राम राम सा
सभी राजस्थानी मित्रो को संसार का गौरवमयी इतिहास और सनातन संस्कृति से भरपूर वीरों की भूमि राजस्थान के स्थापना दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
बाळपणो सुपनां-सज्यो , घुम्यो विदेसा आय !
राजस्थानी सूं प्रीत नित गाढ़ी हो'ती जाय !!
राम राम सा
सभी राजस्थानी मित्रो को संसार का गौरवमयी इतिहास और सनातन संस्कृति से भरपूर वीरों की भूमि राजस्थान के स्थापना दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
बाळपणो सुपनां-सज्यो , घुम्यो विदेसा आय !
राजस्थानी सूं प्रीत नित गाढ़ी हो'ती जाय !!
शीतला माता की कहानी
यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखें कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही है, ना मेरी पूजा है।
माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड गये। शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी।
शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बाहर एक कुम्हारन (महिला) बैठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पूरे शरीर में तपन है। इसके पूरे शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नही कर पा रही है।
तब उस कुम्हारन ने कहा हे माँ तू यहाँ आकर बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवार) के आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।
तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बैठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला मैं तेरी चोटी गूंथ देती हूं और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुढी माई के सिर के पीछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख बालो के अंदर छुपी हैं। यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भूत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पुजा करता है। इतना कह चारभुजा वाली माता हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।
माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसूं बहते हुए कहा- है माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता बिखरी हुई है में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।
तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इच्छा है अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पूजा कर आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पूजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को कपडे धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।
तब माता बोली तथास्तु हे बेटी जो तूने वरदान मांगे में सब तुझे देती हूं । हे बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी। शील कि डुंगरी में शीतला माता का मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी पर वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पढ़ने से घर की दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पूरी होती है।
।। राम राम सा ।।
[1]
साग बणायो सोहनी,मिरचां दी बुरकाय ।
जीमण बैठ्यौ सायबो, मुंडै लागी लाय ॥
बोलण री टाळ होगी ॥
[२]
काचर छौलै कामणी,माळा पौवै बीन ।
डोरै चाढै ऐक-दो, कोठै ठौकै तीन ॥
जा रे काचर रा बीज ॥
[३]
घरां बणाई लापसी ,मिंदर लागी धौक ।
मीट-मसाला नीं पकै।,दारू पर भी रोक ॥
देव ता सोफ़ी होणां ॥
[४]
कार ल्याया काको सा,काकी मांग्या हिंडा ।
काको जाबक नाटग्या,काकी दिंधी खिंडा ॥
अब ले लै लाडी पींडा ॥
[५]
देख जलेबी हाट पर,घरां ढूक्या बणाण ।
जेवडा़ सा गूंथ लिया, रस घाली रामाण ॥
ल्यो, और लेल्यौ पंगा ॥
[६]
छोरै नै उडीकतां, टाबर होग्या पांच ।
चूण चाटियौ सफ़ाचट,भूखी सोवै चांच ॥
रोयल्यौ जामणियां नैं ॥
[७]
जेबां राखै कांगसी, सिर में कोनीं बाळ ।
गंजो भाख्यां बाप जी,साम्हीं काढै गाळ ॥
ले ओ मोडां सूं पंगा ॥
[८]
रूंख लगाया बापजी,बेटां दिया उपाड़ ।
कीकर फ़ळसी खेतडा़,खावण ढूकी बाड़ ॥
दो लगाओ कान तळै ॥
[९]
रोटी दोरी खावणी, मैं’गाई में आज ।
आंख्यां मींची बापजी,बोटां थरप्यै राज ॥
बोट ई खोलसी आंख ॥
[१०]
बोटां आळै राज में,है नोटां रा खेल ।
बिन नोटां रै भायला,सांचा जावै ज़ेल ॥
बोट में मिलग्यौ खोट ॥
[११]
घणौ कमायो सायबा, घरां पधारो आय ।
रासण खूट्यो आसरै,बिज़ळी झपका खाय ॥
बो देस्सी तन्नै न्योळी ॥
[१२]
चावळ खावै धपटवां, रोटी खावै सात ।
ऐडी़ म्हारै कामणी,क्या कै’णी है बात ॥
हाथै कीन्या कामणां
[१३]
पगां न चालै कामणीं,चढवां मांगै कार ।
टायरडा़ तौबा करै, देख मैम रो भार ॥
तो टरकडो़ बपराओ ॥
[१४]
मामा ल्याया मायरौ,गाभां री भरमार ।
भाणूं गाभा छौडगै, मांगण ढूक्यौ कार ॥
के बाप परणायौ है ॥
[१५]
टाबर मांगै टैम पर, रोटी गाभा चाय ।
धणीं न ल्यावै रोकडो,धीणै टळगी गाय ॥
चाल ो सांभौ कटौरो ॥
[१६]
हेत हबोळा चालतां ,फ़ोन दियो घुंकाय ।
बातां चालै रसभरी ,कुण देवै छुडवाय ॥
बिल ई काट सी पापो ॥
[१७]
मायत सोरी पाळगै,छोरी दी परणाय ।
वज़न पूछ्यौ सायबै,कुण देवै तुलवाय ॥
धरमक ांटो ई देखो ॥
[१८]
गधो भाख्यां आप गधी,भेजो लियो लगाय ।
नैनो जुग रो हो भलो,ऐ.जी. सूं धिक जाय ॥
गळब ंधी तो बाज सी ॥
[१९]
रोटी मांगी सायबां, काची दी झलाय ।
मैडम बैठी साम्हनै,डरतै ली गटकाय ॥
तो किस्सै कूए में पडै़ ॥
[२०]
मायड़ भाषा रै बिनां, म्हारो मुंडौ बंद ।
नीं जाणां म्हे बापजी,कूकर कटसी फ़ंद ॥
घाल गळ में साफ़लियो ॥
।। राम राम सा ।।
1
चरका मरका चाबतां, चंचल होगी चांच ।
फीका लागै फलकिया,अकरा सेकै आंच ।
करमां रो कीट लागै ।
2
नेता नाटक मांडिया,ले नेता री ओट ।
नेता नै नेता चुणै,जनता घालै बोट ।।
लोक सिधारो परलोक ।।
3
लोक घालै बोटड़ा,नेता भोगै राज ।
लोकराज रै आंगणै,देखो कैड़ा काज ।।
जोग संजोग री बात।।
4
हाकम रै हाकम नहीँ,चोर न जामै चोर ।
नेता तो नेता जणै,नीँ दाता रो जोर ।।
नेता जस अमीबा ।।
5
चोरी जारी स्मगलिँग,है नेता रै नाम ।
आं कामां नै टालगै,दूजो केड़ो काम।।
आप बिकै नी बापड़ा ।।
6
जनता हाथां हार गै,हाट करावै बंद।
फेर ऐ खुल्ला सांडिया,खूब खिंडावै गंद ।।
जिताओ बाळो आगड़ा।।
7
चोळा बदळै रोजगा,चालां रो नीँ अंत ।
भाषण देवै जोरगा,वादां में नीँ तंत।।
कियां घड्या रामजी ।।
8
नेता मरियां कामणी, माता मरियां पूत।
बो इज होवै पाटवी,जो मोटो है ऊत ।।
मारो साळां रै जूत ।।
9
बोट घलावै बापजी,दे कंठां मेँ हाथ ।
जीत बजावै ढोलड़ा,अणनाथ्या हे नाथ ।।
पोल मेँ बजावै ढोल ।।
10
बाजो बाजै जीत गो,नेता घर मेँ रोज ।
हारै जनता बापड़ी,भूखी टाबर फोज ।।
घालो ओज्यूं बोट।।
11
नेता खावै धापगै,जनता भूखी भेड़ ।
पांच साल मेँ कतरगै,पाछी चाढै गेड़ ।।
राम ई राखसी टेक ।।
12
नेता मुख है मोवणां,धोळा धारै भेस ।
जीत्यां जावै आंतरा,हार्यां करै कळेस ।।
दे बोट काटो कळेस ।।
13
पाटै बैठ्या धाड़वी,नितगा खोसै कान ।
नेता भाखै आपनै,चोखो पावै मान ।।
नमो कळजुगी औतार ।।
14
सेडो चालै नाक मेँ,मुंडै काढै गाळ ।
नेता मांगै बोटड़ा,कूकर गळसी दाळ ।।
रामजी ई रुखाळसी ।।
15
लोकराज रै गोरवैं,खूब पळै है सांड ।
चरणो बांरो धरम है,बांध्यां राखो पांड ।।
करणी तो भरणी पड़ै।।
16
काळू ल्यायो टिगटड़ी,बणग्यो काळूराम ।
जनता टेक्या बोटड़ा,जैपर बण्यो मुकाम ।।
इयां ई तिरै ठीकरी ।।
17
धापी आई परणगै,नेता जी रै लार ।
नेता राखै चोकसी,बा टोरै सरकार ।।
पतिबरता है बापड़ी।।
18
नेता पूग्यो सुरग मेँ,धापी रैगी लार।
ओ'दो मांग्यो लारलां,धापी देगी धार।।
धणी री तो ही कुरसी।।
19
नेता चाबी झालगै,कूए मेँ दी न्हाख ।
लोकराज रै बारणै,अब तूं बैठ्यो झांख ।।
फसा ली कुतड़ी कादै।।
20
लोगां पूछी पारटी,नेता होग्यो मौन ।
नेता पूछी पारटी,कर नेता नै फोन ।।
बदळी तो कोनीँ आज।।
21
बेल्यां मांगी पारटी,नेता मारी डांट।।
पारटी म्हारी खुद गी,है देवणगी आंट ।।
पारटी बदळै क देवै ।।
22
बोट घालो धपटवां,नीँ तो करस्यूं झोड़।
नीँ छोडूंला गांव मेँ,भाज्या फिरस्यो खोड़।।
बोट सूं कटसी पापो ।।
23
नेतावंश विशेष है,औ’दै रो हकदार ।
नेतण जाम्यौ सेडलौ,बणसी बो सरदार ॥
ऊंदर जामसी ऊंदर ॥
24
नेता फ़ळ तलवार रो,बधै बुढापै धार ।
आडौ पटकै राज नै,खा जावै खार ॥
और के खाडा खोदै ॥
25
नेता भासण ठोकियो,ढीली करगै राफ़ ।
म्हानै टेको बोटडा़,पाणी देस्यां साफ़ ॥
जा पछै नै’र बंद है ॥
26
नेता टोरी बातडी़,दे वादां री पांड ।
अबकै आपां जीतगै,करस्यां खेत कमांड ॥
छावनी खोली छेकड़ ॥
बीस दूहा पूंछ आळा
[१]
साग बणायो सोहनी,मिरचां दी बुरकाय ।
जीमण बैठ्यौ सायबो, मुंडै लागी लाय ॥
बोलण री टाळ होगी ॥
[२]
काचर छौलै कामणी,माळा पौवै बीन ।
डोरै चाढै ऐक-दो, कोठै ठौकै तीन ॥
जा रे काचर रा बीज ॥
[३]
घरां बणाई लापसी ,मिंदर लागी धौक ।
मीट-मसाला नीं पकै।,दारू पर भी रोक ॥
देव ता सोफ़ी होणां ॥
[४]
कार ल्याया काको सा,काकी मांग्या हिंडा ।
काको जाबक नाटग्या,काकी दिंधी खिंडा ॥
अब ले लै लाडी पींडा ॥
[५]
देख जलेबी हाट पर,घरां ढूक्या बणाण ।
जेवडा़ सा गूंथ लिया, रस घाली रामाण ॥
ल्यो, और लेल्यौ पंगा ॥
[६]
छोरै नै उडीकतां, टाबर होग्या पांच ।
चूण चाटियौ सफ़ाचट,भूखी सोवै चांच ॥
रोयल्यौ जामणियां नैं ॥
[७]
जेबां राखै कांगसी, सिर में कोनीं बाळ ।
गंजो भाख्यां बाप जी,साम्हीं काढै गाळ ॥
ले ओ मोडां सूं पंगा ॥
[८]
रूंख लगाया बापजी,बेटां दिया उपाड़ ।
कीकर फ़ळसी खेतडा़,खावण ढूकी बाड़ ॥
दो लगाओ कान तळै ॥
[९]
रोटी दोरी खावणी, मैं’गाई में आज ।
आंख्यां मींची बापजी,बोटां थरप्यै राज ॥
बोट ई खोलसी आंख ॥
[१०]
बोटां आळै राज में,है नोटां रा खेल ।
बिन नोटां रै भायला,सांचा जावै ज़ेल ॥
बोट में मिलग्यौ खोट ॥
[११]
घणौ कमायो सायबा, घरां पधारो आय ।
रासण खूट्यो आसरै,बिज़ळी झपका खाय ॥
बो देस्सी तन्नै न्योळी ॥
[१२]
चावळ खावै धपटवां, रोटी खावै सात ।
ऐडी़ म्हारै कामणी,क्या कै’णी है बात ॥
हाथै कीन्या कामणां
[१३]
पगां न चालै कामणीं,चढवां मांगै कार ।
टायरडा़ तौबा करै, देख मैम रो भार ॥
तो टरकडो़ बपराओ ॥
[१४]
मामा ल्याया मायरौ,गाभां री भरमार ।
भाणूं गाभा छौडगै, मांगण ढूक्यौ कार ॥
के बाप परणायौ है ॥
[१५]
टाबर मांगै टैम पर, रोटी गाभा चाय ।
धणीं न ल्यावै रोकडो,धीणै टळगी गाय ॥
चाल ो सांभौ कटौरो ॥
[१६]
हेत हबोळा चालतां ,फ़ोन दियो घुंकाय ।
बातां चालै रसभरी ,कुण देवै छुडवाय ॥
बिल ई काट सी पापो ॥
[१७]
मायत सोरी पाळगै,छोरी दी परणाय ।
वज़न पूछ्यौ सायबै,कुण देवै तुलवाय ॥
धरमक ांटो ई देखो ॥
[१८]
गधो भाख्यां आप गधी,भेजो लियो लगाय ।
नैनो जुग रो हो भलो,ऐ.जी. सूं धिक जाय ॥
गळब ंधी तो बाज सी ॥
[१९]
रोटी मांगी सायबां, काची दी झलाय ।
मैडम बैठी साम्हनै,डरतै ली गटकाय ॥
तो किस्सै कूए में पडै़ ॥
[२०]
मायड़ भाषा रै बिनां, म्हारो मुंडौ बंद ।
नीं जाणां म्हे बापजी,कूकर कटसी फ़ंद ॥
घाल गळ में साफ़लियो ॥
कळेस तो कटग्यौ ॥
गणपति और मूषक की कथा
एक बार की बात है गजमुख नाम का एक बहुत ही अत्याचारी और भयंकर असुर था। वह अपनी शक्ति और ज्यादा बढ़ाकर सारे संसार पर राज करना चाहता था। उसके मन में सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करने की लालसा थी इसलिए वह #भगवान्_शिव से वरदान पाने के लिए जंगल में बिना पानी पिए भोजन खाए रात दिन तपस्या करने लगा।
बहुत समय जाने पर एक दिन शिवजी उसके अपार तप को देखकर प्रभावित हो गए और शिवजी उसके सामने प्रकट हुए। शिवजी नें खुश हो कर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान किया जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। सबसे बड़ी ताकत जो शिवजी नें उसे प्रदान किया वह यह था की उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर गर्व हो गया और वह अपने शक्तियों का दुरुपयोग करने लगा और देवी-देवताओं और समस्त प्राणियों पर आक्रमण और अत्याचार करने लगा।
केवल #त्रिदेव शिव, #विष्णु, #ब्रह्मा और #गणेश तक उसकी पहुँच नहीं हो पायी थी। गजमुख स्वयं को भगवान् मानने लगा और सबसे अपनी पूजा करने को कहने लगा जो मना करता उस पर अत्याचार करने लगता। सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और अपनी जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे। यह सब देख कर शिवजी नें भगवान् गणेश को अत्याचारी असुर गजमुख को सबक सिखाने के लिए भेजा। गणेश जी नें #गजमुख के साथ युद्ध किया और असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन तब भी वह नहीं माना। उस राक्षक नें स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी की और आक्रमण करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के मुस में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए रख लिया। बाद में गजमुख भी अपने इस रूप से खुश हुआ और गणेश जी का प्रिय मित्र भी बन गया।
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
श्री राजाराम जी महाराज री घणी किरपा हु म्होरे लाडकियौ बैटो
दिनेश पटेल
सुपुत्र श्रवण राम गोकल रामजी मालवी गौम्ं सिणली
व
कुं.ममता पटेल
सुपुत्रि जैरुप राम वागाराम जी काग गौम सिणली
रो शुभ-ब्याव
सात मई 2019 ने होवाणों तय हुयो हे ।
म्हे हाथ जोढर घणेमाण हु आपणे अरज करा के ब्याव रे इण
मांगलिक ठाया माथे आप रे पधारिया ही म्हारी शोभा व्हेलासा ।
ब्याव रा पडला री सभा
7 मई दोपहर 2 वजियो
सामेळो -7 /5/2019 री दोपहरी दो बजियो
जान री तैयारी सुबह 10 वजियो
मालवियौ की ढाणी से रवाना
पधारण री बाट जोवता
गोकल राम जी तेजाराम जी सोनाराम जी आणदा रामजी गुमनाराम जुगताराम धनाराम नेमाराम बाबुलाल राजाराम एवम सगलौ मालवी परीवार
दर्शाणा रा कोडारू
>>-जितेन्द्र भरत दिनेश लक्षमण सुरेश
दर्शाणा न उडिकता टाबरिया
नरसिह गौतम चैतन
•••जोन श्रीमान जेरुपरामवागाराम जी काग सिणली वालो रे बठै जावैला
राम राम सा
सुण जीवण संग्राम री, एक बात निरधार।
चाळै जां की जीत है, सोवै जां की हार।।
‘‘जीवन रूपी संग्राम की यही बात सत्य है कि जो निरंतर चलते रहते हैं,उनकी तो जीत होती है और जो सोते रहते हैं, रुक जाते है उनकी हार होती है। अत: आलस्य छोडक़र निरंतर चलते रहना, आगे बढ़ते रहना चाहिए।’’
खरगोश और कछुए की कहानी आपने जरूर सुनी होगी । मगर सही शिक्षा और पूरी कहानी ये है -
एक बार एक खरगोश कछुए की धीमी चाल देखकर बोला कि इस चालसे तो अच्छा है पत्थर होना। कहीं चिनवाई में तो काम आता। मेरी ऐसी चाल होती तो मैं आत्महत्या करके मर जाता। तुझे अपनी चाल पर थोड़ी बहुत भी शर्म नहीं आती। मैं दौड़ता हूँ तब हवा को भी पीछे रखता हूं..। कछुए ने नम्रता से कहा कि तुम तो बहुत ही हवा को पीछे रखते हो, लेकिन तुम्हारी चाल मेरे क्या काम आए। यह तो कुदरत की दी हुई है। इस पर ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए। अपनी चाल पर तुम्हें इतना ही घमंड है तो कभी यह भी देख लेंगे।तुम्हारा जब मन हो, हार जीत लगा लेना। देखते हैं कौन आगे जाता है।खरगोश को कछुए की यह बात चुभी। उसने कहा कि फिर कभी क्यों, आज ही परख कर लेते हैं। जब हार जीत की शर्त करनी है तो फिर देर किस बात की। यदि मैं हार गया तो जिऊंगा तब तक तुम्हारा सेवक रहूंगा और तू हार गया तो सिरफ बारह महीने मेरा सेवक रहना। खरगोश को तो अपनी चाल पर गर्व था। कछुए को उसकी बात माननी पड़ी। लगभग तीन कोस की दौड़ तय हुई। तीन कोस पर चार खेजड़ों के चक्कर लगा कर वापस उसी जगहआना। खरगोश तो दौड़ पड़ा। कछुआ तो लाइन से चार हाथ ही आगे सरका और खरगोश ने आधा रास्ता तय कर लिया। वह तो कान ऊंचे करके हवा की तरह उड़ा। आधा रास्ता तय करने के बाद खरगोश ने मुडकर देखा तो कछुए की परछाई तक दिखाई नहीं थी। खरगोश सोचने लगा कि बेचारे कछुएको या पता था कि तीन कोस की दूरी देकर भी मैं उसे फट पकड़ सकता हूं। कछुआ तो न जाने कब तक यहां पहुंचेगा? अत: खरगोश कभी बैठ जाता,कभी चरने लगता। मन करता तब रवाना हो जाता। मन करता जब कछुए को देखने वापस चल पड़ता। लेकिन कछुआ तो अपनी धीमी चाल से धीरे धीरे रात दिन लगातार चलता रहा। खरगोश ठेठ मंजिल के पास पहुंचने वाला था।उसने देखा कि हां पहंचुने में अभी दो पखवाड़े लगेंगे। बेचारे की अले मारी हुई थी, जो मेरे से हार जीत की शर्त लगाई। यह कछुआ तो मुझे बिना पैसे का नामी चाकर मिला। जानता बूझता मेरे से शर्त लगाई। इस कछुए से तो मैं खूब काम लूंगा।
खरगोश सोच रहा था कि दौड़ में मेरी जीत तो निश्चित है।कछुआ मेरा सेवक बनेगा। मुझे उससे महत्पवपूर्ण काम कराने चाहिए। इस जंगल में पानी की कमी है। पानी की तलाश में जाता हूं तो शिकारी मार डालते है। इस कछुए से तो मैं पीने के पानी का पूरा-पूरा इंतजाम कराऊंगा। इस प्रकार की बातें सोचता हुआ वह एक वृक्ष की छाया में सो गया। सोते-सोते जीतने के सपने देखता रहा। सपने में उसने कछुए से पानी की परखालें ढोवाय-ढोवाय कर अपने लिए मीठे जल की एक जबरदस्त झील भरवा ली। और इधर कछुआ धीरे-धीरे अपनी धीमी चाल से रात-दिन चलता हुआ आगे बढता रहा। आखिरकार निरंतरता बड़ी होती है। वह चार खेजड़ों तक पहुंच गया और उनके चक्कर लगातार वापस उसीस्थान पर आ गया, जहां से दौड़ शुरू हुई थी। उधर खरगोश तो सपने में ठंडे पानी की झील के किनारे ठंडे झकोरों में ऊघ रहा था कि उसने देखा कि एक बड़ी गोह उसको पकडऩे के लिए मुंह फाड़े ठेठ उसके पास आ गई है। अचानक झिझककर उसने आंख खोली। कहां झील और कहां पानी के ठंडे झौंके। सुखी जमीन खाऊं-खाऊं कर रही थी। वह हड़बड़ा कर चार खेजड़ों की ओर दौड़ा। वहां देखता है कि कछुए के पदचिह्न बने हुए हैं। वह तो खेजड़ों के चक्कर लगाकर लौट चुका था। यह देख खरगोश के तो होश उड़ गए तो भी उसने मन में उत्साह था।अपनी शक्ति से अधिक तेज दौड़ा छोटे पौधे लांघता हुआ लंबी छलांगें लगाता हुआवह इस तरह दौड़ा जैसे बंदूक की गोली जा रही हो। उड़ता-सा वह जब नियतस्थान पर लौटकर पहुंचा तो उसने देखा कि कछुआ तो आगे उसी का इंतजार कर रहा था। कछुए ने खरगोश से नमस्कार किया। खरगोश फीकी हंसी हंसता हुआ बोला कि नींद नहीं लेता तो मैं एक पलक में आ जाता। अब शर्त के मुताबिक मैं तुम्हारा सेवक हूं। सारी उम्र के लिए। कछुआ भला और सीधा बहुत ही था। वह बोला कि मैं किसको सेवक रखूं। मेरी या सामथ्र्य कि मैं किसी को सेवक रखूं।लेकिन इतना घमंड नहीं करना चाहिए। भगवान नाक की डंडी पर बैठा है। कुदरत किसी को नही बगशती है, किसी को भी नही। उस पर घमंड करना। मुझे तो सिर्फ यह बात की बतानी थी। तुम आइंदा किसी कछुए पर मत हंसना। खरगोश चुपचाप उसकी बात सुनकर गर्दन नीची किये वहां से चल पड़ा।