रविवार, 14 जून 2015

पनघट

पनघट पायल बाज्या करती, सुगनु चुड़लो हाथा मै, रूप रंगा रा मेला भरता, रस बरस्या करतो बातां मै.. हान्स हान्स कामन घणी पूछती, के के गुज़री रात्यां मै, घूंघट माई लजा बीनणी, अर पल्लो देती दांता मै... नीर बिहुणी हुई बावड़ी, सूना पणघट घाट भायली, छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो, गोटे हाळी कांचली, मांग हींगलू नथ रो मोती, माथे रखडी सांकली... जगमग जगमग दिवलो जुगतो, पळका पाडता गैणा मै, घनै हेत सूं सेज सजाती, काजल सारयां नैणा मै...

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