गुरुवार, 21 मार्च 2019

बालपणे रा दिन

।। राम राम सा ।।
बालपणे रा दिन तो बै हा  जद म्हें सगला टाबरिया भेळा बैठ
एक थाळी जीमता   दादी  जीमांवती म्हे जीमंता
खाता  खाता धापता ई कोनीं
आखती होय दादी  कैंवती पेट है  के  वैरो है
धापै ई कोनीं टाबरीयाँ
जद घणौ खाया पछै  रात नै पेट दूख जांवतो  तो
दादी थुथकारा न्याखती , मिर्च  उवारती , चिमटो लाय ने झाड़ो 
देवती देवती  खुद नै गाळां काढती- के पौता ने म्हारी निजर लागगी । 
 ईंया  करता करता म्हाने तो नीन्द आ जावती । 
नींद तो दादी ने सारी रात नी आवती। 
 सुबह जल्दी बैठा हुवता ही लौटो लैय ने जावता जणा ही पेट ठीक हुवतो ।
पछै  दुजुड़े दिन खावण ने कोई रोक नीं सकतो । बालपणे रा दिन दुजा हा । 
ढाणी री गवाड़ी मे अठारह  मांचा ढळता बड़ो परिवार हो ।
गवाड़ी मे सोंवता जद आधी रात ताईं
दादी कहाण्यां सुणांवती
एक रै बाद एक नित नवी-नवी
घर रा पुरा परिवार अर म्हे सोंवता
हूंकारा भरता-भरता नीन्द आ जांवती ही
उण दिनों  ने घणौ याद करो हो पण वै दिन नी रिया।
अब  तो समय बदलगौ है  म्हे तो सोंवा आप-आपरै कमरां में
टाबर कठै ई ,म्हे कठै ई ,माँ बाप  कठै ई ,भाई कठै ई ,
हरेक  आप आप रे कमरै में ही रेवे।
ना तो कोई कहानियाँ  सुणावण वाला ना कोई  हुँकारा भरण वाला। 
सगळा  आप-आपरै मनभांवता प्रोग्राम दैखे
जिण रै आगै कोई कैवण री बात नी है ।
ईंण मोबाईल  जुग रे माँय  लोग सगला रिस्ता भुलग्या। 
उँण बालपणे री बात और ही अब बाँता और है ।

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