रविवार, 14 जून 2015
वाह म्हारी खेजड़ी
खेजड़ी का वृक्ष राजस्थान के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है. यह जेठ के महीने में भी हरा रहता है. ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यहछायादेती है. जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यहचारादेता है, जोलूंगकहलाता है. इसका फूलमींझरकहलाता है. इसका फलसांगरीकहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है. यह फल सूखने परखोखाकहलाता है जो सूखा मेवा है. इसकी लकडी मजबूत होती है जो किसान के लिएजलानेऔरफर्नीचरबनाने के काम आती है. इसकी जड़ सेहलबनता है. अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है. सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसकोछपनियाअकालकहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे. इस पेड़ के निचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है. पांडवों ने अंतिम वर्ष के अज्ञातवास में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाया था.
यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं. राजस्थानी में यहखेजडी,जांटीयाजांटकहलाता है. पंजाबी मेंजंडकहते है, गुजराती में इसेसमीयासुमराकहते है. सिन्धी में यहकंडीकहलाता है. तमिल मेंवणीकहते हैं. युनाइटेड अरब अमीरात में इसे गफ कहते हैं जहाँ का यह राष्ट्रीय वृक्ष है.
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