एक दिन को मिल्यो सरपंच निमंत्रण पत्र
फूले फूले हम बहुत फिरें यत्र तत्र सर्वत्र
यत्र तत्र सर्वत्र फराक्ति बोटी बोटी
व दिन अछि नाय लगी अपने घर रोटी
कहें काका कविराय लार म्होड़े से टपके
कर लादुवान की याद झीभ सयापन ली लपके
मार्ग में जब है गयी अपनी मोटर फ़ैल
दौड़ स्टेशन लायी तीन बजे की रेल
तीन बजे की रेल मच रही धक्कम धक्का
दो मोटे गिर परे पिचक गये पतरे कक्का
कहें काका कविराय पटक दूल्हा ने खाई
पंडित जी रहे गये चढ़ गयो ननुआ नाई
नीच को करी थूथरो उपर को करि पीठ
मुर्गा बन बैठे हमहू मिली न कोऊ सीट
मिली न कोऊ सीट भीड़ मै बन गये भुरता
फिर ले गयो कोई हमारो आधो कुरता
कहें काका कविराय परिस्तिथि विकट हमारी
पंडित जी रहे गये उन्ही पे 'टिकस' हमारी
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