रविवार, 14 जून 2015

*साथै जासी प्रीत*

*साथै जासी प्रीत* मद में चालै लोगड़ा , क्या ग्यानी क्या सूर । आब गमावै आपरी , थकां फूटरा पूर ।। ग्यान हांडकी आपरी , ढकगै राखो आप । छलकत लछकत खूटसी , बणसी भूंडी छाप ।। ग्यान कमायो आप जे, बांटो जग में जाय । खुद कमावै खुद खावै , बै डांगर कहवाय ।। जग सूं पाछा जांवता, साथै जासी प्रीत । प्रीत बांटता जायस्यो , जग गावैला गीत ।। हेत कमाई आपरी , बाकी कूड़ा काम । कूड़ करम नै छोडगै, खूब कमाओ दाम ।। भाषा बोलै आपरी , जग में जीया जंत । भाषा छोडै आपरी , उण रो नेड़ो अंत ।। मायड़ भाषा बोलतां , सीखो भाषा और । खुद री भाषा छोडगै, पाप करोला घोर ।।

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