शनिवार, 22 सितंबर 2018

अपेक्षा ही दुख का कारण


* अपेक्षा ही दुख का कारण *
*किसी दिन एक मटका और गुलदस्ता साथ में खरीदा हो और घर में लाते ही 50 रूपये का मटका अगर फूट जाए तो हमे इस बात का दुख होता है, क्योंकि मटका इतनी जल्दी फूट जायेगा ऐसी हमे कल्पना भी नहीं थी पर गुलदस्ते के फूल जो 200 रूपये के है वो शाम तक मुरझा जाए तो भी हम दुखी नहीं होते क्योंकि ऐसा होने वाला ही है यह हमे पता ही था।*
*मटके की इतनी जल्दी फूटने की हमे अपेक्षा ही नहीं थी, तो फूटने पर दुख का कारण बना, पर फूलो से अपेक्षा नहीं थी इसलिये वे दुख का कारण नहीं बनें इसका मतलब साफ़ हे कि जिसके लिए जितनी अपेक्षा ज्यादा उसकी तरफ से उतना दुख ज्यादा और जिस के लिए जितनी अपेक्षा कम उस के लिए उतना ही दुख भी कम।*
*"ख़ुश रहें... स्वस्थ रहें... मस्त रहें...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें