मंगलवार, 16 जून 2015

Village & farm

गाँव और खेत की तरफ जाकर आया हूँ. अखबारों में नहीं छपेगा, चेनलों में नहीं दिखेगा, वह हाल बता देता हूँ. यह भी बता देता हूँ कि भारत के अधिकतर निवासी गाँव में रहते हैं और खेती उनका मुख्य व्यवसाय है. हम स्वयं भले खेती न करते हों पर हमारे देश के अधिकतर लोग जो काम करते हैं, उस व्यवसाय का सम्मान हमने करना चाहिए और उस व्यवसाय की सामान्य जानकारी भी हमें होनी चाहिए ताकि देश की दशा के बारे कोई भ्रम न रहे. १. बारिश का इन्तजार है. रेडियो कह रहा है कि मानसून पहले आएगा और सामान्य रहेगा. किसान इस समाचार से खुश है. मन में भले अविश्वास रहता है पर हर हाल में दिल बहलाए रखना किसान को आता है. २. अधिकतर के मन में तनाव है कि इस बार की खेती के लिए पैसा कहाँ से जुटाया जाएगा. यह हर बार रहता है. राजस्थान की सरकार ने कहा है कि बिना ब्याज डेढ़ लाख रूपया देंगे पर सहकारी बैंक ने तीस हजार से ज्यादा देने से मन कर दिया है. विपक्ष चुप है. जातिगत समीकरण और पैसे से चुनाव जीतने की रणनीति में व्यस्त है. कुछ किसानों ने पिछले दिनों किसी बच्चे की शादी में ज्यादा खर्च कर दिया है तो कुछ ने किसी परिजन की मौत पर नुक्ती-चक्की खिला दी है. महंगाई के दौर में ये झूठे दिखावे और मजबूरियां अब सीजन के समय भारी पड़ रहे हैं. ब्याज और भू माफिया इन मजबूरियों वाले परिवारों पर गिद्ध दृष्टि लगाए बैठे हैं ! ऐसे में बच्चों की पढ़ाई का सीजन भी शुरू होने वाला है. उनकी पढ़ाई की कुछ बलि चढ़ेगी. डबल मार. ३. नकली बीज और दवाइयां, महंगा खाद और डीजल भी दर्द को बढाने वाले हैं. ४. बीमा कहने भर को है. एक दिलासा है, रिस्क कवर करने वाला बीमा नहीं है. यहाँ तो अब भी मुसाफिर अपनी जोखिम पर सवारी करता है. पिछले साल के क्लेम भी नहीं मिले हैं. किसान क्लेम की शर्तें कभी भी पूरी नहीं कर पायेगा. ५. अभी खेती के काम आने वाली सभी चीजें महंगी होगी, पर पांच महीने बाद फसल अपने निचले स्तर के दाम पर बिकेगी. लम्बी सोच से घबराकर किसान कहीं और मन लगा रहा है. गाँव के बाजार में ताश चल रही है, कुछेक लोग नरेगा की जुगाली कर लेते हैं. बीडियों के सुट्टे खींचे जा रहे हैं,गुठका चबाया जा रहा है और शाम को हर गाँव में उपलब्ध शराब की दुकान तो है ही. युवा इन दिनों क्रिकेट और मोबाइल में मस्त है. घर के टोटे-नफे से बेखबर ! 'अभिनव राजस्थान' की 'अभिनव कृषि' में सब बदल देंगे. मौका लगने दो.

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