानी है, फॉरमल्टी पूरी  कर दी जाती है,,हमारे दूरदर्शी बुजुर्गों द्वारा हर परिवार के लिए अनिवार्य ये समंद परम्परा इसलिए शुरू की गई कि हम नाडी तालाबों की उपयोगिता समझें,,कितनी मेहनत से उन्होंने हाथों से खुदाई कर हर गाँव हर कांकङ में तालाब खोदे,, परंपरा के माध्यम से आने वाली  पीढ़ी जलस्रोतों से जुड़ी रहे इसलिए त्यौहार का रूप दिया। जब हम गायो को पानी पिलाने के लिये और नहाने व पीने का पानी  लेने दुसरे  गाँव जाते थे जो तीन किलोमीटर दूर था तब घर पर आकर कभी थकान के बारे मे बोलते थे तो दादाजी पानी का महत्व बताते थे की भाई हम 15 किलोमीटर से पानी लाकर पीते थे और औरों को भी पिला देते थे कोई टंकर या सीमेन्ट के टांके नही थे नहाते तो कभी कभी  ही थे और नहाने व कपड़ा धोने के बाद भी उस पानी को
बचाकर  कच्ची दिवारो की गार लीपने या कोई वृक्ष मे डालते थे एक बूँद भर पानी को भी व्यर्थ नही करते थे। लेकिन अब क्या ? पानी कितना भी व्यर्थ बहे कीसी को परवाह नही है ।
नहर  का पानी क्या आया,, हमने तो दो दशक के अंदर अंदर ही सब बर्बाद कर दिया,, कुछ लालची लोगों की वजह से अन्धाधुन्द  खुदाई, अवैध कब्जों ने आगोर तो समाजो पूरी  खत्म कर दी,,पूरे गांव की प्यास बुझाने वाले तालाब खुद ही प्यासे मर ग‌ए, मनरेगा के भी करोड़ों पी ग‌ए,, नतीजा  क्या है आप देख ही रहे है बरसात के दिनो  मे गाँवों के छोटे  बड़े  सब तालाब भर जाते थे अब तालाब के आगोर की सुध लेने वाले कोई नही है आधे से ज्यादा ओरण पर चन्द लालसी लोगो ने कब्जा कर रखा है  ,लेकिन लोग अपनी गलती स्वीकार करने की बजाय दोष भी भगवान को ही देते है ठाकुर जी मेह नी बरसावे,, सरकार को भी अलग से कोसेन्गे ,,अरे कम ज्यादा कितना भी बरसे सहेजने की क्षमता कंहा है हमारे पास ,तालाब को तो गलत तरीके से खोद खोद कर बुरा हाल कर दिया है ।
,,आज हम जो टूंटी के पानी के भरोसे इन तालाबो को घंटे मार रहे हैं ना,,अगर एक हफ्ते किसी कारणवश नल बंद हो जाए तो सबकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी । कि हम कितने पानी में है,,अगर अब भी हमें अक्ल नहीं आई तो पूरी संभावना है कि कुछ सालों में ही पानी की भयंकर तंगी का सामना करना पड़ सकता है। अभी जो हम  बाथरूम में शॉवर लगा कर खड़े खड़े नहा रहे  हैं वो भी तरस जाएंगे खड़े खड़े नहाने के लिये
अब कोई उपाय  नही बचा है ।गाँव मे खरी कहने वाला कोई नही है तालाब के पानी की जरुरत सिर्फ जानवरो मवेसियो के अलावा किसी को नही है ।मेरा तो गाँव वालों से कहना है कि  अनुचित स्वार्थ छोड़ नाडियों की अवैध खुदाई बंद की जाए  गौसर भूमि पर कब्जा हटाया जाये और जरूरत के हिसाब से करनी भी पड़े तो सोच समझ कर पूरी कीमत वसूल कर वो भी गांव विकास फंड में जमा हो,, जिम्मेदारी से साल में एक बार बारिश से पहले सभी गांव वासी अभियान चला कर तालाब में पानी की आवक के अवरोध हटाए जाएं,, सरकार की ओर से जो भी योजनाएं आती है जो फंड आता है उसका पूरा उपयोग हो,,नेताओं और समाजसेवकों से भी निवेदन, सिर्फ पावड़ी गेन्ती तगारी हाथ मे लेकर  फोटू बाजी कर अखबार में नाम पढ खुश होने की बजाय वास्तविक, कोई ठोस तरीका निकालें,,ग्राम सभा में बात करें, सभी ग्रामवासी जुड़ें,,ताकि नौबत आने से पहले ही नजारा पहले जैसा बना रहे,, जितना हो सके उतना पानी तो इक्कठा हो,,सोचें, समझें, चिंतन करें,, और करना ही पड़ेगा,, क्योंकि  ये काम हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए नहीं अपने लिए ही करना है।
गुमनाराम पटेल सिनली 


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