मंगलवार, 23 जून 2015
" बेटी
शादी में बेटे की कीमत मांगते भारी, यह पिता नहीं हैं, ये हैं व्यापारी ! ऐसे मंगतो के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !औरत की कोख से ही पैदा हुए हैं आप,फिर भी भ्रूण हत्या का करते जघन्य अपराध, ऐसे अपराधियों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !संसद में बैठ नंगा विडियो चलाते, घोटालों के सिर पर अपनी तोंद बढाते, ऐसे बदमाशों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !बलात्कारी हैं निर्लज्जता की हद ये तोडें, बस चले इनका तो माँ-बहन को न छोडें, ऐसे बलात्कारियों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !नशे में डूब करते जिन्दगी बरबाद, न अपनो की शर्म न दूजों का लिहाज्, ऐसे नशेडियों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !संत महात्मा बने फिरते, बडा तिलक लगाते, गला उनका ही काटें जिन्हें गले लगाते, ऐसे पापियों के घर मत जाना,चाहे कुंवारी रह जाना !
बिच्छू का जहर उतारने के घरेलू उपचार
बिच्छू का जहर उतारने के घरेलू उपचार
1- बिच्छू एवं अन्य जहरीले कीड़े के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों और जड़ का ताजा रस लगाने से जलन और दर्द में तुरंत आराम मिलता है | इनके विष का प्रभाव कम करने के लिए 2 चम्मच की मात्रा में अपामार्ग के पत्तों का रस 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है |
2- एक पत्थर पर दो-चार बूँद पानी की डालकर निर्मली या इमली के बीज को घिसें। उस घिसे हुए पदार्थ को दर्द वाले स्थान पर लगायें | डंक वाले स्थान पर घिसा हुआ इमली या निर्मली का बीज चिपका दें।
3- पोटेशियम परमैंगनेट एवं साइट्रिक एसिड के पाउडर को अलग-अलग बोतल में भरकर हमेशा घर में रखें । बिच्छू के डंक पर मूँग के दाने जितने साइट्रिक एसिड के पाउडर एवं पोटेशियम परमैंगनेट का मूँग के दाने जितना पाउडर रखें। ऊपर से एक बूँद पानी भी डालें। थोड़ी देर में विष उतर जायेगा। यह एक अदभुत दवा है।
4- माचिस की 8-10 तीलियों का मसाला पानी में घिसकर बिच्छु के डंक वाले स्थान पर लगाऐं। इससे बिच्छु का जहर तुरंत उतर जाता है।
5- एक पत्थर पर फिटकरी को घिस लें, बिच्छु काटे के स्थान पर इस लेप को लगाकर आग से थोड़ी देर तक सेकें । इस प्रयोग से बिच्छू का जहर शीघ्रता से उतर जाता है |
6- प्याज को पीसकर पेस्ट बना लें एवं इसमें थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर बिच्छु के काटे हुए स्थान पर लगा दें | इस प्रयोग से बिच्छू का जहर उतर जाता है।
" बेटी ,,
कही पढा था, की हर व्यक्ति के १०० भाग्य होते है ।
पर उन १०० भाग्यों में से जब १ भाग्य अच्छा होता है तब उन के घर पर 'लड़के' का जन्म होता है
और
जब १०० के १०० भाग्य अच्छे होते तब उन के घर पर 'लड़की' का जन्म होता है ।
इसीलिए ऐसा कहा जाता है की,
लड़का तो 'भाग्य' से होता है...
लेकिन लड़की 'सौभाग्य' से होती है ।
बेटी है तो कल है
पराया धन होकर भी कभी पराई नही होती।
शायद इसीलिए....किसी बाप से...
हंसकर बेटी की, विदाई नही होती।।"
" अभिमान " rukamani ka
एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया।दूध ज्यदा गरम होने के कारण
श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला हे राधे !
सुनते ही रुक्मणी बोली प्रभु! ऐसा क्या है राधा जी में ,जो आपकी हर साँस पर उनका ही नाम होता है।मैं भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूँ; फिर भी आप हमें नहीं पुकारते।
श्री कृष्ण ने कहा -देवी!आप।कभी राधा से मिली हैं ?और मंद मंद मुस्काने लगे।
अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंची ।राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा और उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि ये ही राधाजी है और उनके चरण छुने लगी; तभी वो बोली -आप कौन हैं ?
तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया ;तब वो बोली मैं तो राधा जी की दासी हूँ।राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी ।
रुक्मणी ने सातो द्वार पार किये और हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी क़ि अगर उनकी दासियाँ इतनी रूपवान हैं तो राधारानी स्वयं कैसी
होंगी ?सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंची।कक्ष में राधा जी को देखा ,अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिसका मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था।
रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ी पर ये क्या राधा जी के पुरे शरीर पर तो छाले पड़े हुए है।रुक्मणी ने पूछा देवी आपके शरीर पे ये छाले कैसे ?
तब राधा जी ने कहा देवी कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया, वो ज्यदा गरम था; जिससे उनके ह्रदय पर छाले पड गए और उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है...
..इसलिए कहा जाता है
बसना हो तो ह्रदय में बसो किसी के
दिमाग में तो लोग खुद ही बसा लेते है..।।।।
" इंडिया "bharat
यह नदियों का मुल्क है, पानी भी भरपूर है ।
बोतल में बिकता है, बीस रू. शुल्क है ।
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यह शिक्षकों का मुल्क है, स्कूल भी खुब है ।
बच्चे पढने जाते नहीं, पाठशालाएं नि : शुल्क है ।
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यह गरीबों का मुल्क है, जनसंख्या भी भरपूर है ।
परिवार नियोजन मानते नहीं, नसबन्दी नि : शुल्क
है ।
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यह अजीब मुल्क है, निर्बलों पर हर शुल्क है ।
अगर आप हो बाहुबली, हर सुविधा नि : शुल्क है ।
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यह अपना ही मुल्क है, कर कुछ सकते नहीं,
कह कुछ सकते नहीं, बोलना नि : शुल्क है ।
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यह शादियों का मुल्क है, दान दहेज भी खुब है ।
शादी करने को पैसा नहीं, कोर्ट मेरिज नि : शुल्क
है ।
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यह पर्यटन मुल्क है, रेले भी खुब है ।
बिना टिकट पकङे गये, रोटी कपङा नि : शुल्क है ।
Joke of the day
एक Marwadi को जॉब नही मिली तो उसने क्लिनिक खोला और बाहर लिखातीन सौ रूपये मे ईलाज करवाये
ईलाज नही हुआ तो एक हजार रूपये वापिस....
एक डॉक्टर ने सोचा कि एक हजार रूपये कमाने का अच्छा मौका है वो क्लिनिक पर गया और बोला मुझे किसी भी चीज का स्वाद नही आता है
Marwadi : बॉक्स नं.२२ से दवा निकालो और ३ बूँद पिलाओ नर्स ने पिला दी
मरीज(डॉक्टर) : ये तो पेट्रोल है
Marwadi : मुबारक हो आपको टेस्ट महसूस हो गया लाओ तीन सौ रूपये
डॉक्टर को गुस्सा आ गया कुछ दिन बाद फिर वापिस गया
पुराने पैसे वसूलने
मरीज(डॉक्टर) :साहब मेरी याददास्त कमजोर हो गई है
Marwadi : बॉक्स नं. २२ से दवा निकालो और ३ बूँद पिलाओ
मरीज (डॉक्टर) : लेकिन वो दवा तो जुबान की टेस्ट के लिए है
Marwadi : ये लो तुम्हारी याददास्त भी वापस आ गई
लाओ तीन सौ रुपए।
इस बार डॉक्टर गुस्से में गया
डॉक्टर-मेरी नजर कम हो गई है
Marwadi- इसकी दवाई मेरे पास नहीं है। लो एक हजार रुपये।
डॉक्टर-यह तो पांच सौ का नोट है।
Marwadi- आ गई नजर। ला तीन सौ रुपये।
........ East aur West.. Marwadi is the Best
" इंडिया "
" इंडिया "
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आज विद्यालय में बहुत चहल पहल है ।
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सब कुछ साफ - सुथरा , एक दम सलीके से ।
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सुना है निरीक्षण को कोई साहब आने वाले हैं ।
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पूरा विद्यालय चकाचक ।
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नियत समय पर साहब विद्यालय पहुंचे ।
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ठिगना कद , रौबदार चेहरा , और आँखें तो जैसे जीते जी पोस्टमार्टम कर दें ।
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पूरे परिसर के निरीक्षण के बाद उनहोंने कक्षाओं का रुख किया ।
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कक्षा पांच के एक विद्यार्थी को उठा कर पूछा , बताओ देश का प्रधान मंत्री कौन है ?
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बच्चा बोला -जी राम लाल ।
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साहब बोले -बेटा प्रधान मंत्री ?
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बच्चा - रामलाल ।
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अब साहब गुस्साए - अबे तुझे पांच में किसने पहुंचाया ? पता है मैं तेरा नाम काट सकता हूँ ।
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बच्चा -
कैसे काटोगे ?
मेरा तो नाम ही नहीं लिखा है ।
मैं तो बाहर बकरी चरा रहा था ।
इस मास्टर ने कहा कक्षा में बैठ जा दस रूपये मिलेंगे ।
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तू तो ये बता रूपये तू देगा या मास्टर ?
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साहब भुनभुनाते हुवे मास्टर जी के पास गए ,
कडक आवाज में पूछा -
क्या मजाक बना रखा है ।
फर्जी बच्चे बैठा रखे हैं ।
पता है मैं तुम्हे नौकरी से बर्खास्त कर सकता हूँ ।
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गुरूजी - कर दे भाई ।
मैं कौन सा यहाँ का मास्टर हूँ ।
मास्टर तो मेरा पड़ोसी दुकानदार है ।
वो दुकान का सामान लेने शहर गया है।
कह रहा था एक खूसट साहब आएगा , झेल लेना ।
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अब तो साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर ।
पैर पटकते हुए प्रधानाध्यापक के सामने जा पहुंचे ।
चिल्लाकर बोले ,
" क्या अंधेरगर्दी है , शरम नहीं आती ।
क्या इसी के लिए तुम्हारे स्कूल को सरकारी इमदाद मिलती है ।
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पता है, मैं तुम्हारे स्कूल की मान्यता समाप्त कर सकता हूँ
जवाब दो प्रिंसिपल साहब ।
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प्रिंसिपल ने दराज से एक सौ की गड्डी निकाल कर मेज पर रखी और बोला -
मैं कौन सा प्रिंसिपल हूँ, प्रिंसिपल तो मेरे चाचा हैं ।
प्रॉपर्टी डीलिंग भी करते हैं, आज एक सौदे का बयाना लेने शहर गए हैं ।
कह रहे थे, एक कमबख्त निरीक्षण को आएगा , उसके मुंह पे ये गड्डी मारना और दफा करना ।
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साहब ने मुस्कराते हुए गड्डी जेब के हवाले की और बोले - आज बच गये तुम सब । अगर आज मामाजी को सड़क के ठेके के चक्कर में शहर ना जाना होता, और अपनी जगह वो मुझे ना भेजते तो तुम में से एक की भी नौकरी ना बचती ।
ऐसा सब हमारे यहाँ ही संभव हे !!!!!
" नशा मुक्ति " . . . " घरेलु नुस्का "
" नशा मुक्ति "
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" घरेलु नुस्का "
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नशा छोड़ने के लिए चाहे वह कोई भी नशा हो शराब, गुटखा, तम्बाकू या और कोई भी।
अदरक के छोटे छोटे टुकड़े काट ले इन पर सेंधा नमक बुरक ले, अब इन टुकड़ो पर अच्छे से निम्बू निचोड़ ले और इन टुकड़ो को धुप में सूखने के लिए रख दे। जब सूख जाए तो बस हो गयी दवा तैयार ।
अब जब भी किसी नशे की लत लगे तो ये टुकड़ा मुँह में ले और चूसते रहो। ये अदरक मुह में घुलती नहीं इसको आप सुबह से शाम तक मुह में रख सकते हैं।
अब आप सोचोगे के ऐसा अदरक में क्या हैं तो सुनिए जब किसी आदमी को नशे की लत लगती हैं तो उसका शरीर सल्फर की डिमांड करता हैं,
और अगर हम सल्फर की कमी शरीर में पूरी कर दे तो फिर हमको ये नशे की उठने वाली तलब नहीं लगेगी।
अगर आप ये प्रयोग आप ३ से ४ दिन करोगे तो ही आप नशा मुक्त हो जाओगे। अगर कोई बहुत बड़ा नशेबाज हैं या रेगुलर ड्रिंक या कोई भी नशा करते हैं तो उनको ये 7 से 8 दिन लग सकते हैं।
परंतु इस साधारण से प्रयोग कर आप नशे से मुक्ति पा सकते हे ।
" एक ऐसा भी बचपन था "
" एक ऐसा भी बचपन था "
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हम, जो 1965 -1980 के बीच जन्में है, हमें एक विशेष आशीर्वाद प्राप्त हैँ ...
और ऐसा भी नही कि हमें किसी भी आधुनिक संसाधनों से परहेज है......!!!
लेकिन.....
* हमें कभी भी जानवरों की तरह किताबों को बोझ की तरह ढो कर स्कूल नही ले जाना पड़ा ।
* हमारें माता- पिता को हमारी पढाई को लेकर कभी अपने प्रोग्राम आगे पीछे नही करने पड़ते थे !
* स्कूल के बाद हम देर सूरज डूबने तक गली की सड़क पर गली मोहल्ले में खेलते थे।
* हम अपने सभी सच्चे और पक्के दोस्तों के साथ खेलते थे, न की आज की तरह नेट दोस्तों के साथ ।
* जब भी हम प्यासे होते थे तो सीधे नल से पानी पी लिया करते थे और वो पानी भी साफ़ शुद्ध होता था और हमने कभी बॉटल का पानी नही ढूँढा ।
* हम कभी भी चार लोग गन्ने का जूस आपस में बाँट कर के भी बीमार नही पड़े ।
* हम एक प्लेट मिठाई और रोज़ चावल खाकर भी कभी मोटे नही हुए ।
* नंगे पैर घूमने के बाद भी हमारे पैरों को कुछ नही होता था।
* हमें स्वस्थ रहने के लिए कुछ भी अलग ( प्रोटीन - विटामिन) नही लेना पड़ता था ।
* हम कभी कभी अपने खिलोने खुद बना कर भी खेलते थे । अपने दोस्तों के साथ खिलोने आपस में बॉट लेते थे ।
* हम ज्यादातर अपने माता पिता के साथ या उनके पास ही रहे । या कभी भी किसी रिश्तेदार के यहाँ भी बिना किसी झिझक के रह लेते थे ।
* हम अक्सर 2-4 भाई बहन एक जैसे या एक दूसरे के कपड़े पहनना शान समझते थे, तब हममे एक सामान वाली कोई बात नही थी और उसमे भी मजे करते थे ।
* हम बहुत कम ही डॉक्टर के पास जाते थे, और कभी जरुरत पड़ती थी तब डॉक्टर साहब हमारे पास आ जाया करते थे ।
* हमारे पास तब न तो मोबाइल, dvd , Xboxes, PC, Internet, chatting, क्योंकि हमारे पास सच्चे दोस्त थे ।
* हम दोस्तों के घर बिना बताये जाकर मजे करते थे और खेलने के साथ साथ खाने -पीने के मजे लेते थे। हमे कभी उन्हें कॉल करके उनके यहाँ जाना नहीं पड़ा ।
* शायद हम एक अदभुद और सबसे समझदार पीढ़ी है क्योंकि हम वो अंतिम पीढ़ी हैं जो की अपने माता- पिता की सुनते हैं...और साथ ही साथ पहले जो की अपने बच्चों की भी सुनते हैं ।
अब वो ज़माना शायद कभी लोट कर नहीं आ सकता ।
" अभिमान " .
" अभिमान "
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एक घर के मुखिया को यह अभिमान हो गया कि उसके बिना उसके परिवार का काम नहीं चल सकता।
उसकी छोटी सी दुकान थी। उससे जो आय होती थी, उसी से उसके परिवार का गुजारा चलता था।
चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता।वह लोगों के सामने डींग हांका करता था।
एक दिन वह एक संत के सत्संग में पहुंचा। संत कह रहे थे, “दुनिया में किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता।यह अभिमान व्यर्थ है कि मेरे बिना परिवार या समाज ठहर जाएगा। सभी को अपने भाग्य के अनुसार प्राप्त होता है।”
सत्संग समाप्त होने के बाद मुखिया ने संत से कहा, “मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है। मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे।”
संत बोले, “यह तुम्हारा भ्रम है।
हर कोई अपने भाग्य का खाता है।”
इस पर मुखिया ने कहा, “आप इसे प्रमाणित करके दिखाइए।”
संत ने कहा, “ठीक है। तुम
बिना किसी को बताए घर से एक महीने के लिए गायब हो जाओ।
”उसने ऐसा ही किया। संत ने यह बात फैला दी कि उसे बाघ ने अपना भोजन बना लिया है। मुखिया के परिवार वाले कई दिनों तक शोक संतप्त रहे।
गांव वाले आखिरकार उनकी मदद के लिए सामने आए। एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहां नौकरी दे दी। गांव वालों ने मिलकर लड़की की शादी कर दी।
एक व्यक्ति छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्च देने को तैयार हो गया।
एक महीने बाद मुखिया छिपता-छिपाता रात के वक्त अपने घर आया। घर वालों ने भूत समझ कर दरवाजा नहीं खोला।
जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने सारी बातें बताईं तो
उसकी पत्नी ने दरवाजे के भीतर से ही उत्तर दिया,
‘हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है। अब हम पहले से ज्यादा सुखी हैं।’ उस व्यक्ति का सारा अभिमान चूर-चूर हो गया। संसार किसी के लिए भी नही रुकता!!
यहाँ सभी के बिना काम चल सकता है संसार सदा से चला आ रहा है और चलता रहेगा। जगत को चलाने की हाम भरने वाले बडे बडे सम्राट, मिट्टी हो गए, जगत उनके बिना भी चला है।
इसलिए अपने बल का, अपने धन का, अपने कार्यों का, अपने ज्ञान का गर्व व्यर्थ है ।
" दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ सवाल " .
" दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ सवाल "
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राजा भोज ने कवि कालीदास से
दस सर्वश्रेष्ठ सवाल किए ---
1- दुनिया में भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना क्या है ?
''मां''
2- सर्वश्रेष्ठ फूल कौन सा है ?
"कपास का फूल"
3- सर्वश्र॓ष्ठ सुगंध कौनसी है ?
"वर्षा से भीगी मिट्टी की सुगंध"
4-सर्वश्र॓ष्ठ मिठास कौनसी ?
"वाणी की"
5- सर्वश्रेष्ठ दूध ?
"मां का"
6- सबसे से काला क्या है ?
"कलंक"
7- सबसे भारी क्या है ?
"पाप"
8- सबसे सस्ता क्या है ?
"सलाह"
9- सबसे महंगा क्या है ?
"सहयोग"
10-सबसे कडवा क्या है ?
"सत्य"
जंग अगर अपनोंं से हो, तो हार जाना चाहिए..
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एक पत्नी ने अपने पति से आग्रह किया कि वह उसकी छह कमियाँ बताए जिन्हें सुधारने से वह बेहतर पत्नी बन जाए. पति यह सुनकर हैरान रह गया और असमंजस की स्थिति में पड़ गया. उसने सोचा कि मैं बड़ी आसानी से उसे ६ ऐसी बातों की सूची थमा सकता हूँ , जिनमें सुधार की जरूरत थी और ईश्वर जानता है कि वह ऐसी ६० बातों की सूची थमा सकती थी, जिसमें मुझे सुधार की जरूरत थी.
परंतु पति ने ऐसा नहीं किया और कहा - 'मुझे इस बारे में सोचने का समय दो , मैं तुम्हें सुबह इसका जबाब दे दूँगा.'
पति अगली सुबह जल्दी ऑफिस गया और फूल वाले को फोन करके उसने अपनी पत्नी के लिए छह गुलाबों का तोहफा भिजवाने के लिए कहा जिसके साथ यह चिट्ठी लगी हो, "मुझे तुम्हारी छह कमियाँ नहीं मालूम, जिनमें सुधार की जरूरत है. तुम जैसी भी हो मुझे बहुत अच्छी लगती हो."
उस शाम पति जब आफिस से लौटा तो देखा कि उसकी पत्नी दरवाज़े पर खड़ी उसका इंतज़ार कर रही थी, उसकी आंखौं में आँसू भरे हुए थे,यह कहने की जरूरत नहीं कि उनके जीवन की मिठास कुछ और बढ़ गयी थी। पति इस बात पर बहुत खुश था कि पत्नी के आग्रह के बावजूद उसने उसकी छह कमियों की सूची नहीं दी थी.
इसलिए यथासंभव जीवन में सराहना करने में कंजूसी न करें और आलोचना से बचकर रहने में ही समझदारी है।
ज़िन्दगी का ये हुनर भी,
आज़माना चाहिए,
जंग अगर अपनोंं से हो,
तो हार जाना चाहिए..
" समय से पहले " भाग्य से ज्यादा "
" समय से पहले "
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" भाग्य से ज्यादा "
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एक सेठ जी थे -
जिनके पास काफी दौलत थी.
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी
एक बड़े घर में की थी.
:
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण
उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.
जिससे सब धन समाप्त हो गया.
बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी
रोज सेठ जी से कहती कि आप
दुनिया की मदद करते हो,
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए
उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?
सेठ जी कहते कि "जब उनका
भाग्योदय होगा तो अपने आप
सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..."
:
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे
कि तभी उनका दामाद घर आ गया.
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया
और बेटी की मदद करने का विचार
उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के
लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये...
यही सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में
अर्शफिया दबा कर रख दी और
दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय
पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू,
जिनमे अर्शफिया थी दिये...
:
दामाद लड्डू लेकर घर से चला,
दामाद ने सोचा कि इतना वजन
कौन लेकर जाये क्यों न यहीं
मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें
और दामाद ने वह लड्डुओँ का पैकेट
मिठाई वाले को बेच दिया और
पैसे जेब में डालकर चला
गया.
:
उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने
सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से
मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने
दुकानदार से लड्डू मांगे...
मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट
सेठ जी को वापिस बेच दिया.
सेठ जी लड्डू लेकर घर आये..
:
सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो
सेठानी ने लड्डू फोडकर देखा,
अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया.
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के
आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में
अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली...
सेठ जी बोले कि
"भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था
कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा..."
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी
और न ही मिठाई वाले के भाग्य में...
इसलिये कहते हैं कि भाग्य से ज्यादा
और...
समय से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मिलेगा । ।
" मेरा भारत महान " .
" मेरा भारत महान "
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थोड़ा ध्यान से पढ़ कर मर्म समझिएगा ............
आप चाहते है कि आपकी तानाशाही चले और कोई भी आपका विरोध न करे.... तो आप भारत में "न्यायाधीश" बन जाओ..
आप चाहते है की आप लोगो को बेवजह पीटे लेकिन कोई आपको कुछ न बोले....तो आप "पुलिस" वाला बन जाओ..
आप चाहते है की आप एक से बढ़कर एक झूठ बोले अदालत में लेकिन कोई आपको सजा न दे.... तो आप "वकील" बन जाइए..
महिलाये चाहती है की वो खूब मटक मटक करे इधर उधर घुमाँ करे लेकिन कोई उनको कुछ न बोले.... तो वो महिलाये बॉलीवुड में "हेरोइन" बन जाये..
आप चाहते है की आप खूब लूट मार करे लेकिन कोई आपको डाकू न बोले.... तो आप भारत में "राजनेता" बन जाओ..
आप चाहते है की आप दुनिया के हर सुख मांस,मदिरा,स्त्री इत्यादि का आनंद ले लेकिन कोई आपको भोगी या कुछ और न कहे.... तो किसी भी धर्म का "धर्मगुरु" बन जाओ..
आप चाहते है की आप किसी को भी बदनाम कर दे लेकिन आप पर कोई मुकदमा न हो.... तो मीडिया में "रिपोर्टर" बन जाओ..
यकीन मानिये...
आपका कोई बाल भी बांका नहीं कर पाएगा....
भारत में हर "गंदे" काम के लिए एक "संवैधानिक पद" और उसके साथ साथ भरपूर धन उपलब्ध है....
ये किसी धर्म विशेष या व्यक्ति विशेष पर नहीं कहा गया है और न ही किसी की भावना को ठेस पहुँचाना हमारा उद्देश्य हे बल्कि लएक आम इंसान की मुलभुत समस्याओं को ध्यान में रखकर आज के माहोल को बया किया गया कटु सत्य हैँ
इसीलिए मेरा भारत महान है.......
" बेटी की विदाई " .
" बेटी की विदाई "
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कन्यादान हुआ जब पूरा,आया समय विदाई का ।
हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था,सारी रस्म अदाई का ।
बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया ।
पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में छोड़ दिया ।
अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा कहा तुमने ।
मेरे रोने को पल भर भी ,बिल्कुल नहीं सहा तुमने ।
क्या इस आँगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नहीं ।
अब मेरे रोने का पापा,तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं ।
देखो अन्तिम बार देहरी,लोग मुझे पुजवाते हैं ।
आकर के पापा क्यों इनको,आप नहीं धमकाते हैं ।
नहीं रोकते चाचा ताऊ,भैया से भी आस नहीं ।
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है,कोई आता पास नहीं ।
बेटी की बातों को सुन के ,पिता नहीं रह सका खड़ा ।
उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा दौड़ पड़ा ।
कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी ।
जैसे यादों के अक्षर वह,अश्रु बिंदु से धोती थी ।
माँ को लगा गोद से कोई,मानो सब कुछ छीन चला ।
फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला ।
छोटा भाई भी कोने में,बैठा बैठा सुबक रहा ।
उसको कौन करेगा चुप अब,वह कोने में दुबक रहा ।
बेटी के जाने पर घर ने,जाने क्या क्या खोया है ।
कभी न रोने वाला बापू,फूट फूट कर रोया है ।
गुरुवार, 18 जून 2015
Kahani
प्रेरणादायक कहानी ::
---------------------पिज्जा------------------------
पत्नी ने कहा - आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना…
पति- क्यों??
उसने कहा..- अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं
आएगी…
पति- क्यों??
पत्नी- नवरात्रि के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी…
पति- ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता…
पत्नी- और हाँ!!! नवरात्रि के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ उसे? त्यौहार का बोनस..
पति- क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे
देंगे…
पत्नी- अरे नहीं बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा… और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!!
पति- तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो…
पत्नी- अरे नहीं… चिंता मत करो…
मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ… खामख्वा पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे…
पति- वा, वा… क्या कहने!!
हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में??
तीन दिन बाद… पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से...
पति ने पूछा...
पति- क्या बाई?, कैसी रही छुट्टी?
बाई- बहुत बढ़िया हुई साहब… दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना.. त्यौहार का बोनस..
पति- तो जा आई बेटी के यहाँ…मिल ली अपने नाती से…?
बाई- हाँ साब… मजा आया, दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए…
पति- अच्छा!! मतलब क्या किया 500 रूपए का??
बाई- नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट,
40 रूपए की गुड़िया,
बेटी को 50 रूपए के पेढे लिए,
50 रूपए के
पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया,
60 रूपए किराए के लग गए..
25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए
और जमाई के लिए 50 रूपए का बेल्ट लिया अच्छा सा…
बचे हुए
75 रूपए नाती को दे दिए कॉपी-पेन्सिल खरीदने के लिए…
झाड़ू-पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान
पर रटा हुआ था…
पति- 500 रूपए में इतना कुछ???
वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने
लगा...
उसकी आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ
बड़ा सा पिज्ज़ा घूमने लगा,
एक-एक टुकड़ा उसके
दिमाग में हथौड़ा मारने लगा…
अपने एक पिज्जा के
खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा…
पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का,
दूसरा टुकड़ा पेढे का,
तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद,
चौथा किराए का,
पाँचवाँ गुड़िया का,
छठवां टुकड़ा चूडियों का,
सातवाँ जमाई के बेल्ट का
और आठवाँ
टुकड़ा बच्चे की कॉपी-पेन्सिल का..
आज तक उसने
हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी,
कभी पलटाकर नहीं देखा था कि पिज्जा पीछे से कैसा दिखता है…
लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे
पिज्जा की दूसरी बाजू दिखा दी थी…
पिज्जा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे…
“जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिएV
जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ आ गया…।
अच्छा लगे तो शेयर करे। नही तो पड़ने के लिए ध्यन्यबाद।
gumanji patel: रंग रंगीलो रस भरियो, ओ म्हारो राजस्थान।।
gumanji patel: रंग रंगीलो रस भरियो, ओ म्हारो राजस्थान।।: छम-छम बाजे पायली रुके नहीं बरसात हरी मलमली चूनरी तितली चूड़ा हाथ। बादल में मादल बजे नभ गूँजे संतूर मन में बिच्छू-सा चुभे घर है कितनी दूर। कच्...
रंग रंगीलो रस भरियो, ओ म्हारो राजस्थान।।
छम-छम बाजे पायली रुके नहीं बरसात
हरी मलमली चूनरी तितली चूड़ा हाथ।
बादल में मादल बजे नभ गूँजे संतूर
मन में बिच्छू-सा चुभे घर है कितनी दूर।
कच्ची पक्की मेड़ पर एक छाते का साथ
हवा मनचली खींचती पकड़-पकड़ कर हाथ।
बरसी बरखा झूम के सबके मिटे मलाल
खेतों में हलचल बढ़ी खाली हैं चौपाल।
गड़-गड़ बाजी बादरी भिगो गई दालान
खट्ठे मन मीठे हुए क्या जामुन क्या आम।
बादल की अठखेलियाँ बारिश का उत्पात
ऐसा दोनों का मिलन सूखे को दी मात।
राजस्थान। सोने री धरती अठै, चांदी रो असमान।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी। बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे। भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी।
कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
उम्र से पहले बाल सफेद हो रहे हों तो अपनाएं करी पत्ते का ये नुस्खा
उम्र से पहले बाल सफेद हो रहे हों तो अपनाएं करी पत्ते का ये नुस्खा
करी पत्ते भारतीय पकवानों में तड़का लगाने के काम आते हैं। इसे 'मीठी नीम' भी कहा जाता है। मीठी नीम के पत्तों में कई सारे औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। इनकी महक और स्वाद से खाने में तो स्वाद आता ही है, साथ में यह ढेर सारे स्वास्थ लाभ से भी भरपूर है। आजकल कम उम्र में ही बाल सफेद होना एक आम बात है, इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे खराब लाइफस्टाइल या फिर भोजन में सही प्रकार का पोषण न मिलना आदि।
करी पत्ते बालों को काला करने में एक मददगार औषधि है। इनका नियमित उपयोग करने से आपके बालों में जान आ जाएगी और वे काले होने लगेंगे। बहुत ज्यादा केमिकल का इस्तेमाल और प्रदूषण की वजह से बालों को काफी नुकसान होता है। करी पत्ते में वो सारे पोषण तत्व पाए जाते हैं, जो बालों को स्वस्थ रखते हैं। करी पत्तों का पेस्ट बनाकर सारे शरीर पर लगाएं या फिर इसे सीधे बालों की जड़ों में लगाएं। इससे आपके बाल काले, लंबे और घने हो जाएंगें। साथ ही, बालों की जड़ें भी मज़बूत होंगी।
1.बालों का गिरना कम करता है
करी पत्ता में विटामिन बी1 बी 3 बी9 और सी होता है। इसके अलावा इसमें आयरन, कैल्शियम और फॉस्फोरस भी होते हैं। रोज़ाना सेवन से आपके बाल काले लंबे और घने होने लगेंगे। साथ ही बालों में डैंड्रफ भी नहीं होगा।
2.ऐसे करें करी पत्तों का उपयोग
करी पत्ते का एक गुच्छा लेकर उसे साफ पानी से धो लें और धूप में सुखा लें। जब पत्ते सूख जाए। फिर इनका पाउडर बना लें। अब 200 एम एल नारियल के तेल में या फिर जैतून के तेल में लगभग 4 से 5 चम्मच करी पत्ता पाउडर मिक्स करके उबाल लें। दो मिनट के बाद गैस बंद कर तेल को ठंडा होने के लिए रख दें। इसके बाद तेल को छान कर किसी एयर टाइट बोतल में भर कर रख लें। सोने से पहले रोज रात को यह तेल लगाएं और अच्छे से मसाज करें। यदि इस तेल को हल्की आंच पर गर्म कर के लगाया जाए तो जल्दी असर दिखेगा। अगली सुबह सिर को नैचुरल शैंपू से धो लें। इसके आंवला ट्रीटमेंट को आप रोज या फिर हर दूसरे दिन आजमां सकते हैं। इससे आपको बहुत लाभ मिलेगा।
3. करी पत्ते की चाय बनाएं
थोड़ी मात्रा में करी पत्तों को पानी में उबाल लें। उसके बाद इसमें एक नींबू निचोड़ लें और चीनी मिलाएं। एक हफ्ते तक इसे पिएं। यह आपके बालों सफ़ेद होने से बचाएगा। यही नहीं यहआपके पाचन तंत्र के लिए भी काफी फायदेमंद है।
4.पेट संबंधी रोगों में करी पत्तों का इस्तेमाल फायदेमंद होता है। इसके लिए इसे दाल मे तड़का लगाते समय या साउथ इंडियन फूड बनाते समय भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
भोजन में करी पत्ते के उपयोग से पाचन क्रिया भी दुरूस्त रहती है।
करी पत्ता मोटापे की समस्या को दूर करता है। रोजाना इन पत्तों को चबाने से वजन कम होता है।
5.मुंह में छाले और सिरदर्द की समस्या में ताजा करी पत्तों को चबाने से लाभ होता है।
6.यह सीने से कफ को बाहर निकालता है। लाभ के लिए एक चम्मच शहद को एक चम्मच करी पत्ते के रस में मिलाकर उपयोग करें।
7.कुछ करी पत्तों को पीसकर इसमें नींबू की कुछ बूंदे और थोड़ी चीनी मिलाकर खाने से उल्टी की तकलीफ में राहत मिलती है।
8.नियमित रूप से इन पत्तों का उपयोग डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है।
राजस्थानी
पेली अर् आज
रजस्थान री पेली अर् आज री स्थिती पे इक पाणों :-
पेली जात ही पण पात कोणी -- आज जातपात व्हेगी |
राजा हा पण चोर कोणी -- आज चोरडा नेता व्हेग्या |
माण हो पण थोथो कोणी -- आज थोथो गुमाण रेग्यो |
भासा ही पण हिंदी कोणी -- आज हिंदी व्हेगी |
माड़ा हा पण बीमारू कोणी -- आज सगला आपा न बीमारू केवे |
भोला हा पण अचेता कोणी -- आज राजस्थान री चेतना काईठा कठे गी |
मोट्यार हा पण रुलता कोणी -- आज रुलता मोट्यार व्हेग्या |
सिंह हा पण गिंडकडा कोणी --- आज गत गिंडकडा जू व्हेगी ( आपनी छोड़'र फेकेडी बोला ) |
Laxmi vishnu varta
विष्णुजी और लक्ष्मीजी संवाद...
••••••••••••••••••
लक्ष्मी जी : सारा संसार पैसे (मेरे) से चल रहा है,,, अगर मैं नहीं तो कुछ नहीं...
विष्णु जी (मुस्कुरा के) :- सिद्ध करके दिखाओ..???
लक्ष्मी जी ने पृथ्वी पर एक शवयात्रा का दृश्य दिखाया - जिसमे लोग शव पर पैसा फेंक रहे थे,,,, कुछ लोग उस पैसे को लूट रहे थे,,,तो कुछ बटोर रहे थे,,,,तो कोई छीन रहा था...
लक्ष्मी जी :- देखा,,,,,,कितनीकीमत है पैसों की..???
विष्णु जी:- परन्तु लाश नहीं उठी पैसे उठाने के लिए...???
लक्ष्मी जी:- अरे,,,,लाश कैसे उठेगी वो तो मरी हुई है,,,बेजान है...
तब विष्णु जी ने बड़ा खूबसूरत जवाब दिया,,बोले,,,जबतक मैं (प्राण) शरीर में हूँ,,,तब तक ही तेरी कीमत है...
और जैसे ही मैं शरीर से निकला,,,तुम्हारी कोई कीमत नहीं है..!!!
राम-भगत फुली बाई
अबार इया ही बात करता थका फुली बाई रो नाव सुण्यो |
म्हे थो बा रे बारा म अत्तो जाणतो कोणी, जत्ती सूचना मने लादी
बत्ती अठे मांडु हु | थाने अरज ह के जदी थार कण और सूचना होवे थो मणे भिजावो |
फुली बाई जोधपुर कणे री राम-भगत ही, बस राम-राम करती अर थेपडी थापती |
एकर बिरी थेपडीया एक लुगाई चुरा ली | जद फुली बाई न ठा चाल्यो, थो बे बी लुगाई कण गिया
अर केयो कि म्हारी थेपडीया पाछी कर | अत्तो सुनता ही बा लुगावडी फुली बाई हु लडबा लागी |
जद लोग भेला हुग्या अर फुली बाई हु पुछ्यो क
थाने किया ठा के थारी थेपडीया इ कण ह | भगत फुली बाई केयो के म्हारी थेपडीया फोडस्यो जद राम -राम
करसी | लोग अचरज माय पड्ग्या | थेपडीया फुटता ही राम-राम करे | सगळा न फुली बाई री
भगती रो परचो मलग्यो |
आ बात बठे री राणीया कण पूगी, बे फुली बाई रे कण जोधपुर आबा रो संदेसो खिणायो|
फुली बाई जोधपुर पधारी, जद राणीया बाणे केयो के म्हाणे ही कि परवचन सुनावो |
"गैणो-गाठो तन री सोभा , काया माटी रो हाण्डो |
बैठी काई करो ये , राम भजो ओ रांडो |"
अत्तोक परवचन देर, फुली बाई थो आपका पाछी गी अर थेपडीया थापबा माय रमगी |
बुधवार, 17 जून 2015
योग
संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुझाव पर, 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। आमतौर पर लोगों के लिए योग का अर्थ आसन और प्राणायाम होता है, जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए किए जाते हैं, लेकिन योग मात्र कुछ व्यायाम या चिकित्सा नहीं है। यह एकात्मता -अस्तित्व की एकता पर आधारित जीवन का एक तरीका है। अस्तित्व परस्पर संबद्ध, परस्पर संबंधित और परस्परावलम्बित है, क्योंकि यह एक ही चैतन्य की अभिव्यक्ति है, जिसे ईश्वर, परमात्मा या शक्ति आदि रूप में विभिन्न प्रकार से कहा जाता है। आज पर्यावरण और विज्ञान को भी अस्तित्व की इस परस्पर संबद्धता, परस्पर संबंध और परस्परावलंबी होने का एहसास हो गया है। लेकिन पिछली कुछ सदियों से मनुष्य सामाजिक दायित्वों की कीमत पर व्यक्तिवाद और आत्म विकास की कीमत पर और कामुक भोग सरीखे विचारों के प्रभाव में है। इसका प्रभाव परिवारों, समाजों के विघटन और प्रति के ह्रास आदि में देखा जा रहा है।
चौतरफा विघटन के इस संदर्भ में, योग एक जरूरत बन गया है। सारांश में योग शरीर-मन-बुद्धि का स्वयं के साथ, व्यक्ति का परिवार के साथ, परिवार का समाज के साथ, समाज का राष्ट्र के साथ और राष्ट्र का पूरी सृष्टि के साथ एकीकरण है । योग का अर्थ 'युज्यते अनेन इति योग:' है- यह योग जुड़ने की एक प्रक्रिया है। योग आत्मा का परमात्मा से जुड़ना-मिलना है। यह दो टुकड़ों को एक साथ जोड़ने जैसा नहीं है। योग वह अभ्यास है, जिसके द्वारा आपको पता चलता है कि सब-कुछ एक ही है। शरीर उसका एक अस्थायी प्राकट्य है। वास्तविक आत्मा हमेशा अप्रभावित, आनंदित और अपरिवर्तनीय बना रहता है।
इसका एहसास करने के लिए, इस आनंदित आत्मा के साथ अपनी पहचान जोड़ने के लिए योग है। इसे बौद्धिक स्तर पर तो समझा जा सकता है, लेकिन इसका अनुभव करने के लिए लंबे और सतत् अभ्यास की आवश्यकता होती है। कुछ लोग कहते हैं कि योग महर्षि पतंजलि द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन योग का उल्लेख वेदों में भी किया गया है। ईश्वर के सबसे पहले प्रकट रूप हिरण्यगर्भ: ने विवस्वान् को योग सिखाया और विवस्वान ने इसे मनु को सिखाया और फिर मनु से इसे कई योग्य पुरुषों और महिलाओं को सिखाया था। शैव परंपरा में बताया जाता है कि योग हमें भगवान शिव से मिला है।
रामायण और महाभारत जैसे हमारे पुराणों में और इतिहास में कई योगियों और योगिनियों का उल्लेख है। महर्षि पतंजलि ने अपने समय में योग के उपलब्ध ज्ञान को एकत्रित, संकलित और संपादित किया, जो उनके अपने अनुभव और योग की साधना पर आधारित है । इस प्रकार उन्होंने आठ अंगों से, विधियों से अभ्यास किया जाने वाला योग हमें दिया है। यदि वास्तव में हमारी आत्मा आनंदस्वरूप है तो हम इसका अनुभव क्यों नहीं करते हैं? यदि सब-कुछ एक ही की अभिव्यक्ति है तो हमें हमेशा एकात्मता का अनुभव क्यों नहीं होता है? उत्तर है निरंतर विचारों के कारण या चित्त वृत्तियों के कारण या सरल शब्दों में चित्त की अशुद्धि के कारण।
इन अशुद्धियों को दूर करने या वृत्तियों को रोकने का तरीका योग के आठ अंगों का अभ्यास करना है। एकात्मता का एहसास करने का एक अनुभवसिद्ध विज्ञान योगशास्त्र है। ये आठ चरण नहीं हैं, बल्कि आठ अंग हैं, जिनका अर्थ है कि हमें सभी आठ अंगों का नियमित रूप से अभ्यास करना चाहिए। संक्षेप में योग का अभ्यास दो पक्षीय है-अंतरंग और बहिरंग। आपको अपने दिव्य आत्मा को महसूस करना होता है। दूसरा प्रकट आत्मा की सेवा में, जो परिवार, समाज, राष्ट्र और पूरी सृष्टि है-अपनी शरीर-मन को लगा देना होता है। दोनों आवश्यक हैं, क्योंकि वे एक दूसरे को पुष्ट करते हैं। मानव समाज का आध्यात्मिक विकास होने के लिए योग का यह दो पक्षीय अभ्यास निश्चित ही आवश्यक है। जीवन के इस महान शास्त्र के संरक्षक होने के नाते पहले हमें इसका अभ्यास करना होगा, ताकि पूरे विश्व का हम मार्गदर्शन कर सकें।
(लेखिका स्वामी विवेकानन्द केंद्र, कन्याकुमारी की उपाध्यक्षा हैं तथा 38 वषोंर् से जीवन व्रती कार्यकर्ता हैं)
योग के आठ अंग
यम :- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह। यम (प्रति सहित) दूसरों के साथ हमारे संबंधों को परिभाषित करता है और इसलिए यम का अभ्यास सबसे महत्वपूर्ण है। यम के अभ्यास के बिना, योग के अन्य अंगों का अभ्यास उपयोगी नहीं होगा। अगर यम का अभ्यास नहीं किया गया, तो आप योगाभ्यास में प्रगति नहीं कर सकते हैं और जिन्होंने प्रगति कर ली है, उनका पतन भी हो सकता है।
नियम: - 5शौच (आंतरिक और बाह्य) शुद्धि, संतोष, तप स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान (ईश्वर के प्रति समर्पण हैं)। नियम स्वयं को तैयार करने के लिए, आत्म विकास के लिए हैं, और स्वयं से, स्वयं के दृष्टिकोण से संबंधित हैं।
आसन: - आसनों का अभ्यास हमारे शरीर को, आसन को दृढ़ बनाने के लिए किया जाता है।
प्राणायाम : - प्राण पर नियंत्रण करने का सबसे आसान तरीका सांस पर नियंत्रण करना है। प्राणायाम में सांस लेने की गति नियंत्रित की जाती है।
प्रत्याहार :- इंद्रियों की बाह्योन्मुखी प्रवृत्ति को बदलकर और उन्हें अंतर्मुखी करना प्रत्याहार है।
धारणा:- धारणा है किसी विशेष स्थान पर मन को लंबी अवधि तक स्थिर करना, चाहे वह स्थान किसी वस्तु का या शरीर का कोई अंग हो।
ध्यान : - धारणा के स्थान पर एक विचार-एक भावना का एक अटूट प्रवाह ध्यान है।
समाधि: - जब यह विचार भी चला जाता है कि 'मैं ध्यान कर रहा हूं' तो इसे समाधि कहा जाता है।-
Yoga
योग का मकसद आपके भीतर एक दूसरे आयाम को व्यवस्थित करना है, जो भौतिक से परे होता है। उसके सक्रिय होने पर ही, धीरे-धीरे लाखों अलग-अलग रूपों में आपके लिए अस्तित्व के द्वार खुलने लगते हैं। जिन चीजों की मौजूदगी का आपको पता तक नहीं था, वे आपके लिए एक जीवंत सचाई बन जाते हैं। इसकी वजह सिर्फ यह होती है कि भौतिक से परे एक आयाम आपके अंदर सक्रिय हो जाता है।
'उप-योग' और अंगमर्दन
योग कोई व्यायाम नहीं है। इसके दूसरे आयाम भी हैं। योग को एक व्यायाम प्रक्रिया तक सीमित कर देना एक गंभीर अपराध होगा। मगर योग में 'उप योग' नामक एक चीज होती है, जिसका मतलब है़, सहायक योग या चीजों को करने की उपयोगी प्रक्रियाएं। इसके साथ कोई आध्यात्मिक आयाम जुड़ा नहीं होता। अगर आप उप योग या अंगमर्दन योग करें, तो 'फिटनेस' पाना निश्चित है। इन तरीकों से आप बिना किसी उपकरण के 'फिटनेस' पा सकते हैं। आपको बस फर्श पर छह गुणा छह फीट जगह की जरुरत है। आप बहुत 'फिट' हो सकते हैं और अपना बदन कसरती बना सकते हैं। लेकिन इससे आपकी मांसपेशियां जरुरत से ज्यादा बड़ी नहीं होंगी। बहुत से लोग शरीर को इस तरह बना लेते हैं। उन्हें लगता है कि वे फिट हैं मगर मुझे ऐसा लगता है कि वे जंजीर में बंधे हैं! शरीर के सही ढंग से काम करने के लिए सिर्फ आपकी मांसपेशी की मजबूती या उभार नहीं, बल्कि आपके शरीर का लचीलापन भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
योग में हम सिर्फ मांसपेशियों की ताकत पर ध्यान नहीं देते। सभी अंगों का स्वस्थ होना भी बहुत महत्वपूर्ण है। योग प्रणाली को इसलिए विकसित किया गया ताकि सभी अंग स्वस्थ रहें। चाहे आपका बदन कितना भी कसरती हो, अगर आपका 'लीवर' ठीक से काम नहीं कर रहा है, तो उसका क्या फायदा? यह बहुत जरूरी है कि शरीर लचीला और काम के लायक हो।
मनुष्य की मांसपेशियां एक अद्भुत चीज हैं। हमारी मांसपेशियां शानदार काम कर सकती हैं। उन्हें मजबूत के साथ ही बहुत लचीला बनाते हुए उनकी क्षमता को और बेहतर किया जा सकता है। अगर आप खूब वजन उठाने वाले व्यायाम करते हैं, तो आपकी मांसपेशियां बहुत उभरी हुई लगेंगी, मगर उनमें कोई लचीलापन नहीं होगा। ऐसे बहुत से लोगों को आप देखेंगे जिनकी मांसपेशियां खूब उभरी होंगी लेकिन वे ठीक से सूर्य नमस्कार तक नहीं कर सकते। वे झुक भी नहीं सकते। अगर आप सिर्फ ऐसी मांसपेशियां चाहते हैं, जो अच्छी लगें तो इन दिनों ऐसा करने के बहुत आसान तरीके हैं। आप 'बाइसेप इंप्लांट' लगवा सकते हैं।
हां, 'बॉडी बिल्डिंग' आपको जानवरों जैसी ताकत देती है। मगर आप वैसी ही ताकत बिल्कुल अलग तरीके से भी बना सकते हैं और सबसे बढ़कर अपने शरीर को लचीला रख सकते हैं जो बहुत महत्वपूर्ण है। खुशहाली के कई पहलू हैं- अच्छी सेहत, ऊर्जा, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलू। जब हम सुबह 30 मिनट से एक घंटे तक का समय देते हैं, तो हम यह चाहते हैं कि इसके फायदे हमारे पूरे 'सिस्टम' को समान रूप से मिले, हमें सिर्फ उभरी हुई मांसपेशियां नहीं चाहिए।
अगर आप मांसपेशी बढ़ाना चाहते हैं, तो क्या आपको वजन नहीं उठाना चाहिए? आप उठा सकते हैं क्योंकि आधुनिक तकनीक ने हमारे जीवन से शारीरिक अभ्यास और क्रिया को खत्म कर दिया है। हमें बाल्टी भर कर पानी नहीं उठाना पड़ता या इस तरह के दूसरे काम नहीं करने पड़ते। सब कुछ मशीनों से किया जाता है। अपने आईफोन के अलावा आपको कुछ और नहीं उठाना या ढोना पड़ता। अब चूंकि आप दिन भर अपने हाथ-पैरों का इस्तेमाल नहीं करते, इसलिए हल्के-फुल्के वजन उठाने वाले व्यायाम में कोई बुराई नहीं है। मगर उप योग में व्यायाम या अभ्यास करने के लिए आपके अपने शारीरिक भार का इस्तेमाल करना होता है। अंगमर्दन यही है- अभ्यास करने के लिए अपने शरीर के भार का प्रयोग करना। इसके बाद, आपके पास कोई बहाना नहीं होगा कि घर के आस-पास कोई जिम नहीं था। आप जहां भी हों, यह अभ्यास कर सकते हैं क्योंकि आपका शरीर हमेशा आपके पास होता है। यह किसी भी 'वेट ट्रेनिंग' की तरह ही शरीर को ताकतवर बनाने में असरदार है, साथ ही यह शरीर पर कोई बेकार का दबाव नहीं डालता। यह आपको एक समझदार इंसान बनाने के साथ-साथ आपको मजबूत भी बनाता है- बहुत मजबूत।
राम-भगत फुली बाई
राम-भगत फुली बाईअबार इया ही बात करता थका फुली बाई रो नाव सुण्यो |
म्हे थो बा रे बारा म अत्तो जाणतो कोणी, जत्ती सूचना मने लादी
बत्ती अठे मांडु हु | थाने अरज ह के जदी थार कण और सूचना होवे थो मणे भिजावो |
फुली बाई जोधपुर कणे री राम-भगत ही, बस राम-राम करती अर थेपडी थापती |
एकर बिरी थेपडीया एक लुगाई चुरा ली | जद फुली बाई न ठा चाल्यो, थो बे बी लुगाई कण गिया
अर केयो कि म्हारी थेपडीया पाछी कर | अत्तो सुनता ही बा लुगावडी फुली बाई हु लडबा लागी |
जद लोग भेला हुग्या अर फुली बाई हु पुछ्यो क
थाने किया ठा के थारी थेपडीया इ कण ह | भगत फुली बाई केयो के म्हारी थेपडीया फोडस्यो जद राम -राम
करसी | लोग अचरज माय पड्ग्या | थेपडीया फुटता ही राम-राम करे | सगळा न फुली बाई री
भगती रो परचो मलग्यो |
आ बात बठे री राणीया कण पूगी, बे फुली बाई रे कण जोधपुर आबा रो संदेसो खिणायो|
फुली बाई जोधपुर पधारी, जद राणीया बाणे केयो के म्हाणे ही कि परवचन सुनावो |
"गैणो-गाठो तन री सोभा , काया माटी रो हाण्डो |
बैठी काई करो ये , राम भजो ओ रांडो |"
अत्तोक परवचन देर, फुली बाई थो आपका पाछी गी अर थेपडीया थापबा माय रमगी |
मंगलवार, 16 जून 2015
Hamara jodhpur rajasthani
भौरानभोर उठती
पीसणो पीसती
खीचड़ो कूटती
रोट्या पोंवती
गाँव की लुगायाँ।
पूसपालो ल्यावंती
गायाँ ने नीरती
दूध ने दुवती
बिलोवणो करती
गाँव की लुगायाँ।
बुहारी काढ़ती
बरतन मांजती
कपड़ा धोंवती
टाबर बिलमावती
गाँव की लुगायाँ।
खेत जावंती
निनाण करांवती
सीट्या तुड़ावंती
खलो कढावंती
गाँव की लुगायाँ।
पाणी ल्यांवती
गोबर थापती
माथो बांवती
मेहंदी मांडती
गाँव की लुगायाँ।
बरत करती
भजन गांवती
पीपल सींचती
काणी सुनती
गाँव की लुगायाँ।
तातो जिमावती
लुखी सूखी खांवती
सगळौ काम
सळटाया पछै सोंवती
गाँव की लुगाँया।
अच्छा लगे तो शेयर करना मत भूलना।।।
एक इंजिनियर को जॉब नही मिली
तो उसने क्लिनिक खोला और बाहर लिखा तीन सौ रूपये मे ईलाज करवाये..
ईलाज नही हुआ तो एक हजार रूपये वापिस....
एक डॉक्टर ने सोचा कि एक हजार रूपये कमाने का अच्छा मौका है वो क्लिनिक पर गया और बोला : मुझे किसी भी चीज का स्वाद नही आता है
इंजिनियर : बॉक्स नं.२२ से दवा निकालो और ३ बूँद पिलाओ
नर्स ने पिला दी
मरीज(डॉक्टर) : ये तो पेट्रोल है
इंजिनियर : मुबारक हो आपको टेस्ट महसूस हो गया लाओ तीन सौ रूपये
डॉक्टर को गुस्सा आ गया
कुछ दिन बाद फिर वापिस गया
पुराने पैसे वसूलने
मरीज(डॉक्टर) :साहब मेरी याददास्त कमजोर हो गई है |
इंजिनियर : बॉक्स नं. २२ से दवा निकालो और ३ बूँद पिलाओ |
मरीज (डॉक्टर) : लेकिन वो दवा तो जुबान की टेस्ट के लिए है |
इंजिनियर : ये लो तुम्हारी याददास्त भी वापस आ गई |
लाओ तीन सौ रूपये |
इंजिनियर रॉक डॉक्टर शॉक |
कक्किये री मुहाळणीं / मुहारणीं
- कक्किये री मुहाळणीं / मुहारणीं
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क = कक्कियो कोड़ को / कक्कियो कोड़ रो / कक्कियो केवालियो / कक्कियो केवड़ो
[ यानी क किसो ? क कोड़ आल़ो/ कोड़ में लागे जाको ! क बो जाको केवालिये में लागे जाको ! क बो जाको केवड़े में लागे ]
ष= षषा षूणा चीरियो [ राजस्थानी में देवनागरी लिपि आवण सूं पैली " ख " नी हो संस्कृत री भान्त " ष " धुनी " ख " ही |]
ख = खख्खो खाजूलो [ टाबरां रै खावण री खाजली ]
ग=गग्गा गोरी गाय
घ=घघ्घा घाट पिलाने जाय
ड़- नन्ना खंडो चान्दियो
च= चिड़े चिडी री चूंच
छ =छछिया पिचिया पोटला
ज =जजजा जेर बाणियों
झ=झझ्झा झाड की लाकडी
ञ=अंडै बांडो चंद्रमा [ खांडै अंडै जेड़ो ] [ हिंदी में तो 'ञ' खाली है ]
ट=टट्टिया टट्टिया दो पोड़ी
ठ=ठठिया ठाकर गांठडी
ड= डडडा कूकर पूंछडी
ढ = ढढढा ढेर बाणियों
ण = राणो ताणे तेल / राणों ताणे तीन लाकडी [ हिंदी में तो 'ण ' खाली है ]
त=तत्तो तत्तूतियो कान को
थ = थथ्थियो थावर
द= ददियो दीवटो
ध= धध्धो धाणक छोडयां जाए
न= आगे नन्नो भाज्यां जाए
प = पप्पा पटकी पाटकी
फ = फफ्फो फालिंगो
ब= बब्बा बेंगण बाड़ी रा / बब्बा बाड़ी बैंगणियाँ
भ = भभ्भा भाभजी भटारको / भभ्भा मूंछ कटारकी
म= मम्मा ले कसारकी
य = यय्या यय्या पाटलो
र = र रा रो रींकलो
ल = लल्ला लल्ला लापसी
व= वव्वा वैंगण वासदे
श =शाश्शी सौलंकी
ष= षषषो खांडको
ह = ह हा हा हिन्दोली / ह हा हां बोल़ो
: = अड़े तड़े दो बिन्दोली
राजस्थानी आखरमाळा री मुहाळणीं
राजस्थानी आखरमाळा री मुहाळणीं
====================
1-बिलाठी री मुहाळणीं / मुहारणीं
============
अ-आ = आईड़ा-आइडा दो भाइडा [ अ +अ =आ ]
आ=बडे भाई कानां [अ+आ री लगमात ] अ रै आ री लगमात रो कान लागियो |
इ + ई = इडी - ईडी दो बेना
ई =ई बड़ी बेन चोटियां [ बड़ी बेन रे चोटी पण छोटी बेन रे चोटी कोनी ]
उ -ऊ =उड़ा -उड़ा दो भाई
उ-उड़ा = उड़ा -ऊड़ा दो छोटा -मोटा ऊँटिया
ऊ =ऊंटा लदी कतार
ए = एको एकलो
ऐ = एका ऊपर लाकड़ी
ओ= ओ बैठो ओठियो
औ = दो-दो मात औरणियों
Village & farm
गाँव और खेत की तरफ जाकर आया हूँ. अखबारों में नहीं छपेगा, चेनलों में नहीं दिखेगा, वह हाल बता देता हूँ. यह भी बता देता हूँ कि भारत के अधिकतर निवासी गाँव में रहते हैं और खेती उनका मुख्य व्यवसाय है. हम स्वयं भले खेती न करते हों पर हमारे देश के अधिकतर लोग जो काम करते हैं, उस व्यवसाय का सम्मान हमने करना चाहिए और उस व्यवसाय की सामान्य जानकारी भी हमें होनी चाहिए ताकि देश की दशा के बारे कोई भ्रम न रहे.
१. बारिश का इन्तजार है. रेडियो कह रहा है कि मानसून पहले आएगा और सामान्य रहेगा. किसान इस समाचार से खुश है. मन में भले अविश्वास रहता है पर हर हाल में दिल बहलाए रखना किसान को आता है.
२. अधिकतर के मन में तनाव है कि इस बार की खेती के लिए पैसा कहाँ से जुटाया जाएगा. यह हर बार रहता है. राजस्थान की सरकार ने कहा है कि बिना ब्याज डेढ़ लाख रूपया देंगे पर सहकारी बैंक ने तीस हजार से ज्यादा देने से मन कर दिया है. विपक्ष चुप है. जातिगत समीकरण और पैसे से चुनाव जीतने की रणनीति में व्यस्त है.
कुछ किसानों ने पिछले दिनों किसी बच्चे की शादी में ज्यादा खर्च कर दिया है तो कुछ ने किसी परिजन की मौत पर नुक्ती-चक्की खिला दी है. महंगाई के दौर में ये झूठे दिखावे और मजबूरियां अब सीजन के समय भारी पड़ रहे हैं. ब्याज और भू माफिया इन मजबूरियों वाले परिवारों पर गिद्ध दृष्टि लगाए बैठे हैं ! ऐसे में बच्चों की पढ़ाई का सीजन भी शुरू होने वाला है. उनकी पढ़ाई की कुछ बलि चढ़ेगी. डबल मार.
३. नकली बीज और दवाइयां, महंगा खाद और डीजल भी दर्द को बढाने वाले हैं.
४. बीमा कहने भर को है. एक दिलासा है, रिस्क कवर करने वाला बीमा नहीं है. यहाँ तो अब भी मुसाफिर अपनी जोखिम पर सवारी करता है. पिछले साल के क्लेम भी नहीं मिले हैं. किसान क्लेम की शर्तें कभी भी पूरी नहीं कर पायेगा.
५. अभी खेती के काम आने वाली सभी चीजें महंगी होगी, पर पांच महीने बाद फसल अपने निचले स्तर के दाम पर बिकेगी.
लम्बी सोच से घबराकर किसान कहीं और मन लगा रहा है. गाँव के बाजार में ताश चल रही है, कुछेक लोग नरेगा की जुगाली कर लेते हैं. बीडियों के सुट्टे खींचे जा रहे हैं,गुठका चबाया जा रहा है और शाम को हर गाँव में उपलब्ध शराब की दुकान तो है ही. युवा इन दिनों क्रिकेट और मोबाइल में मस्त है. घर के टोटे-नफे से बेखबर !
'अभिनव राजस्थान' की 'अभिनव कृषि' में सब बदल देंगे. मौका लगने दो.
एक बेटे ने पिता से पूछा - पापा ये 'सफल जीवन' क्या होता है ?
पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए।
बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था...
थोड़ी देर बाद बेटा बोला,
पापा.. ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें !!
ये और ऊपर चली जाएगी...
पिता ने धागा तोड़ दिया ..
पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आइ और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...
तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया .,,,,
बेटा..
'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..
हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं
जैसे :
घर,
परिवार,
अनुशासन,
माता-पिता आदि
और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...
वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..
इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे
परन्तु
बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो
बिन धागे की पतंग का हुआ...'
"अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."
" धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन' कहते हैं बेटा " ! ! !
Swami vivekanand
सन् 1902 में एक professor
ने अपने छात्र से पुछा....
क्या वह भगवान था
जिसने इस संसार की हर
वस्तु को
बनाया...?
छात्र का जवाब : हां।
उन्होंने फिर पुछा:- शैतान
क्या हैं...?
क्या भगवान ने इसे भी
बनाया ?
छात्र चुप हो गया.......!
फिर छात्र ने आग्रह
किया कि-क्या वह उनसे
कुछ
सवाल पुछ सकता हैं...?
Professor ने इजाजत दी
उसने पुछा-क्या ठण्ड
होती
हैं..?
Professor ने कहा: हां
बिल्कुल क्या तुम्हे यह
महसुस नहीं
होती....?
Student ने कहा:- मैं माफी
चाहता हुं सर लेकिन आप
गलत
हो।
गर्मी का पुर्ण रुप से लुप्त
होना ही ठण्ड कहलाता
हैं, जबकि इसका अस्तित्व
नहीं होता। ठण्ड होती
ही नहीं..?
Student ने फिर पुछा:-
क्या अन्धकार होता हैं...?
Professor ने कहा:-
हां,होता हैं....
Student ने कहा:- आप फिर
गलत है सर।
अन्धकार जैसी कोई चीज
नहीं होती वास्तव में
इसका कारण
रोशनी का पुर्ण रुप से
लुप्त होना हैं सर हमने
हमेशा गर्मी और
रोशनी के बारे में पढा और
सुना हैं।
ठण्ड और अन्धकार के बारे
में नहीं।वैसे ही भगवान
हैं....
और....
बस इसी तरह शैतान भी
नहीं होता,l वास्तव में
पुर्ण रुप से
भगवान में विश्वास सत्य
और आस्था का ना होना
ही शैतान का
होना हैं।
वह छात्र थे :- स्वामी
विवेकानन्द..!
Eagle (baaz)
बाज लगभग 70 वर्ष जीता है ....
परन्तु अपने जीवन के 40वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है ।
उस अवस्था में उसके शरीर के
3 प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं .....
पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है, तथा शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं ।
चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है,
और भोजन में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है ।
पंख भारी हो जाते हैं, और सीने से चिपकने के कारण पूर्णरूप से खुल नहीं पाते हैं, उड़ान को सीमित कर देते हैं ।
भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना,
और भोजन खाना .. तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं ।
उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं....
1. देह त्याग दे,
2. अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे !!
3. या फिर "स्वयं को पुनर्स्थापित करे" !!
आकाश के निर्द्वन्द एकाधिपति के रूप में.
जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं,
अंत में बचता है तीसरा लम्बा और अत्यन्त पीड़ादायी रास्ता ।
बाज चुनता है तीसरा रास्ता ..
और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है ।
वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, एकान्त में अपना घोंसला बनाता है ..
और तब स्वयं को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है !!
सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है,
चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं है पक्षीराज के लिये !
और वह प्रतीक्षा करता है
चोंच के पुनः उग आने का ।
उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है,
और प्रतीक्षा करता है ..
पंजों के पुनः उग आने का ।
नयी चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक-एक कर नोंच कर निकालता है !
और प्रतीक्षा करता है ..
पंखों के पुनः उग आने का ।
150 दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा के बाद ...
मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान पहले जैसी....
इस पुनर्स्थापना के बाद
वह 30 साल और जीता है ....
ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ ।
इसी प्रकार इच्छा, सक्रियता और कल्पना, तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं हम इंसानों में भी !
हमें भी भूतकाल में जकड़े
अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी ।
150 दिन न सही.....
60 दिन ही बिताया जाये
स्वयं को पुनर्स्थापित करने में !
जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और
नोंचने में पीड़ा तो होगी ही !!
और फिर जब बाज की तरह उड़ानें भरने को तैयार होंगे ..
इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी,
अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी ।
हर दिन कुछ चिंतन किया जाए
और आप ही वो व्यक्ति हे
जो खुद को दुसरो से बेहतर जानते है ।
सिर्फ इतना निवेदन की निष्पक्षता के साथ छोटी-छोटी शुरुवात करें परिवर्तन करने की ।
विचार कर जीवन में आत्मसात कर लेने वाला है यह संदेश.....
रविवार, 14 जून 2015
*साथै जासी प्रीत*
*साथै जासी प्रीत*
मद में चालै लोगड़ा , क्या ग्यानी क्या सूर ।
आब गमावै आपरी , थकां फूटरा पूर ।।
ग्यान हांडकी आपरी , ढकगै राखो आप ।
छलकत लछकत खूटसी , बणसी भूंडी छाप ।।
ग्यान कमायो आप जे, बांटो जग में जाय ।
खुद कमावै खुद खावै , बै डांगर कहवाय ।।
जग सूं पाछा जांवता, साथै जासी प्रीत ।
प्रीत बांटता जायस्यो , जग गावैला गीत ।।
हेत कमाई आपरी , बाकी कूड़ा काम ।
कूड़ करम नै छोडगै, खूब कमाओ दाम ।।
भाषा बोलै आपरी , जग में जीया जंत ।
भाषा छोडै आपरी , उण रो नेड़ो अंत ।।
मायड़ भाषा बोलतां , सीखो भाषा और ।
खुद री भाषा छोडगै, पाप करोला घोर ।।
बीनणी,
पाती लेज्या डाकिया जा मरवण रै देश ।
प्रीत बिना जिणो किसो कैजे ओ सन्देश ॥
काळी कोसा आंतरै परदेशी री प्रीत ।
पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत
पनघट
पनघट पायल बाज्या करती, सुगनु चुड़लो हाथा मै,
रूप रंगा रा मेला भरता, रस बरस्या करतो बातां मै..
हान्स हान्स कामन घणी पूछती, के के गुज़री रात्यां मै,
घूंघट माई लजा बीनणी, अर पल्लो देती दांता मै...
नीर बिहुणी हुई बावड़ी, सूना पणघट घाट भायली,
छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो, गोटे हाळी कांचली,
मांग हींगलू नथ रो मोती, माथे रखडी सांकली...
जगमग जगमग दिवलो जुगतो, पळका पाडता गैणा मै,
घनै हेत सूं सेज सजाती, काजल सारयां नैणा मै...
वाह म्हारी
तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं शाख रे
तू बादल मैं बिजुरी, तू पंछी मैं पात रे
ना सरोवर, ना बावड़ी, ना कोई ठंडी छांव
ना कोयल, ना पपीहरा, ऐसा मेरा गांव रे
कहाँ बुझे तन की तपन, ओ सैयां सिरमोल्(?)
चंद्र-किरन तो छोड़ कर, जाए कहाँ चकोर
जाग उठी है सांवरे, मेरी कुआंरी प्यास रे
(पिया) अंगारे भी लगने लगे आज मुझे मधुमास रे
तुझे आंचल मैं रखूँगी ओ सांवरे
काली अलकों से बाँधूँगी ये पांव रे
चल बैयाँ वो डालूं की छूटे नहीं
मेरा सपना साजन अब टूटे नहीं
मेंहदी रची हथेलियाँ, मेरे काजर-वाले नैन रे
(पिया) पल पल तुझे पुकारते, हो हो कर बेचैन रे
ओ मेरे सावन साजन, ओ मेरे सिंदूर
साजन संग सजनी बनी, मौसम संग मयूर
चार पहर की चांदनी, मेरे संग बिठा
अपने हाथों से पिया मुझे लाल चुनर उढ़ा
केसरिया धरती लगे, अम्बर लालम-लाल रे
अंग लगा कर साहिब रे, कर दे मुझे निहाल रे
"वक़्त" पर एक प्यारी सी कविता,
"हर ख़ुशी है लोगों के दामन में पर हँसने के लिये वक़्त नहीं...
दिन रात दौड़ती दुनिया में अपनी ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त नहीं...
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं..
हैं सारे नाम मोबाइल में पर बात करने के लिये वक़्त नहीं...
गैरों की क्या बात करें जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं...
आँखों में है नींद भरी पर चैन से सोने का ही वक़्त नहीं,
दिल है ग़मो से भरा हुआ पर रोने का भी वक़्त नहीं...
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े की थकने का भी वक़्त नहीं,
पराये एहसानों की क्या कद्र जब अपने सपनों के लिये वक़्त नहीं...
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी इस व्यस्त ज़िन्दगी का क्या होगा,
यहा हर पल मरने वालों को जीने के लिये भी वक़्त नहीं..."
वाह म्हारी खेजड़ी
खेजड़ी का वृक्ष राजस्थान के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है. यह जेठ के महीने में भी हरा रहता है. ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यहछायादेती है. जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यहचारादेता है, जोलूंगकहलाता है. इसका फूलमींझरकहलाता है. इसका फलसांगरीकहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है. यह फल सूखने परखोखाकहलाता है जो सूखा मेवा है. इसकी लकडी मजबूत होती है जो किसान के लिएजलानेऔरफर्नीचरबनाने के काम आती है. इसकी जड़ सेहलबनता है. अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है. सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसकोछपनियाअकालकहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे. इस पेड़ के निचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है. पांडवों ने अंतिम वर्ष के अज्ञातवास में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाया था.
यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं. राजस्थानी में यहखेजडी,जांटीयाजांटकहलाता है. पंजाबी मेंजंडकहते है, गुजराती में इसेसमीयासुमराकहते है. सिन्धी में यहकंडीकहलाता है. तमिल मेंवणीकहते हैं. युनाइटेड अरब अमीरात में इसे गफ कहते हैं जहाँ का यह राष्ट्रीय वृक्ष है.
मंगलवार, 9 जून 2015
राजस्थानी 18
एक बार औरंगजेब के दरबार
में एक शिकारी जंगल से
पकड़कर एक बड़ा भारी
शेर लाया !
लोहे के पिंजरे में बंद शेर
बार-बार दहाड़ रहा था !
बादशाह कहता था... इससे
बड़ा भयानक शेर दूसरा नहीं मिल
सकता ! दरबारियों ने
हाँ में हाँ मिलायी.. किन्तु वहाँ मौजूद
राजा यसवंत सिंह
जी ने कहा - इससे भी अधिक
शक्तिशाली शेर मेरे पास है !
क्रूर एवं अधर्मी औरंगजेब को बड़ा क्रोध
हुआ ! उसने
कहा तुम अपने शेर को इससे लड़ने
को छोडो..
यदि तुम्हारा शेर हार
गया तो तुम्हारा सर काट
लिया जायेगा ...... !
दुसरे दिन किले के मैदान में
दो शेरों का मुकाबला देखने
बहुत बड़ी भीड़
इकट्ठी हो गयी ! औरंगजेब बादशाह
भी ठीक समय पर आकर अपने सिंहासन
पर बैठ
गया !
राजा यशवंत सिंह अपने दस वर्ष के पुत्र
पृथ्वी सिंह के
साथ आये ! उन्हें देखकर बादशाह ने
पूछा-- आपका शेर
कहाँ है ? यशवंत सिंह बोले- मैं अपना शेर
अपने साथ
लाया हूँ ! आप केवल लडाई
की आज्ञा दीजिये !
बादशाह की आज्ञा से जंगली शेर
को लोहे के बड़े
पिंजड़े में
छोड़ दिया गया ! यशवंत सिंह ने अपने
पुत्र को उस पिंजड़े
में घुस जाने को कहा !
बादशाह एवं
वहां के लोग हक्के-
बक्के रह गए ! किन्तु दस वर्ष
का निर्भीक बालक
पृथ्वी सिंह पिता को प्रणाम करके
हँसते-हँसते शेर के
पिंजड़े में घुस गया ! शेर ने पृथ्वी सिंह
की ओर देखा !
उस तेजस्वी बालक के नेत्रों
में देखते ही एकबार तो वह
पूंछ दबाकर पीछे हट गया..
लेकिन मुस्लिम सैनिकों द्वारा
भाले की नोक से उकसाए
जाने पर शेर क्रोध में दहाड़
मारकर पृथ्वी सिंह पर टूट पड़ा !
वार बचा कर वीर बालक एक ओर
हटा और
अपनी तलवार खींच ली !
पुत्र को तलवार निकालते हुए देखकर
यशवंत सिंह ने पुकारा - बेटा, तू यह
क्या करता है ? शेर के पास तलवार है
क्या जो तू उसपर तलवार चलाएगा ?
यह
हमारे हिन्दू-धर्म की शिक्षाओं के
विपरीत है और
धर्मयुद्ध नहीं है !
पिता की बात सुनकर पृथ्वी सिंह ने
तलवार फेंक
दी और
निहत्था ही शेर पर टूट पड़ा ! अंतहीन
से दिखने वाले
एक
लम्बे संघर्ष के बाद आख़िरकार उस छोटे
से बालक ने शेर
का जबड़ा पकड़कर फाड़ दिया और फिर
पूरे शरीर
को चीर
दो टुकड़े कर फेंक दिया !
भीड़ उस वीर
बालक
पृथ्वी सिंह
की जय-जयकार करने लगी ! अपने.. और
शेर के
खून से
लथपथ पृथ्वी सिंह जब पिंजड़े से बाहर
निकला तो पिता ने
दौड़कर अपने पुत्र को छाती से
लगा लिया !
तो ऐसे थे हमारे पूर्वजों के कारनामे..
जिनके मुख-मंडल
वीरता के ओज़ से ओतप्रोत रहते थे !
और आज हम क्या बना रहे हैं
अपनी संतति को..
सारेगामा लिट्ल चैंप्स के नचनिये.. ?
आज समय फिर से मुड़ कर इतिहास के
उसी औरंगजेबी काल की ओर ताक
रहा है.. हमें
चेतावनी देता हुआ सा.. कि ज़रुरत है
कि हिन्दू अपने
बच्चों को फिर से वही हिन्दू संस्कार
दें..
ताकि वक़्त पड़ने पर वो शेर से भी भिड़
जाये..!!!!!
तीखी बात--
तीखी बात--
आलोचक दो तरह के होते हैं, एक वो जो आपकी आलोचना इसलिए करते हैं ताकि आपके अंदर बदलाव आये और आप पहले से बेहतर बने,ताकि जो कमी/अवगुण है वो दूर हो जाए...
दूसरे किस्म के आलोचक वो लोग होते हैं...जो सिर्फ भोकना/टोकना/ऊँगली करना/मुह मारना जानते हैं..वो आपको किसी भी हाल में बर्दास्स्त नहीं कर पाते..इसमें भी दो प्रकार होते हैं एक अनपढ़ और दूसरा पढ़ा लिखा गवार .. सिर्फ जलनखोरी..बिना तर्क की बात करने में इन लोगो की पीएचडी होती है.. इनकी ख़ास बात ये होती है की एक मिटटी का ढेला उठाना भी इनके बस से बाहर होता है..फिर दिमाग का इस्तेमाल करना तो कोसो दूर....
पर आप सभी हितैषी/आलोचकों को मेरा प्यार भरा स्नेह...क्युकी अच्छे बदलाव लाने में आप सभी का अमूल्य योगदान है.. और वैसे भी दूसरे किस्म के लोगो के लिए फेसबुक की ब्लॉक लिस्ट जिंदाबाद है||
...पूरी उम्मीद है इस पोस्ट पर भी एक न एक व्यक्ति अपने कुतर्को से अपनी बेवकूफी का सबूत जरूर देगा ..देखते हैं पहले कौन कुतर्की आता है ??
"ससुराळ जावती बेटी रे मन री आवाज माँ रे वास्ते..
"ससुराळ जावती बेटी रे मन री आवाज माँ रे
वास्ते..
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माँ थारी लाडी नै, तूं लागै घणी प्यारी |
सगळा रिश्तां में, माँ तूं है सै सूं न्यारी
निरवाळी ||
नौ महीना गरभ मै राखी, सही घणी तूं पीड़ा |
ना आबा द्यूं अब, कोई दुखड़ा थारै नेड़ा ||
तूं ही माँ म्हनै हिंडायो, चौक तिबारा में
पालणों |
माँ तूं ही सिखायो म्हनै, अंगणिया में चालणों
||
सोरी घणी आवै निंदड़ळी, माँ थारी गोदी मै
|
इतराती चालूं मैं पकड़ नै, माँ थारी चुन्दड़ी का
पल्ला नै ||
हुई अठरा बरस की लाडी, करयो थै म्हरो
सिंणगार |
मथी भेजो म्हनै सासरिये, थां बिन कियां
पड़ेली पार ||
मथी करज्यो थै कोई चिंता, संस्कारी ज्ञान
दियो थै मोकळो |
म्हूं थारी ही परछाई हूँ, ना आबा द्यूं ला कोई
थानै ओळमो |
Jako rake sahiya mar sake na koy
किसी जंगल मे एक गर्भवती हिरणी थी जिसका प्रसव होने को ही था . उसने एक तेज धार वाली नदी के किनारे घनी झाड़ियों और घांस के पास एक जगह देखी जो उसे प्रसव हेतु सुरक्षित स्थान लगा. अचानक उसे प्रसव पीड़ा शुरू होने लगी, लगभग उसी समय आसमान मे काले काले बादल छा गए और घनघोर बिजली कड़कने लगी जिससे जंगल मे आग भड़क उठी . वो घबरा गयी उसने अपनी दायीं और देखा लेकिन ये क्या वहां एक बहेलिया उसकी और तीर का निशाना लगाये हुए था, उसकी बाईं और भी एक शेर उस पर घात लगाये हुए उसकी और बढ़ रहा था अब वो हिरणी क्या करे ?, वो तो प्रसव पीड़ा से गुजर रही है , अब क्या होगा?, क्या वो सुरक्षित रह सकेगी?, क्या वो अपने बच्चे को जन्म दे सकेगी ?, क्या वो नवजात सुरक्षित रहेगा?, या सब कुछ जंगल की आग मे जल जायेगा?, अगर इनसे बच भी गयी तो क्या वो बहेलिये के तीर से बच पायेगी ? या क्या वो उस खूंखार शेर के पंजों की मार से दर्दनाक मौत मारी जाएगी? जो उसकी और बढ़ रहा है, उसके एक और जंगल की आग, दूसरी और तेज धार वाली बहती नदी, और सामने उत्पन्न सभी संकट, अब वो क्या करे? लेकिन फिर उसने अपना ध्यान अपने नव आगंतुक को जन्म देने की और केन्द्रित कर दिया . फिर जो हुआ वो आश्चर्य जनक था . कडकडाती बिजली की चमक से शिकारी की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, और उसके हाथो से तीर चल गया और सीधे भूखे शेर को जा लगा . बादलो से तेज वर्षा होने लगी और जंगल की आग धीरे धीरे बुझ गयी. इसी बीच हिरणी ने एक स्वस्थ शावक को जन्म दिया . ऐसा हमारी जिन्दगी मे भी होता है, जब हम चारो और से समस्याओं से घिर जाते है, नकारात्मक विचार हमारे दिमाग को जकड लेते है, कोई संभावना दिखाई नहीं देती , हमें कोई एक उपाय करना होता है., उस समय कुछ विचार बहुत ही नकारात्मक होते है, जो हमें चिंता ग्रस्त कर कुछ सोचने समझने लायक नहीं छोड़ते . ऐसे मे हमें उस हिरणी से ये शिक्षा मिलती है की हमें अपनी प्राथमिकता की और देखना चाहिए, जिस प्रकार हिरणी ने सभी नकारात्मक परिस्तिथियाँ उत्पन्न होने पर भी अपनी प्राथमिकता "प्रसव "पर ध्यान केन्द्रित किया, जो उसकी पहली प्राथमिकता थी. बाकी तो मौत या जिन्दगी कुछ भी उसके हाथ मे था ही नहीं, और उसकी कोई भी क्रिया या प्रतिक्रिया उसकी और गर्भस्थ बच्चे की जान ले सकती थी उसी प्रकार हमें भी अपनी प्राथमिकता की और ही ध्यान देना चाहिए . हम अपने आप से सवाल करें, हमारा उद्देश्य क्या है, हमारा फोकस क्या है ?, हमारा विश्वास, हमारी आशा कहाँ है, ऐसे ही मझधार मे फंसने पर हमें अपने इश्वर को याद करना चाहिए , उस पर विश्वास करना चाहिए जो की हमारे ह्रदय मे ही बसा हुआ है . जो हमारा सच्चा रखवाला और साथी है....,
Ayurvedik dohavali
दोहावली...... बहुत की काम की जानकारी....
१
दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय, होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय..
२
बहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल, यूकेलिप्टिस तेल लें, सूंघें डाल रुमाल..
३
अजवाइन को पीसिये , गाढ़ा लेप लगाय, चर्म रोग सब दूर हो, तन कंचन बन जाय..
४
अजवाइन को पीस लें , नीबू संग मिलाय, फोड़ा-फुंसी दूर हों, सभी बला टल जाय..
५
अजवाइन-गुड़ खाइए, तभी बने कुछ काम, पित्त रोग में लाभ हो, पायेंगे आराम..
६
ठण्ड लगे जब आपको, सर्दी से बेहाल, नीबू मधु के साथ में, अदरक पियें उबाल..
७
अदरक का रस लीजिए. मधु लेवें समभाग, नियमित सेवन जब करें, सर्दी जाए भाग..
८
रोटी मक्के की भली, खा लें यदि भरपूर, बेहतर लीवर आपका, टी० बी० भी हो दूर..
९
गाजर रस संग आँवला, बीस औ चालिस ग्राम, रक्तचाप हिरदय सही, पायें सब आराम..
१०
शहद आंवला जूस हो, मिश्री सब दस ग्राम, बीस ग्राम घी साथ में, यौवन स्थिर काम..
११
चिंतित होता क्यों भला, देख बुढ़ापा रोय, चौलाई पालक भली, यौवन स्थिर होय..
१२
लाल टमाटर लीजिए, खीरा सहित सनेह, जूस करेला साथ हो, दूर रहे मधुमेह..
१३
प्रातः संध्या पीजिए, खाली पेट सनेह, जामुन-गुठली पीसिये, नहीं रहे मधुमेह..
१४
सात पत्र लें नीम के, खाली पेट चबाय, दूर करे मधुमेह को, सब कुछ मन को भाय..
१५
सात फूल ले लीजिए, सुन्दर सदाबहार, दूर करे मधुमेह को, जीवन में हो प्यार..
१६
तुलसीदल दस लीजिए, उठकर प्रातःकाल, सेहत सुधरे आपकी, तन-मन मालामाल..
१७
थोड़ा सा गुड़ लीजिए, दूर रहें सब रोग, अधिक कभी मत खाइए, चाहे मोहनभोग.
१८
अजवाइन और हींग लें, लहसुन तेल पकाय, मालिश जोड़ों की करें, दर्द दूर हो जाय..
१९
ऐलोवेरा-आँवला, करे खून में वृद्धि, उदर व्याधियाँ दूर हों, जीवन में हो सिद्धि..
२०
दस्त अगर आने लगें, चिंतित दीखे माथ, दालचीनि का पाउडर, लें पानी के साथ..
२१
मुँह में बदबू हो अगर, दालचीनि मुख डाल, बने सुगन्धित मुख, महक, दूर होय तत्काल..
२२
कंचन काया को कभी, पित्त अगर दे कष्ट, घृतकुमारि संग आँवला, करे उसे भी नष्ट..
२३
बीस मिली रस आँवला, पांच ग्राम मधु संग, सुबह शाम में चाटिये, बढ़े ज्योति सब दंग..
२४
बीस मिली रस आँवला, हल्दी हो एक ग्राम, सर्दी कफ तकलीफ में, फ़ौरन हो आराम..
२५
नीबू बेसन जल शहद , मिश्रित लेप लगाय, चेहरा सुन्दर तब बने, बेहतर यही उपाय..
२६.
मधु का सेवन जो करे, सुख पावेगा सोय, कंठ सुरीला साथ में , वाणी मधुरिम होय.
२७.
पीता थोड़ी छाछ जो, भोजन करके रोज, नहीं जरूरत वैद्य की, चेहरे पर हो ओज..
२८
ठण्ड अगर लग जाय जो नहीं बने कुछ काम, नियमित पी लें गुनगुना, पानी दे आराम..
२९
कफ से पीड़ित हो अगर, खाँसी बहुत सताय, अजवाइन की भाप लें, कफ तब बाहर आय..
३०
अजवाइन लें छाछ संग, मात्रा पाँच गिराम, कीट पेट के नष्ट हों, जल्दी हो आराम..
३१
छाछ हींग सेंधा नमक, दूर करे सब रोग, जीरा उसमें डालकर, पियें सदा यह भोग..
हमारा राजस्थान
कठै गया बे गाँव आपणा
कठै गयी बे रीत ।
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
गयो जमानो बीत ||
दुःख दर्द की टेम घडी में
काम आपस मै आता।
मिनख सूं मिनख जुड्या रहता,
जियां जनम जनम नाता ।
तीज -त्योंहार पर गाया जाता ,
कठै गया बे गीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
गयो जमानो बीत ||(1)
गुवाड़- आंगन बैठ्या करता,
सुख-दुःख की बतियाता।
बैठ एक थाली में सगळा ,
बाँट-चुंट कर खाता ।
महफ़िल में मनवारां करता ,
कठै गया बे मीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
गयो जमानो बीत ||(2)
कम पीसो हो सुख ज्यादा हो,
उण जीवन रा सार मै।
छल -कपट,धोखाधड़ी,
कोनी होती व्यवहार मै।
परदेश में पाती लिखता ,
कठै गयी बा प्रीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
गयो जमानो बीत ]
हमारा राजस्थानी
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एक दिन की बात है ,
लड़की की माँ खूब परेशान होकर अपने
पति को बोली की एक तो हमारा एक समय
का खाना पूरा नहीं होता और बेटी साँप
की तरह
बड़ी होती जा रही है .
गरीबी की हालत में
इसकी शादी केसे करेंगे ?
बाप भी विचार में पड़ गया . दोनों ने दिल पर पत्थर रख
कर एक फेसला किया की कल बेटी को मार कर
गाड़ देंगे .
दुसरे दिन का सूरज निकला , माँ ने लड़की को खूब लाड
प्यार किया , अच्छे से नहलाया , बार - बार उसका सर चूमने
लगी .
यह सब देख कर लड़की बोली : माँ मुझे
कही दूर भेज रहे हो क्या ? वर्ना आज तक आपने
मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया ,
माँ केवल चुप रही और रोने लगी ,
तभी उसका बाप हाथ में फावड़ा और चाकू लेकर
आया , माँ ने लड़की को सीने से लगाकर बाप
के साथ रवाना कर दिया .
रस्ते में चलते - चलते बाप के पैर में कांटा चुभ गया , बाप एक दम से
निचे बेथ गया , बेटी से देखा नहीं गया उसने
तुरंत कांटा निकालकर फटी चुनरी का एक
हिस्सा पैर पर बांध दिया .
बाप बेटी दोनों एक जंगल में पहुचे बाप ने फावड़ा लेकर
एक गढ़ा खोदने लगा बेटी सामने बेठे - बेठे देख
रही थी , थोड़ी देर बाद
गर्मी के कारण बाप को पसीना आने
लगा . बेटी बाप के पास गयी और
पसीना पोछने के लिए
अपनी चुनरी दी .
बाप ने धक्का देकर बोला तू दूर जाकर बेठ।
थोड़ी देर बाद जब बाप गडा खोदते - खोदते थक गया ,
बेटी दूर से बैठे -बैठे देख
रही थी, जब
उसको लगा की पिताजी शायद थक गये तो पास
आकर बोली पिताजी आप थक गये है . लाओ
फावड़ा में खोद देती हु आप थोडा आराम कर लो . मुझसे
आप की तकलीफ
नहीं देखि जाती .
यह सुनकर बाप ने अपनी बेटी को गले
लगा लिया, उसकी आँखों में आंसू
की नदिया बहने लगी , उसका दिल
पसीज गया , बाप बोला : बेटा मुझे माफ़ कर दे , यह
गढ़ा में तेरे लिए ही खोद रहा था . और तू
मेरी चिंता करती है , अब
जो होगा सो होगा तू हमेशा मेरे कलेजा का टुकड़ा बन कर
रहेगी में खूब मेहनत करूँगा और
तेरी शादी धूम धाम से करूँगा -
सारांश : बेटी तो भगवान की अनमोल भेंट
है , बेटा - बेटी दोनों समान है , उनका एक समान पालन
करना हमारा फ़र्ज़ है ....!!
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सोमवार, 8 जून 2015
राजस्थानी 15
हमें राजस्थानी होने पर गर्व है।
राजस्थान का वर्णन इस कविता के द्वारा .......
आँखों के दरमियान मैं गुलिस्तां दिखाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मैं आपको राजस्थान दिखाता हुँ|
खेजड़ी के साखो पर लटके फूलो की कीमत बताता हुँ,
मै साम्भर की झील से देखना कैसे नमक उठाता हुँ|
मै शेखावाटी के रंगो से पनपी चित्रकला दिखाता हुँ,
महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथा सुनाता हुँ|
पद्मावती और हाड़ी रानी का जोहर बताता हुँ,
पग गुँघरु बाँध मीरा का मनोहर दिखाता हुँ|
सोने सी माटी मे पानी का अरमान बताता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ|
हिरन की पुतली मे चाँद के दर्शन कराता हुँ,
चंदरबरदाई के शब्दों की वयाख्या सुनाता हुँ|
मीठी बोली, मीठे पानी मे जोधपुर की सैर करता हुँ,
कोटा, बूंदी, बीकानेर और हाड़ोती की मै मल्हार गाता हुँ|
पुष्कर तीरथ कर के मै चिश्ती को चाद्दर चढ़ाता हुँ,
जयपुर के हवामहल मै, गीत मोहबत के गाता हुँ|
जीते सी इस धरती पर स्वर्ग का मैं वरदान दिखाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ||
कोठिया दिखाता हुँ, राज हवेली दिखाता हुँ,
नज़्ज़रे ठहर न जाए कही मै आपको कुम्भलगढ़ दिखाता हुँ|
घूंघट में जीती मर्यादा और गंगानगर का मतलब समझाता हुँ,
तनोट माता के मंदिर से मै विश्व शांति की बात सुनाता हुँ|
राजिया के दोहो से लेके, जाम्भोजी के उसूल पढ़ाता हुँ,
होठो पे मुस्कान लिए, मुछो पे ताव देते राजपूत की परिभाषा बताता हुँ|
सिक्खो की बस्ती मे, पूजा के बाद अज़ान सुनाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ||
कौन किसका जंवाई
कौन किसका जंवाई
दोस्तों आज हम विचार करेंगे
जवांई (पाव्णा और बेटी रे घरवाला) के साथ
2003 से पहले और उसके बाद उनके साथ किये जाने वाले व्यवहार के बारे में।।।
1 ) पहले के जवांई जब आने का पता चलता तो साळा & ससुर जी दाढ़ी बनाते और नए कपडे पहनकर स्वागत के लिए तैयार रहते थे।
2) जवांई आ जाते तो बहुत मान मनवार मिलती और छोरी (पत्नी ) दौड़कर रसोडे में घुस जाती थी सासु जी पानी पिलाती और धीरे से घूंघट से कहती आगये जी ।
3) आने का समाचार मिलते ही गली मोहल्ले के लोग चाय के लिए बुलाते थे
और काकिया ससुरजी या मामी ससुर जी के यहा तो करकरे आटे का हलवा (सिरा ) भी बनाते
4 )जवांई खुद को ऐसा महसूस करता था की वो पूरे गांव का जवांई है
5) जवांई के घर में आने के बाद घर के सब लोग डिसिप्लिन में आ जाते थे
6 )जवाँई बाथरूम से निकलते तो उनके हाथ lux साबुन से धूलवाते भले खुद उजाला साबुन से नहाते थे
7 )पावणा अगर रात में रुक जाते तो सुबह में उनका साला कॉलगेट और ब्रश हाथ में लेकर आस पास घूमते रहता था।
8 )जब जवांई का अपनी बीवी को लेकर जाने का समय हो जाता तो स्कूटर को पहले गैर में डालकर भन्ना भोट निकलते थे जिस से उनका ससुराल में प्रभाव बना रहता था।
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अब आज के जवांई की दुर्दशा :
1. आज के जमाई की कोई भी लुगाई लाज नहीं निकालती हैं, खुद की बीवी भी सलवार कुर्ते में आस पास घूमती रहती हैं।
काकी सासुजी और मामी सासुजी कोई दूसरी रिश्तेदारी निकाल कर बोलती हैं " ओपणे जवाइं से क्या घूंघटं राख़णा "
2. साळो अगर कुंवारों हैं और अगर उसकी सगाई नहीं हो पा रही हैं तो इसका ताना जमाई को सुनाया जाएगा की" आटा साटा करते तो ब्याव हो ज्यातो "
3. पानी पीना हो तो खुद रसोड़े में जाना पड़ेगा, कोई लाकर देने वाला नहीं हैं।
4. ससुराल पक्ष की किसी शादी में जमाई को इसीलिए ज्यादा मनवार करके बुलाया जाता हैं ताकि जवांई बच्चों को संभाल सके। बीवी और सासूजी आराम से बिंदोली और महिला संगीत में डांस कर सके।
कौन किसका जंवाई
राजस्थानी sanskarti
राजस्थानी संस्कृति रा ठरका निराळा। संस्कृति पण कांण राख्यां। कांण रैवै राख्यां। हाल घड़ी बडेरां कांण राख राखी है। पण कीं अरथां में मोळी पड़ती लखावै। सरूआत आंगणै सूं। आंगणै सूं सबद खूट रैया है। काको, मामो, मासो, फूंफो, कुलफी आळै भेळो अंकल। मामी, मासी, भूआ, काकी, नरसां भेळी अंटी बणगी। देखतां-देखतां ई आपणी संस्कृति खुर रेई है। ढाबै कुण? मोट्यार तो अंग्रेजी रा कुरला करै। सो कीं भूल'र माइकल जै सन रा नातेदार बणन ढूक्या है।
बात नातां-रिस्तां री। नातेदार बै जका आपरी पांचवीं पीढी सूं पैली फंटग्या। पण भाईपो कायम। रिस्तेदार बो जकै सूं आपरो खून रो रिस्तो। यानी चौथी पीढी सूं लेय'र आप तांई। गिनायत कैवै खुद रै गोत नै टाळ आप री जात रै दूजै लोगां नै। जिण सूं आपरा ब्याव-संबंध ढूक सकै। कड़ूंम्बो कैवै दादै रै परिवार नै। लाणो-बाणो हुवै खुद रो परिवार। गनो होवै संबंध। जियां म्हारी छोरी रो गनो व्यासां रै ढूक्यो है। तो ओ होयो गनो। छोरै अर छोरी रै सासरै आळा होया सग्गा। ऐ बातां अब कुण जाणै?
आजकाळै कीं रिस्ता-नाता तो इलाजू कळा जीमगी। कूख मौत होवण सूं काका-काकी, बाबो-बडिया, भाई-भौजाई, मासो-मासी, फूंफो-भूआ, नणद-नणदोई, जेठ-जेठाणी, देवर-देराणी, काकी सासू, बडिया सासू, भूआ सासू, मासी सासू, मामी सासू जै़डा सबद आंगण में लाधणा दौ'रा होग्या। जद ऐ नामी रिस्तेदार, नातेदार अर गिनायतिया ई नीं लाधसी तो टाबरियां री ओळ कठै।
भेळप अर ऐ कठ राजस्थान्या री आण। पण अब तो ब्याव रै तुरता-फुरती न्यारा होवण री भावना। कुण जाणै कै देवर रो छोरो देरुतो, छोरी देरुती, जेठ रो बेटो जेठूतो, बेटी जेठूती, नणद रा बेटा-बेटी नाणदो अर नाणदी, काकै अर भूआ रा बेटा-बेटी, भतीजा-भतीजी, आजकाळै एक छोरै रो चलण। छोरी तो होवण ई नीं देवै। एक छोरै रै एक छोरो। बाकी रिस्तां रै लागै मोरो। आ होयगी भावना। घणकरै दिनां में टाबर पूछसी- 'पापा ये भूआ और फूंफा या होता है? मासा-मासी किसे कहते हैं?' ना साळा-साळी रैसी, ना मासा-मासी अर ना मामा-मामी। काका-काकी, भूआ-फूंफा अर बाबा-बडिया सोध्यां ई नीं लाधैला
दूसरो ब्याव करणियो दूजबर, किणी रै बिना ब्याव बैठणो, चू़डी पैरणो बजै। इण नै नातो कैवै। नातै जावण आळी लुगाई नै नातायत। नातै गयोड़ी लुगाई रै लारै आयोडै टाबर नै गेलड़ कैवै। जद रिस्ता-नाता, गन्ना, अर कड़ूम्बै रो ग्यान नीं तो संस्कारां रो ध्यान कठै। बडै रै पगाणै बैठणो, सिराणै नीं। भेळा जीमतां टाबर पछै जीमणो सरू करै पण चळू पैली करै। बडेरो आदमी जीमणो पैली सरू करै पण चळू छेकड़ में करै। सवारी माथै लुगाई लारलै आसण बैठै। आगलै पासै बैन, भौजाई, मा, दादी, काकी, बडिया, भूआ आद बैठै। अब पण ऐ बातां तो भाषा रै लारै ई रुळगी।
राजस्थाni ra hindi arth
राजस्थानी शब्द
वीरा भाई
भावज भाभी
भंवर बड़ा लड़का
भवरी बड़ी लड़की
छोरा-छोरी लड़का-लड़की
डांगरा पशु
ढोर भेड़बकरी
बींद पती/दुल्हा
बींदणी बहू/दुल्हन
लालजी देवर
लाडो बेटी
लाडलो प्रिये
गीगलो/टाबर बच्चा
लाडी सोतन
गेलड़ दूसरे विवाह में स्त्री के साथ जाने वाला बच्चा
बावनो लम्बाई में छोटा पुरुष
बावनी लम्बाई में छोटी महिला
घनेड़ो-घनेड़ी भानजा-भनजी
भूड़ोजी फूफाजी
धणी-लुगाई पती-पत्नी
भरतार पती
कलेवो नाश्ता
गिवार अनपढ
बेगा बेगा जल्दी जल्दी
बेसवार मसाला
जिनावर जीव जंतु
सिरख रजाई
गूदड़ा छोटा बेड/गद्दा
पथरना छोटा बेड
हरजस भजन
पतड़ो पंचांग
मीती तीथी
बाखल लान
तीपड़ तीसरा माला
शाल सामने का बड़ा कमरा
तखडीओ तराजू
पसेरी/धडी 5 kg
मण 40 kg
सेर 1kg
धुण 20 kg
बेड़ियो मसाला रखने का बॉक्स
घडूची पानी का मटका रखने की वास्तु
ओरा कोने का कमरा
परिंडा पानी रखने की जगह
खेळ पशुओ के पानी पिने का स्थान
कोटड़ी बोक्स रुम
मालिया छत पर कमरा
गुम्हारिया तलघर
कब्जो ब्लाउज
मूण मिट्टी का बड़ा घड़ा
मटकी मिट्टी का घड़ा
ठाटो कागज गला कर अनाज
रखने का बर्तन
गूणीया चाय/दूध/पानी रखने का
छोटा बर्तन तड़काउ भोर
उन्द्दालो गर्मी का मौसम
सियालो सर्दी का मौसम
चौमासो बारिश का मौसम
पालर पाणी पीने का बारिश का
पानी
बाकल पाणी पीने का नल का पानी
दिसा जाना पायखाना जाना
रमणन खेलने
तिस (लगना) प्यास (लगना)
गिट्ना खाना
ठिकाणा पता (Address)
किना उडाणा पतंग उड़ाना
ख्वासजी नाई
अगूण पूर्व
आथूंण पश्चिम
कांजर बनजारा
झरोखो खिड़की/विंडोज
बाजोट लकड़ी की बड़ी चौकी
मांढणो लिखना
कुलियों मिट्टी का छोटा बर्तन
मायरो भात
मुदो तिलक (विवाह में वर का)
मेल विवाहिक प्रीतिभोज
मुकलाओ गोणा/ बालविवाह उपरांत पहली बार पीहर से पत्नी को घर लाना
बटेऊ मेहमान
पावना जवाई
सुतली रस्सी
ठूंगा लिफ़ाफ़ा
पूँगा/मुशल बेवकूफ़
लूण नमक
कंदों प्याज
खूंटी वस्तु/वस्त्र लटकाने का स्थान
कासंन बर्तन
जापो बच्चा पैदा होना
ओबरो अनाज रखने का स्थान
खाट/माचो बड़ी चारपाई
खटुलो छोटू चारपाई
घुचरियो कुत्ते का बच्चा
मुहमांखी मधु मक्खी
भिलड घोडा मक्खी
लूकटी लोमड़ी
गदडो सियार
खुसड़ा जूते चप्पल
बरिंडा बरामदा
आंगी स्त्री की चोली
कांचली स्त्री की कुर्ती
झालरों गले में पहने की माला
गंजी/बंडी बनियान
झबलो/झूबलो पवजात बच्चे का वस्त्र
मांडि कलब (वस्त्रो में दी जाने वाली)
आंक अक्षर
तागड़ी स्त्रिओ के कमर पर पहने का आभूषण
झुतरा बाल
मोड़ों साधू
पूरियों जानवरों के भोजन का स्थान
चूंण आटा
राखूंडो बर्तन साफ करने का स्थान
सांकली सरकंडा
होद पानी रखने की भुमि गत टंकी
उस्तरा रेजर/दाढ़ी करने का औजार
नीरो पशुओ का चारा
चोबारा ऊपर का कमरा
टोळडो ऊँट का बच्चा
उन्दरो चूहा
किलकीटारि गिलहरी
पिडो बैठने की रस्सी/ऊन की चौकी
गुरुवार, 4 जून 2015
Vastu tips for alltime
1=रसोई घर के पास में पेशाब करना
2=टुटी हूई कन्घी से कंगा करना
3=टूटा हूआ सामान ईस्तेमाल करना
4= घर में कूडा-करकट रखना
5=रिश्तेदारो से बदसुलकी करना
6=बांए पैर से पेैट पहनना
7=सांध्यवेला मे सोना
8=मेहमान आने पर नाराज होना
9=आमदनी से ज्यादा खर्च करना
10=दाँत से रोटी काट कर खाना
11=चालीस दीन से ज्यादा बाल रखना
12=दांत से नाखून काटना
13=खडे खडे पैंट पहनना
14=औरतो का खडे खडे बाल बांधना
15 =फटे हुए कपड़े पहनना
16=सुबह सूरज निकलने तक सोते रहना।
17=पेंड के नीचे पेशाब करना
18=बैतुल खला में बाते करना
19=उल्टा सोना।
20=श्यमसान भूमि में हसना
21=पीने का पानी रात में खुला रखना
22=रात में मागने वाले को कुछ ना देना
23=बुरे ख्याल लाना।
24=पवित्रता के बगैर धर्मग्रंथ पढना।
25=इस्तंजा करते,वक्त बाते,करना।
26=हाथ धोए बगैर खाना खना।
27=अपनी औलाद को कोसना।
28=दरवाजे पर बैठना
29=लहसन प्याज के छीलके जलाना
30=साधु फकिर से रोटी या फिर और कोई चीज खरीदना।
31=फुक मारके दिपक बुझाना
32=ईश्वर को धन्यवाद किए बगैर भोजन करना।
33=गलत कसम खाना।
,34=जूत चप्पल उल्टा देख कर
उसको सिधा नही करना।
35=हालात जनाबत मे हजामत करना।
36=मकड़ी का जाला घर में रखना।
37=रात को झाडू लगाना।
38=अन्धेरे में खाना।
Maaa ek sapna hai
"माँ ” का क़र्ज़
एक बेटा पढ़-लिख कर बहुत बड़ा आदमी बन गया .
पिता के स्वर्गवास के बाद माँ ने
हर तरह का काम करके उसे इस काबिल बना दिया था.
शादी के बाद पत्नी को माँ से शिकायत रहने लगी के
वो उन के स्टेटस मे फिट नहीं है.
लोगों को बताने मे उन्हें संकोच होता है कि
ये अनपढ़ उनकी सास-माँ है...!
बात बढ़ने पर बेटे ने...एक दिन माँ से कहा..
"माँ ”_मै चाहता हूँ कि मै अब इस काबिल हो गयाहूँ कि कोई
भी क़र्ज़ अदा कर सकता हूँ
मै और तुम दोनों सुखी रहें
इसलिए आज तुम मुझ पर किये गए अब तक के सारे
खर्च सूद और व्याज के साथ मिला कर बता दो .
मै वो अदा कर दूंगा...!
फिर हम अलग-अलग सुखी रहेंगे.
माँ ने सोच कर उत्तर दिया...
"बेटा”_हिसाब ज़रा लम्बा है....सोच कर बताना पडेगा मुझे.
थोडा वक्त चाहिए.
बेटे ने कहा माँ कोई ज़ल्दी नहीं है.
दो-चार दिनों मे बता देना.
रात हुई,सब सो गए,
माँ ने एक लोटे मे पानी लिया और बेटे के कमरे मे आई.
बेटा जहाँ सो रहा था उसके एक ओर पानी डाल दिया.
बेटे ने करवट ले ली.
माँ ने दूसरी ओर भी पानी डाल दिया.
बेटे ने जिस ओर भी करवट ली माँ उसी ओर पानी डालती रही.
तब परेशान होकर बेटा उठ कर खीज कर.
बोला कि माँ ये क्या है ?
मेरे पूरे बिस्तर को पानी-पानी क्यूँ कर डाला..?
माँ बोली....
बेटा....तुने मुझसे पूरी ज़िन्दगी का हिसाब बनानें को कहा था.
मै अभी ये हिसाब लगा रही थी कि मैंने कितनी रातें तेरे बचपन मे
तेरे बिस्तर गीला कर देने से जागते हुए काटीं हैं.
ये तो पहली रात है
ओर तू अभी से घबरा गया ..?
मैंने अभी हिसाब तो शुरू
भी नहीं किया है जिसे तू अदा कर पाए...!
माँ कि इस बात ने बेटे के ह्रदय को झगझोड़ के रख दिया.
फिर वो रात उसने सोचने मे ही गुज़ार दी.
उसे ये अहसास हो गया था कि माँ का
क़र्ज़ आजीवन नहीं उतरा जा सकता.
माँ अगर शीतल छाया है.
पिता बरगद है जिसके नीचे बेटा उन्मुक्त भाव से जीवन बिताता है.
माता अगर अपनी संतान के लिए हर दुःख उठाने को तैयार
रहती है.
तो पिता सारे जीवन उन्हें पीता ही रहता है.
हम तो बस उनके किये गए कार्यों को
आगे बढ़ाकर अपने हित मे काम कर रहे हैं.
आखिर हमें भी तो अपने बच्चों से वही चाहिए ना ........!
मेवाड़ की रानी पद्मिनी : एक शौर्य गाथा वीर वीरांगनाओं की धरती राजपूताना मेवाड़ की रानी पद्मिनी
मेवाड़ की रानी पद्मिनी : एक शौर्य गाथा वीर वीरांगनाओं की धरती राजपूताना
वीर वीरांगनाओं की धरती राजपूताना.....जहाँ के इतिहास में आन बान शान या कहें कि सत्य पर बलिदान होने वालों की अनेक गाथाएं अंकित है.....एक कवि ने राजस्थान के वीरों के लिए कहा है :
"पूत जण्या जामण इस्या मरण जठे असकेल
सूँघा सिर, मूंघा करया पण सतियाँ नारेल......"
{ वहां ऐसे पुत्रों को माताओं ने जन्म दिया था जिनका उदेश्य के लिए म़र जाना खेल जैसा था .....जहाँ की सतियों अर्थात वीर बालाओं ने सिरों को सस्ता और नारियलों को महंगा कर दिया था......(यह रानी पद्मिनी के जौहर को इंगित करता है)......}
१३०२ इश्वी में मेवाड़ के राजसिंहासन पर रावल रतन सिंह आरूढ़ हुए. उनकी रानियों में एक थी पद्मिनी जो श्री लंका के राजवंश की राजकुँवरी थी. रानी पद्मिनी का अनिन्द्य सौन्दर्य यायावर गायकों (चारण/भाट/कवियों) के गीतों का विषय बन गया था. दिल्ली के तात्कालिक सुल्तान अल्ला-उ-द्दीन खिलज़ी ने पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन सुना और वह पिपासु हो गया उस सुंदरी को अपने हरम में शामिल करने के लिए. अल्ला-उ-द्दीन ने चित्तौड़ (मेवाड़ की राजधानी) की ओर कूच किया अपनी अत्याधुनिक हथियारों से लेश सेना के साथ. मकसद था चित्तौड़ पर चढ़ाई कर उसे जीतना और रानी पद्मिनी को हासिल करना. ज़ालिम सुलतान बढा जा रहा था, चित्तौड़गढ़ के नज़दीक आये जा रहा था. उसने चित्तौड़गढ़ में अपने दूत को इस पैगाम के साथ भेजा कि अगर उसको रानी पद्मिनी को सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा. रणबाँकुरे राजपूतों के लिए यह सन्देश बहुत शर्मनाक था. उनकी बहादुरी कितनी ही उच्चस्तरीय क्यों ना हो, उनके हौसले कितने ही बुलंद क्यों ना हो, सुलतान की फौजी ताक़त उनसे कहीं ज्यादा थी. रणथम्भोर के किले को सुलतान हाल ही में. ने फतह कर लिया था ऐसे में बहुत ही गहरे सोच का विषय हो गया था सुल्तान का यह घृणित प्रस्ताव, जो सुल्तान की कामुकता और दुष्टता का प्रतीक था. कैसे मानी ज सकती थी यह शर्मनाक शर्त.
नारी के प्रति एक कामुक नराधम का यह रवैय्या क्षत्रियों के खून खौला देने के लिए काफी था. रतन सिंह जी ने सभी सरदारों से मंत्रणा की, कैसे सामना किया जाय इस नीच लुटेरे का जो बादशाह के जामे में लिपटा हुआ था. कोई आसान रास्ता नहीं सूझ रहा था. मरने मारने का विकल्प तो अंतिम था. क्यों ना कोई चतुराईपूर्ण राजनीतिक कूटनीतिक समाधान समस्या का निकाला जाय ?
रानी पद्मिनी न केवल अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी थी, वह एक बुद्धिमता नारी भी थी. उसने अपने विवेक से स्थिति पर गौर किया और एक संभावित हल समस्या का सुझाया. अल्ला-उ-द्दीन को जवाब भेजा गया कि वह अकेला निरस्त्र गढ़ (किले) में प्रवेश कर सकता है, बिना किसी को साथ लिए, राजपूतों का वचन है कि उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा....हाँ वह केवल रानी पद्मिनी को देख सकता है..बस. उसके पश्चात् उसे चले जाना होगा चित्तौड़ को छोड़ कर.... जहाँ कहीं भी. उम्मीद कम थी कि इस प्रस्ताव को सुल्तान मानेगा. किन्तु आश्चर्य हुआ जब दिल्ली के आका ने इस बात को मान लिया. निश्चित दिन को अल्ला-उ-द्दीन पूर्व के चढ़ाईदार मार्ग से किले के मुख्य दरवाज़े तक चढ़ा, और उसके बाद पूर्व दिशा में स्थित सूरजपोल तक पहुंचा. अपने वादे के मुताबिक वह नितान्त अकेला और निरस्त्र था. पद्मिनी के पति रावल रतन सिंह ने महल तक उसकी अगवानी की.
महल के उपरी मंजिल पर स्थित एक कक्ष कि पिछली दीवार पर एक दर्पण लगाया गया, जिसके ठीक सामने एक दूसरे कक्ष की खिड़की खुल रही थी...उस खिड़की के पीछे झील में स्थित एक मंडपनुमा महल था जिसे रानी अपने ग्रीष्म विश्राम के लिए उपयोग करती थी. रानी मंडपनुमा महल में थी जिसका बिम्ब खिडकियों से होकर उस दर्पण में पड़ रहा था अल्लाउद्दीन को कहा गया कि दर्पण में झांके. हक्केबक्के सुलतान ने आईने की जानिब अपनी नज़र की और उसमें रानी का अक्स उसे दिख गया ...तकनीकी तौर पर.उसे रानी साहिबा को दिखा दिया गया था....सुल्तान को एहसास हो गया कि उसके साथ चालबाजी की गयी है, ...किन्तु बोल भी नहीं पा रहा था, मेवाड़ नरेश ने रानी के दर्शन कराने का अपना वादा जो पूरा किया था......और उस पर वह नितान्त अकेला और निरस्त्र भी था. परिस्थितियां असमान्य थी, किन्तु एक राजपूत मेजबान की गरिमा को अपनाते हुए,दुश्मन अल्लाउद्दीन को ससम्मान वापस पहुँचाने मुख्य द्वार तक स्वयं रावल रतन सिंह जी गये थे .....अल्लाउद्दीन ने तो पहले से ही धोखे की योजना बना रखी थी .उसके सिपाही दरवाज़े के बाहर छिपे हुए थे....दरवाज़ा खुला.......रावल साहब को जकड लिया गया और उन्हें पकड़ कर शत्रु सेना के खेमे में कैद कर दिया गया.
रावल रतन सिंह दुश्मन की कैद में थे. अल्लाउद्दीन ने फिर से पैगाम भेजा गढ़ में कि राणाजी को वापस गढ़ में सुपुर्द कर दिया जायेगा, अगर रानी पद्मिनी को उसे सौंप दिया जाय. चतुर रानी ने काकोसा गोरा और उनके १२ वर्षीय भतीजे बादल से मशविरा किया और एक चातुर्यपूर्ण योजना राणाजी को मुक्त करने के लिए तैयार की.
अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा गया कि अगले दिन सुबह रानी पद्मिनी उसकी खिदमत में हाज़िर हो जाएगी, दिल्ली में चूँकि उसकी देखभाल के लिए उसकी खास दसियों की ज़रुरत भी होगी, उन्हें भी वह अपने साथ लिवा लाएगी. प्रमुदित अल्लाउद्दीन सारी रात्रि सो न सका...कब रानी पद्मिनी आये उसके हुज़ूर में, कब वह विजेता की तरह उसे भी जीते.....कल्पना करता रहा रात भर पद्मिनी के सुन्दर तन की....प्रभात बेला में उसने देखा कि एक जुलुस सा सात सौ बंद पालकियों का चला आ रहा है. खिलज़ी अपनी जीत पर इतरा रहा था. खिलज़ी ने सोचा था कि ज्योंही पद्मिनी उसकी गिरफ्त में आ जाएगी, रावल रतन सिंह का वध कर दिया जायेगा...और चित्तौड़ पर हमला कर उस पर कब्ज़ा कर लिया जायेगा. कुटिल हमलावर इस से ज्यादा सोच भी क्या सकता था.
खिलज़ी के खेमे में इस अनूठे जुलूस ने प्रवेश किया......और तुरंत अस्तव्यस्तता का माहौल बन गया...पालकियों से नहीं उतरी थी अनिन्द्य सुंदरी रानी पद्मिनी और उसकी दासियों का झुण्ड......बल्कि पालकियों से कूद पड़े थे हथियारों से लेश रणबांकुरे राजपूत योद्धा ....जो अपनी जान पर खेल कर अपने राजा को छुड़ा लेने का ज़ज्बा लिए हुए थे. गोरा और बादल भी इन में सम्मिलित थे. मुसलमानों ने तुरत अपने सुल्तान को सुरक्षा घेरे में लिया. रतन सिंह जी को उनके आदमियों ने खोज निकाला और सुरक्षा के साथ किले में वापस ले गये. घमासान युद्ध हुआ, जहाँ दया करुणा को कोई स्थान नहीं था. मेवाड़ी और मुसलमान दोनों ही रण-खेत रहे. मैदान इंसानी लाल खून से सुर्ख हो गया था. शहीदों में गोरा और बादल भी थे, जिन्होंने मेवाड़ के भगवा ध्वज की रक्षा के लिए अपनी आहुति दे दी थी.
अल्लाउद्दीन की खूब मिटटी पलीद हुई. खिसियाता, क्रोध में आग बबूला होता हुआ, लौमड़ी सा चालाक और कुटिल सुल्तान दिल्ली को लौट गया.
उसे चैन कहाँ था, जुगुप्सा का दावानल उसे लगातार जलाए जा रहा था. एक औरत ने उस अधिपति को अपने चातुर्य और शौर्य से मुंह के बल पटक गिराया था. उसका पुरुष चित्त उसे कैसे स्वीकार का सकता था....उसके अहंकार को करारी चोट लगी थी....मेवाड़ का राज्य उसकी आँख की किरकिरी बन गया था. कुछ महीनों के बाद वह फिर चढ़ बैठा था चित्तौडगढ़ पर, ज्यादा फौज और तैय्यारी के साथ. उसने चित्तौड़गढ़ के पास मैदान में अपना खेमा डाला. किले को घेर लिया गया......किसी का भी बाहर निकलना सम्भव नहीं था...दुश्मन कि फौज के सामने मेवाड़ के सिपाहियों की तादाद और ताक़त बहुत कम थी. थोड़े बहुत आक्रमण शत्रु सेना पर बहादुर राजपूत कर पाते थे लेकिन उनको कहा जा सकता था ऊंट के मुंह में जीरा. सुल्तान की फौजें वहां अपना पड़ाव डाले बैठी थी, इंतज़ार में. छः महीने बीत गये, किले में संगृहीत रसद ख़त्म होने को आई. अब एक ही चारा बचा था, "करो या मरो." या "घुटने टेको." आत्मसमर्पण या शत्रु के सामने घुटने टेक देना बहादुर राजपूतों के गौरव लिए अभिशाप तुल्य था,.........ऐसे में बस एक ही विकल्प बचा था झूझना.....युद्ध करना.....शत्रु का यथासंभव संहार करते हुए वीरगति को पाना.
बहुत बड़ी विडंबना थी कि शत्रु के कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. वे न केवल पुरुषों को मारते काटते, नारियों से बलात्कार करते और उन्हें भी मार डालते. यही चिंता समायी थी धर्म परायण शिशोदिया वंश के राजपूतों में. .......और मेवाड़ियों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया.....किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों, नारियलों एवम् अन्य इंधनों का ढेर लगाया गया.....सारी स्त्रियों ने, रानी से दासी तक, अपने बच्चों के साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया....सजी हुई चित्ता को घी, तेल और धूप से सींचा गया....और पलीता लगाया गया. चित्ता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी......नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी.....अपने पुरुषों को अश्रुपूरित विदाई दे रही थी....अंत्येष्टि के शोकगीत गाये जा रही थी. अफीम अथवा ऐसे ही किसी अन्य शामक औषधियों के प्रभाव से प्रशांत हुई, महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चित्ता कि ओर प्रस्थान किया.....और कूद पड़ी धधकती चित्ता में....अपने आत्मदाह के लिए....जौहर के लिए....देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए. जय एकलिंग, हर हर महादेव के उदघोषों से गगन गुंजरित हो उठा था. आत्माओं का परमात्मा से विलय हो रहा था.
अगस्त २५, १३०३ कि भोर थी, आत्मसंयमी दुखसुख को समान रूप से स्वीकार करनेवाला भाव लिए, पुरुष खड़े थे उस हवन कुन्ड के निकट, कोमलता से भगवद गीता के श्लोकों का कोमल स्वर में पाठ करते हुए.....अपनी अंतिम श्रद्धा अर्पित करते हुए.... प्रतीक्षा में कि वह विशाल अग्नि उपशांत हो. पौ फट गयी.....सूरज कि लालिमा ताम्रवर्ण लिए आकाश में आच्छादित हुई.....पुरुषों ने केसरिया बागे पहन लिए....अपने अपने भाल पर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया....मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा....दुर्ग के द्वार खोल दिए गये. जय एकलिंग....हर हर महादेव कि हुंकार लगते रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े शत्रु सेना पर......मरने मारने का ज़ज्बा था....आखरी दम तक अपनी तलवारों को शत्रु का रक्त पिलाया...और स्वयं लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये. अल्लाउद्दीन खिलज़ी की जीत उसकी हार थी, क्योंकि उसे रानी पद्मिनी का शरीर हासिल नहीं हुआ, मेवाड़ कि पगड़ी उसके कदमों में नहीं गिरी. चातुर्य और सौन्दर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी ने उसे एक बार और छल लिया था.
Baba ramdevji runuja
बाबा रामदेवजी
बाबा रामदेव अेक लोकदेवता रै रूप में पुजीजै। लोक देवता अै अैड़ा, जिका कृष्ण रा अवतार मानीजै। राजस्थान रै अलावा गुजरात मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेशंजाब, इत्याद प्रदेशां मरांय ई इणां री मान्यता है। भादवै अर माघ महीणां रै चानणै पख री दसमी नै इणां रै समाधि-स्थल रामदेवरा मांय भरीजण वालै मेलां मांय न्यारै-न्यारै प्रदेशां रै जातरूवां री घणी भीड़ रैवै। बाबा रामदेव रै उपासकां में राजा-महाराजावां अर सेठ-साहूकारां सूं लेय'र साधारण सूं साधारण लोग ई सामल हुवै। हरेक गाम-नगर, बास-मुहल्ला मांय बाबा रामदेव रा उपासना-स्थल बणियोड़़ा है। इणरै अलावा लोग आप-आपरै घरां मरांय ई उणां रा 'पगलिया' थापन कर' र सुतंतर रूप सूं उपासना करै। बाबै रा भगत लोग आपरै गलां मांय चांदी या सोनै रा 'फूल' धारण करियोड़ा रैवै जिका सैज ई पिछाणिया जायै।
उत्तरादै भारत मांय बाबा रामदेव ई अेकमात्र अैड़ा देवता है जिणां रै पूजा-स्थल में हिंदू-मुसलमान, सवर्ण, असवर्ण, अमीर-गरीब इत्याद रौ कोई भेद नीं है। सगलाई समान रूप सूं उणां री पूजा-अरचणा कर सकै अर अेक इज कुंडी सूं चरणाम्रत पान करै। जिण तरै हिंदू इणां नै 'बाबा रामदेव' कैय' र पुकारै, उणी तरै मुसलमाना इणां नै 'रामशाह पीर' नाम सूं संबोधित करै। पैला सूं इज प्रचलित सिद्ध संप्रदाय अर भगत कबीर रै बीच बाबा रामदेव इज अेक अैड़ा महापुरुष हुया है, जिका जात-पांत रौ भेद मिटाय'र मिनख मात्र नै समान मानण सारू जतन करिया अर वै उणमें सफल ई हुया।
बाबा रामदेव रा बडेरा तुंवर अनंगपालजी दिल्ली रा छेहला तुंवर सम्राट हा। सांभर रा चौहाण उणां सूं दिल्ली रौ राज खोस लियौ हौ। सो राजा नीं रैया तुंवर अनंगपाल आपरै परिवार रै साथै दिल्ली छोड'र मौजूदा जयपुर जिलै रै त्हैत आयै 'नराणा' नाम रै गाम मांय रैवास करियौ हौ। जयपुर जलै रौ औ छेत्र आज ई पण 'तुंवर वाटी' रै नाम सूं ब तलाईजै। इणी परिवार मांय तुंवर रणसी हुया। अै आपरै बगत रै चावै संत रै रूप में ओलखीजता हा। इणां रै चमत्कारा सूं प्रबावित हुय'र अनेक लोग उणां रा अनुयायी बणग्या। कैयौ जावै के आ घटना उण बगत रै काजियां नै घणी पुरी लागी। वै इणां री शिकायत बादसा सूं करी। बादसा तुंवर रणसी नै दिल्ली बुलाया अर चमत्कार दिखावण रौ कैयौ। तुंवर रणसी अनेकूं चमत्कार बताया, जिणां सूं बादसा डरग्यौ अर आपरै आदमियां सूं इणां रौ सिर कटवाय दियौ। इण घटना रै बाद इणां रा पुत्र तुंवर अजैसी आपरै परिवार रै साथै 'नराणा' गाम छोड'र पिच्छम कानी चाल पड़िया। केई दिनां रै बाद वै मौजूदा बाड़मेर जिलै री शिव तैसील रै त्हैत आयै गाम ऊंडू-काश्मीर पूगिया। इण गाम सूं पिच्छम कानी कोई च्यार किलोमीटर री दूरी माथै अेक ब ौत बड़ौ थल है। उणनै सुरक्षा री दीठ सूं उचित समझता थकां अजैसी इणी थल रै बीच गाडियां छोडी। वरतमान में औ स्थान 'गडोथल' नाम सूं इज पुकारीजै।
वांई दिनां कुंडल गाम रौ शासक बुध भाटी-पम्मौ घोरंघार शासन गमाय'र अठी-उठी लूट-खसोट कर रैयौ हो। उणरा आदमी जद इण तुंवर काफिलै नै नवौ आयोड़ौ देखियौ तौ वौ लूटण री योजना बणाई। पण जद खुद पम्मै धोरंधार रौ सामनौ तुंवर अजैसी सूं हूयौ, तौ उणरौ विचार बदलग्यौ अर वौ आपरी पुत्री 'मैणादे' या 'मेणादे' री सगाई तुंवर अजैसी रै साथै कर दी। बाबा रामदेव आं ई मैणादे री दूजोड़ी सन्तान रै रूप मांय अवतरिया।
तुंवर अजैसी या अजमल नै पुत्र-लाभ घणौ बगत बीतियां हुयौ हौ। बडै पुत्र वीरमदेव रौ जनम सं. 1405 वि. नै हुयौ और छोटै पुत्र रामदेव रौ जनम वि. सं. 1409 मै चैत सुद पांचम सोवार रै दिन हुयो। रामदेव रै जनम रै बगत आखै देश री हालत कोई अच्छी नीं ही। केन्द्र मांय मुसलमानां रौ घणियाप हौ। ूजै प्रदेसां मांय छोटा-छोटा राज्य हा, जिका जरा-सीक बात सारू ई भड़क' र जुद्ध नै त्यार हुय जावता हा। राजगादी सूं हटियोड़ा-हटायोड़ा शासक लुटेरां रै रूप मांय जनता नै पीडित करता रैवता हा। धारमिक स्थिति ई अैड़ी ई ही। भांत-भांत रै अनेक पंथां सम्प्रदायां रौ बोलबालौ हौ। कीं रहसवादी मतां वाला लोगां नै घोखौ देय'र आपरै स्वारथ री सिद्धी करण में लाग्या रैवता हा। कींअेक भैरव बण'र जनता नै अणूंतौ इज दुख कष्ट दिया करता हा।
वरतमान पोकरण मांय वां दिनां 'बालिनाथ' कै 'बालकनाथ' नाम रै अेक नाथ-योगी रौ आसण हौ। रामदेव इणां नै इज आपरा सतगुरु बणाया। धारमिक दीठ सूं नाथपंथ दूजै पंथां री बजाय बेसी उदार अर सन्मारग माथै चालण बालौ पंथ मान्यौ जावतौ हौ। आखै देश मांय इण पंथ री मान्यता ही। गुरु रै उपदेश मुजब रामदेव अछूतोद्धार में लागिया अर कोढी, खज, आंधा, पांगला रोगियां री सेवा करण रौ भार आपरै कंधा माथै उठायौ। तत्कालीन समाज मांय अछूतां री हालत ई बड़ी दयनीय ही। उणां नै आपरै आसरौ देवणियां री किरपा माथै निरभर रैवणौ पड़तौ हौ।
रामदेव पैल परथम अेक मेघवाल जात री लड़की 'डालीबाई' नै तत्कालीन सिद्ध परम्परावां मुजब 'महामुद्रा' रै पूर में स्वीकार कर'र आपरी सहयोगिणी बणायौ। छुआछूत नै नीं मानियां वां नै आपरै सगै-संबंयिां रै कोप रो सिकार बणणौ पड्यौ। पण बाबा रामदेव इणरी परवा नीं करी अर मेघवालां नै लेय'र भजन-कीरतन करण लागिया।
किणी कारणां सूं धरम-भिस्ट या समाज बारै करियोड़ै़ लोगां नै समाज मांय पाछौ सनमान दिरवावण सारू रामदेव अेक संत मत री थरपणा ई करी। इण मत मांय बिना भेद-भाव रै कोई ई सगस सामल हुय सकतौ हौ। इण धरम मांय दीक्षित सगस नै हाथ मांय 'कामड़ी' (बैंत) राखणी पड़ती ही, सो औ पंथ 'कामड़िया पंथ' रे नाम सूं चावौ हुयौ। आजकल औ पंथ अेक उपजाति रौ रूप (कामड़िया) धारण कर लियौ है। अै लोग आपरै सिर माथे भगवा रंग रौ फेंटौ-पगड़ी धारण करै अर बाबा रामदेव रौ जुम्मौ-जागरण देवै। इण पंंथ मांय धरम रे प्रचलित दस लक्षणां नै मान्यता मिलण सूं इणनै 'दसा धरम' ई कैयौ जावै।
पोकरण सूं पूरब दिस कानी कोई तीनैक किलोमीटर री दूस्री माथै अेक ड़ी माथै भैरव री गुफा आई थकी है। औ भेरव (भैरव रौ उपासक) अणूंतौ ई करूर हौ। आपरै इष्ट नै प्रसन्न करण सारू औ मिनखां री बलि दिया करतौ हौ। नतीजन लोग डर परा'र पोकरण छोड दियौ। बालिनाथ रै अलावा दूजौ कोई सगस उण स्थान माथै रैवण री हिम्मत नीं कर सकै हौ। बालिनाथ खुद ई इण भैरव रै उत्पातां सूं दुखी हा। रामदेव नै जद पतौ चालियौ तौ वै इण समस्या सूं निपटण सारू कमर कसी। ऐ आपरै पराक्रम सूं भैरव नै परास्त कर्यौ। परास्त भैरव गिडगिडाय'र रामदेव सूं आपरै प्राणां री भीख मांगी। रामदवे पोकरण रै आखती-पाखती रौ आगोर उणरै विचरण सारू सुरक्षित कर दियौ अर जद तांई जीवतौ रैवै, तद तांई पोकरण रै शासन कानी सूं उणरै भरण-पोखण रौ वचन ई दियौ। इणरै बाद भैरव करूर करमां रौ परित्याक कर'र अेक साधु रौ जीवण बीतावण लागियौ। भैरव रौ आतंक खतम हुयां पुराणा लोग पाछा आय-आय'र बसण लागिया। सो पोकरण रौ उजाड़ इलाकौ भरी-पूरी बस्ती बणग्यौ अर लोग सुख सूं जीवण बितावण लाग्या।
इण भांत बाबा रामदेव रै जन-हितकारी कामां अर भैरव जैैड़ै क्रूर करम वालै सगस नै सन्मारग माथै लेय आवण रै परिणामस्वरूप लोगां इणां नै अेक चमत्कारी पुरस (सिद्ध) रै रूप में मान्यता दीवी अर हजारूं लोग इणां रा भगत बणग्या। इत्तौ ई नीं, बाबा रामदेव रा उपासक इणां नै भगवान विष्णु रै दसवैं अवतार 'कल्कि' रै रूप मांय ई मानण लागिया। बाबा रामदेव नै 'निकलंक देव' रौ विरुद जीवण-काल मांय ई मिलग्यौ हौ। भाटी उगमसी, मेघवाल धारू, राठौ़ड शासक मल्लिनाथ अर उणां री जोड़ायत रूपांदे, जैसल ्र उणरी जोड़ायता तोलांदे, डाली बाई इत्याद उणां रै खास उपासकां मांय हा। सुचावा सांखला हड़बू बाबा रामदेव रै कैयां अस्तर-सस्तर त्याग'र अेक साधु रौ सो जीवण बितावण लागिया हा। अै ई बालिनाथ सूं दीक्षा लीवी ही।
बाबा रामदेव रा अेक काका 'धनरिख' (धनरूप) नामर रा हा। जद अजमल री तुंवरावाटी रौ गाम नरेणा छोड़'र मारवाड कानी आयग्या हा, तद धनरिख जी उठै इज रैयग्या हा। अै ई अेक चमत्कारी महापुरुष रै रूप में चावा हा। अै आपरै बुढा़पै मांय बाबा रामदेव नै आपरै कनै बुलाय लिया हा। उठै गयां रै बाद बाबा रामदेव री प्रसिद्ध दिन दूणी रात चौगुणी फैलण लागी। चित्तौड़ रै महाराणा कुंभा माथेै जद गुजरातियां हमलौ करियौ, तद उपासकां जिणां रै गला मांय बाबा रामदेव रा फूल हा, महाराणा कुंभा रौ साथ दियौ। नतीजन गुजराती भागग्या। इण प्रसंग नै याद राखण सारू जीतियां रै बाद महाराणा कुंभा 'निकलंक देव मिंदर' रौ निरमाण करायौ हौ, जिण मांय घुड़सवार सगस (बाबा रामदेव) री मूरती थापना करी ही। औ मिंदर आज ई मौजूद है।
पौराणिक कथानक मुजब सूरज (महाराणा कुंभा) नै जद कलिंग राक्षस (गुजराती) आपरै प्रभाव सूं आवृत्त कर लैवैला, त भगवान कल्कि (निकलंक) रूप धारण कर'र उणरौ उद्धारकरैला। ऊपरदिरीजी महाराणा कुंभा री घटना रौपाणिक कथानक सूं मेल खावै। सो बाबा रामदेव री पूरबी छेत्रां मांय ई प्रसिद्धि हुयगी अर वै निकलंक देव रै साथै-साथै 'पिछमाधिपति', 'पिछमाधीस', 'पिछम धरा रा पातसाह', 'पिछमी धणी' इत्याद विरूदां नै धारण करण लागिया।
काकै धनरिख रै समाधि लियां रै बाद बाबा रामदेव पाछा आपरै इलाकै मांय आयग्या। पोकरण आयां रै बाद उमरकोट रै सोढ़ा दलैसिंघजी रू पुत्री नेतलदे रै साथै इणां रौ ब्याव हुयग्यौ। नेतलदे री कोख सूं इणां नै देवराज नाम रे पुत्र री प्राप्ति हुई।
खेड़ रा राठौ़ड शासक रावल मल्लिनाथ नै बाबा रामदेव आपरा मूंडाबोला भाई मानता हा। पोकरण रौ इलाकौ मल्लिनाथ सूंआपरै रैवास सारू मांग लियौ हौ। तुंवर परिवार अठै आराम सूं रैय रैयौ हौ। पण बाबा रामदेव री गैरहाजरी में इणां रा बड़ा भाई वीरमदेव आपरी पुत्री रौ संबंध मल्लिनाथ रै पोतै (जगमाल रै बैटै) हम्मीर रै साथै कर दियौ। इणसूं चिड़'र बाबा रामदेव पोकरण छोड़'र रामदेवरा' रीनींव राखी। औ स्थान पोकरण सूं पूरबोत्तर मांय कोई 4 किलोमीटर री दूरी माथै है। पाणी री कमी मिटावण सारू अै गाम सूं पिच्छम कानी अेक तलाव रौ निरमाम करायौ, जिकौ आजकल 'राम सरोवर' रै नाम सूं जाणीजै। इणी तालाब री पाज माथै फगत तेतीस बरस री उमर में ई कीरत रा कमठाण बण'र रामसापीर वि. सं. 1442 री भादवा सुदी ग्यारस रै दिन जीवित समाधि लीवी ही। ख्यातां मांय उल्लेख मिलै के इणी स्थान माथै बाबा रामदेव रै समाधि लियां रै आठ दिन बाद सांखला हड़बू ई समाधि लीवी ही।
ख्यातां मांय उल्लेख है के पैला राव जोधा रौ विचार मसूरिया नाम रै परबत माथै किलौ बणावण रौ हौ, पण अठै आखती-पाखती पाणी री कमी हुवण सूं औ विचार छोडणौ पड़ियौ। उणी बगत उण परबत माथै रैवण वालौ अेक साधु इणां नेै पचेटिया नाम रै परबत माथै किलौ बणावण री सलाह दीवी। आ बात राव जोधा नै दाय आयगी। कैवै के इणरी अेवज में वौ साधु राव जोधा सूं दो प्रार्थनावां करी। अेक तौ आ के रामदेवजी रै दरसण सारू रूणेचा जावण वाला जिका जातरू अठीनै सूं निकलै, पैला उणरै आसरम मसूरिया आवै अर दूजी आ के राज री कानी सूं साल में दो बार उणरै आसरम मसूरिया आवे अर दूजी आ के राज री कानी सूं साल में दो बार उणरै आसरम मांय भेंट भेजी जावै। राव जोधा उणां री दोनूं प्रार्थनावां स्वीकारली। इण उल्लेख सूं सिद्ध हुय जावै के राव जोधा रै किलै री नींव राखण (जेठ सुदी 11, शनिवार, वि. सं. 1515) सूंपैला बाबा रामदेव समाधि लेय चुकिया हा अर उणां री याद में जातरू दरसण नै आवण लागया हा। उल्लेखजोग है के मसूरिया परबत माथै बाबा रामदेव रा गुरु बालिनाथजी समाधि लीवी ही। औ साधु बाबा रामदेव रौ ई अनुयायी हुवैला अर आपरै गुरु री सेवा मांय रैवतौ हुवैला।
भाटी हरजी बाबा रामदेव रा अनन्य भगत अर गायक हुया। भाटी हरजी री रच्योड़ी वांणियां रै संबंध में औ दूहौ लोक मांय चावौ है-
हरजी गरजी नाम रा, पासे किया पंपाल।
लाख सबद लेखै चढ्या, ग्रंथां भर्या भंडार।।
रामदेवजी आपरै उपदेसां अर वैवार सूंं हिंदूवां अर मुसलमानां रै विचालै साम्प्रदायिक अेकता रा घणा लूंठा जतन किया। उणरौ दोनूंसंप्रदायां माथै असर पड़ियौ। वां में अेकता रौ वातावरण बण्यौ अर मुसलमन ई रामदेवजी नै 'पीर' मान'र पूजण लाग्या। आज दिन तांई दोन्यूं धर्मावलम्बी वां नै घणी सरा सूं पूजै। 'बाबौ रामदेव' अर 'रामसापीर' अै दोनूं नाम हिंदू मुस्लिम अेकता रा प्रतीक है।
अल्ला आदम अलख तूं, राम रहीम करीम।
गोसांई गोरक्ख तूं, नाम तेरा तसलीम।।
बाबा रामदेव बाबत औ दूहौ अेक भगत कवि खैमौ वि. सं. 1729 मैं कैयौ।
वां जगत में लोकदेवता, देवपीर अर परमेसर रै रूप में प्रतिष्ठा पाई।
घर ऊजल घवली धजा, निरमल ऊजल नीर।
राजा ऊजल रामदे, परचा ऊजल पीर।।
राम कहूं क रामदे, हीरा कहूं क लाल।
ज्यांनै मिलिया रामदे, वां नै किया निहाल।।
चाँदपुर इलाके के राजा कुँवरसिंह जी बड़े अमीर थे। उन्हें किसी चीज़ की कमी नहीं थी, फिर भी उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। बीमारी के मारे वे सदा परेशान रहते थे। कई वैद्यों ने उनका इलाज किया, लेकिन उनको कुछ फ़ायदा नहीं हुआ।
राजा की बीमारी बढ़ती गई। सारे नगर में यह बात फैल गई। तब एक बूढ़े ने राजा के पास आकर कहा, ''महाराज, आपकी बीमारी का इलाज करने की मुझे आज्ञा दीजिए।'' राजा से अनुमति पाकर वह बोला, ''आप किसी सुखी मनुष्य का कुरता पहनिए, अवश्य स्वस्थ हो जाएँगे।''
बूढ़े की बात सुनकर सभी दरबारी हँसने लगे, लेकिन राजा ने सोचा, ''इतने इलाज किए हैं तो एक और सही।'' राजा के सेवकों ने सुखी मनुष्य की बहुत खोज की, लेकिन उन्हें कोई पूर्ण सुखी मनुष्य नहीं मिला। सभी लोगों को किसी न किसी बात का दुख था।
अब राजा स्वयं सुखी मनुष्य की खोज में निकल पड़े। बहुत तलाश के बाद वे एक खेत में जा पहुँचे। जेठ की धूर में एक किसान अपने काम में लगा हुआ था। राजा ने उससे पूछा, ''क्यों जी, तुमसुखी हो?'' किसान की आँखें चमक उठी, चेहरा मुस्करा उठा। वह बोला, ''ईश्वर की कृपा से मुझे कोई दुख नहीं है।'' यह सुनकर राजा का अंग-अंग मुस्करा उठा। उस किसान का कुरता माँगने के लिए ज्यों ही उन्होंने उसके शरीर की ओर देखा, उन्हें मालूम हुआ कि किसान सिर्फ़ धोती पहने हुए है और उसकी सारी देह पसीने से तर है।
राजा समझ गया कि श्रम करने के कारण ही यह किसान सच्चा सुखी है। उन्होंने आराम-चैन छोड़कर परिश्रम करने का संकल्प किया।
थोड़े ही दिनों में राजा की बीमारी दूर हो गई।
सोमवार, 1 जून 2015
राजस्थान: भौगोलिक उपनाम /
➲अभ्रक की मंडी - भीलवाड़ा
➲आदिवासियों का शहर - बांसवाड़ा
➲अन्न का कटोरा - श्री गंगानगर
➲औजारों का शहर - नागौर
➲आइसलैंड आॅफ ग्लोरी/रंग श्री द्वीप - जयपुर
➲उद्यानों/बगीचों का शहर - केाटा
➲ऊन का घर - बीकानेर
➲ख्वाजा की नगरी - अजमेर
➲गलियों का शहर - जैसलमेर
➲गुलाबी नगरी - जयपुर
➲घंटियों का शहर - झालरापाटन
➲छोटी काशी/दूसरी काशी - बूंदी
➲जलमहलों की नगरी - डीग
➲झीलों की नगरी - उदयपुर
➲वस्त्र नगरी - भीलवाड़ा
➲थार का घड़ा - चंदन नलकूप, जैसलमेर
➲थार का कल्पवृक्ष - खेजड़ी
➲देवताओं की उपनगरी - पुष्कर
➲नवाबों का शहर - टोंक
➲पूर्व का पेरिस/भारत का पेरिस - जयपुर
➲पूर्व का वेनिस - उदयपुर
➲पहाड़ों की नगरी - डूंगरपुर
➲भक्ति/शक्ति व साधना की नगरी - मेड़ता सिटी
➲मूर्तियों का खजाना - तिमनगढ, करौली
➲मरूस्थल की शोभा/मरू शोभा - रोहिड़ा
➲राजस्थान की मरू नगरी - बीकानेर
➲राजस्थान का हदृय/दिल - अजमेर
➲राजस्थान का गौरव - चितौड़गढ
➲राजस्थान का प्रवेश द्वार (गेटवे आॅफ राज.) - भरतपुर
➲राजस्थान का सिंह द्वार - अलवर
➲राजस्थान का अन्न भंडार - गंगानगर
➲राजस्थान की स्वर्ण नगरी (गोल्ड सिटी) - जैसलमेर
➲राजस्थान की शैक्षिक राजधानी - अजमेर
➲राजस्थान का कश्मीर - उदयपुर
➲राजस्थान का काउंटर मैगनेट - अलवर
➲राजस्थान की मरूगंगा - इंदिरा गांधी नहर
➲पश्चिम राजस्थान की गंगा - लूनी नदी
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➲रेगिस्तान का सागवान - रोहिड़ा
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➲राजस्थान का मिनी खजुराहो - भंडदेवरा
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➲राजस्थान का राजकोट - लूणकरणसर
➲राजस्थान का स्काॅटलेंड - अलवर
➲राजस्थान का नंदनकानन - सिलीसेढ झील, अलवर
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➲राजस्थान का आधुनिक विकास तीर्थ - सूरतगढ
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➲राजस्थान की अणु नगरी - रावतभाटा
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➲राजस्थान का अंडमान - जैसलमेर
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➲राजस्थान का मैनचेस्टर - भीलवाड़ा
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➲ राजस्थान का जिब्राल्टर - तारागढ, अजमेर
➲राजस्थान का ताजमहल - जसवंतथड़ा, जोधपुर
➲राजस्थान का भुवनेश्वर - ओसियां
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➲राजस्थान की न्यायिक राजधानी - जोधपुर
➲राजस्थान का चेरापूंजी - झालावाड़
➲राजस्थान का ऐलोरा - केालवी, झालावाड़
➲राजस्थान का जलियावाला बाग - मानगढ, बांसवाड़ा
➲राजस्थान का शिमला - मा. आबू
➲राजस्थान का पूर्वीद्वार - धौलपुर
➲रत्न नगरी - जयपुर
➲वराह नगरी - बारां
➲वर्तमान नालंदा - कोटा
➲लव-कुश की नगरी - सीताबाड़ी, बारां
➲शिक्षा का तीर्थ स्थल/शैक्षिक नगरी - कोटा
➲समस्त तीर्थस्थलों का भांजा - मचकुंड, धौलपुर
➲सूर्य नगरी (सन सिटी आॅफ राजस्थान) - जोधपुर
➲सुनहरा त्रिकोण - दिल्ली-आगरा-जयपुर
➲मरू त्रिकोण - जोधपुर-जैसलमेर-बीकानेर
➲सौ द्विपों का शहर - बांसवाड़ा
➲हेरिटेज सिटी - झालरापाटन
➲हरिण्यकश्यप की राजधानी - हिंडौनसिटी
➲हवेलियों का शहर - जैसलमेर
➲पीले पत्थरों का शहर - जैसलमेर
➲सैलानी नगरी - जैसलमेर
➲भारत का मक्का - अजमेर
➲प्राचीन राजस्थान का टाटानगर - रेढ , टोंक
➲स्वतंत्रता प्रेमियों का तीर्थ स्थल - हल्दीघाटी
➲भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष - विजय स्तंभ
➲म्यूजियम सिटी - जैसलमेर
➲मरूस्थल का प्रवेश द्वार - जोधपुर
➲बावड़ियों का शहर (सिटी आॅफ स्टेप वेल्स)- बूंदी
➲पूर्वी राजस्थान का कश्मीर - अलवर
➲पत्थरों का शहर - जोधपुर
➲ब्ल्यू सिटी (नीली नगरी) - जोधपुर
➲मारवाड़ का लघु मा. आबू - पीपलूद, बाड़मेर
➲भारतीय बाघों का घर - रणथंभौर
➲ग्रेनाइट सिटी - जालौर
➲मारवाड़ का सागवान - रोहिड़ा
➲पहाड़ों की रानी - डूंगरपुर
➲पानी,पत्थर व पहाड़ों की पुरी - उदयपुर
➲भक्ति व शक्ति की नगरी - चितौड़गढ
➲महाराजा रंतिदेव की नगरी - केशोरायपाटन
➲काॅटन सिटी - सूरतगढ
➲राजस्थान की संतरा नगरी - झालावाड़
➲राजस्थान की वस्त्र नगरी - भीलवाड़ा
➲रेड डायमंड (लाल हीरा) - धौलपुर
➲मारवाड़ का अमृत सरोवर - जवाई बांध
➲फाउंटेन व मांउटेन का शहर - उदयपुर
➲मेवाड़ का हरिद्वार - मातृकुंडिया
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