।। राम राम सा ।।
जब सारे गाँव के लोग सरपंच चुनाव पर नज़र जमाए बैठे है और हर ‘ऐरा गैरा नत्थू खैरा’ नई ग्राम पंचायत की कुर्सी पर आंखे गड़ाए हुये बैठे है, तो मैंने सोचा कि मैं भी क्यों न ट्राई मार लूं.....? मेरे सरपंच पद के लिए दावेदार बनने के कई ‘पॉजिटिव पॉइंट्स’ हैं। उम्मीदवारी के लिए पर्चा भरने से पहले सोचा आप सब युवा लोगों की भी राय ले लूं।
मैं एक ‘ईमानदार’ कहलाने वाला व्यापारी हूं। कुछ मित्र प्यार से ये भी कह देते हैं कि मैं कुछ कमा नहीं पाया तो ईमानदार बन गया, लेकिन मैं जानता हूं कि जैसे ही मौका मिलेगा, मैं सबको बता दूंगा कि मैं भी कितना ‘इमानदार ’ हूं। खैर, बात अपनी उम्मीदवारी की कर रहा था।
पहले बात कर लूं मेरी आवश्यकताओं की। एक तो हमारे के धंधे में कोई ज्यादा इनकम है नहीं। किसी महीने ज्यादा कमाई हो गई तो कभी कम पर भी गुजारा करना पड़ता है। सरपंच बन जाने पर कम से कम पांच साल तो सारे सरकारी पैसो के साथ-साथ छोटी मोटी तनख्वाह तो मिलेगी ही।
दूसरे, मकान मालिक का सालाना कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने को है और आप तो जानते ही हैं कि मुंबई में जल्दी से मकान कहां मिलते है । सुना है ग्राम पंचायत भवन में तीन चार कमरे तो होन्गे ही वहीँ बैठकर आराम करूँगा । मैं अभी से वादा करता हूं कि अगर उस ग्रामपंचायत भवन में पांच साल कब्जा जमाने को मिल गया तो अपनी जरूरत के लिए दो कमरे रख कर बाकी अपने दोस्तो के लिए पार्टी करने निःशुल्क रहने के लिए दे दूंगा।
तीसरी और अहम जरूरत गाड़ी की है। मेरी 2000 मॉडल स्पलेन्डर , जिसे मैंने 19 साल पहले खरीदा था, अब काफी मेंटेनेंस मांगती है। कभी टायर, तो कभी कार्बुरेटर… कम-से-कम सरपंच बन जाने के बाद पांच साल शानदार गाड़ी में तो घूम सकूंगा। यकीन मानें दोस्तों, मुझे गाड़ी रुआब झाड़ने के लिए नहीं,सिर्फ धवा, चाली ,जोधपुर, और आस-पास में जरूरत के लिए, अपने खेतो मे जाने हेतु आने-जाने की खातिर चाहिए।
बाकी मेरी गाड़ी मेरे साथ में रह रहे या दूसरे भाई बंधुओं के द्वारा इस्तेमाल करने पर मुझे कोई आपत्ति नहीं रहेगी।
अब एक नज़र मेरे निर्विवाद और बेदाग चरित्र पर…
पहला तो मैं कभी किसी भी पद पर नहीं रहा, इसलिए किसी भी घपला। मिसयूज़ का आरोप नहीं लग सका। हालांकि मेरे कई मित्रों पर पेमेंट के दौरान हुए 25-50 हज़ार के ‘महा-घोटालों’ का आरोप लग चुका है, लेकिन मैं आमतौर पर बेदाग ही रहा।
दूसरे, मैं कभी विदेश यात्रा पर लाखों तो क्या पचास हजार भी खर्च नहीं कर पाया। पहली बात तो मैं कभी विदेश यात्रा पर गया ही नहीं, और अगर अपने देश मे , द्वारका तिरुपति बालाजी के टूअर पर जाने का मौका भी मिला तो जेब में ज्यादा पैसे नहीं बचते थे ।
अगर मैं सरपंच बना तो फॉरेन टूर पर कभी अकेले नहीं जाउंगा। जो विशेष हवाई जहाज है उसमें अपने सभी गाँव वालो को मित्रों और उनके परिवार वालों को लेकर जाऊँगा ।
गाँव की फालतु की पडीं जमीन पर कम से कम आठ दस प्लॉट के पट्टे काटकर बेच दूँगा अच्छे दाम मिल जायेंगे
और गाँव मे जो भी कच्छी सडके है उन्हे पाँच सालो मे दो बार कागजो मे डामर व c.c. रोड बना दूंगा । उसमे सबका विकास होगा विधायक से लेकर वार्ड पंच तक का । पांच साल मे दो बार गाँव मे सात आठ कुएँ है उन को रिपेयरिंग करवा दूँगा जो कभी खुदे ही नही थे ।
अगर मेरे स्वभाव की बात की जाए तो हमारे गाँव के सरपंच पद की गरिमा के सर्वथा उपयुक्त बैठता है। घर में ‘क्या खरीदा जाए, क्या नहीं’ इसके लिये दो तीन चमचे रख लूँगा। मैं ज्यादा कुछ बोलने (या करने) में भरोसा नहीं करता हुँ । मैं घर में भी रबर स्टैंप की तरह ही काम करता हूं। सरपंच भी रबर स्टंप की तरह ही होता है ।
प्रोफेशनल लाइफ में मेरा नेचर बताने के लिए मै एक वाकये का जिक्र करना चाहूंगा। जब हम 50 आदमी कम्पनी के एक टूर पर गये थे तो मुझे आउटडोर टूर का इंचार्ज बनाया गया। हिसाब किताब रखने वाले एक चमचे ने टूर के खर्चे का हिसाब रखा और जब बिल बनाया तो वह डेढ़ लाख का आ गया। मुझे भी मालूम था कि इस टूर का खर्च बमुश्किल तीस-चालीस हज़ार ही आया था।आज से पन्द्रह साल पहले डेढ़ लाख की क्या औकात थी यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन बावजूद इसके मैंने आंख बंद कर उसके बिल पर साइन कर दिया। और हाँ मे हाँ मिला दिया यह अलग बात रही कि पैसा पास होने के बाद मुझे तीन हज़ार का एक लिफ़ाफा बिना मांगे आफर किया गया था लेकिन मेरी आत्मा ने मना कर दिया और वापस लौटा दिया क्योकि मुझे राजनीति की परिभाषा मालुम नही थी
मेरे युवा मित्रों, आशा है कि आप सब मेरी सरपंच उम्मीदवारी से पूरी तरह ध्यान मे रखेन्गे । अगर कोई मित्र मेरा सहयोग करना चाहे तो बस इतना भर कर दे कि जब भी उसकी किसी भी छोटी-मोटी पार्टी के नेता से बात हो तो मेरे नाम का प्रस्ताव रख दे। राजनीति में आजकल उम्मीदवार से ज्यादा चमचो चाटुकारौ ’ का ही बोलबाला है।
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