।। राम राम सा ।।
मित्रो हिंदू धर्म में यूं तो हर व्रत और त्योहार का अपना ही महत्व है लेकिन आमलकी एकादशी (ग्यारस) इनमें खास है।
ईस दिन आमले के वृक्ष की पुजा की जाती है । परन्तु पश्चिमी राजस्थान मे तो हमारे यहाँ आमले के स्थान पर खेजड़ी के वृक्ष की पुजा की जाती है इस दिन खेत मे से खेजड़ी के छोटा लाकर गावँ के चौराहे पर रोपकर सब लड़किया मिलकर विधिवत पुजा करती है । और मंगलगीत गाती है ।
फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होने वाला यह व्रत किसी पर्व से कम नहीं है। कहते है इस दिन काशी मे हर तरफ रंग और गुलाल के साथ अथाह प्रेम बरसता है। यही वजह है कि इसे रंगभरनी एकादशी भी कहते हैं। राजस्थान में इस दिन खाटू श्याम जी का मेला भी लगता है।
आमलकी एकादशी के बारे में कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्माजी और आंवले के वृक्ष को जन्म दिया था। इसी के चलते इसे आमलकी एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि आमकली एकादशी व्रत अत्यंत श्रेष्ठ होता है। साथ ही जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है उसे एक हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है।
इस दिन के नाम पर राजस्थानी मे फागण भी गाया जाता है ।
होली ने दिवाली छैला दाय पड़े तो आई जी रे .....
आमलकी ईग्यारस माते आयो रहिजे रे....... क
महिनो फागण रो
फागणियौ महिनो चौखौ लागे ओ...... क....
महिनो फागण रो.........
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