गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

चुनाव आ गये है

राम राम सा
मित्रो पंचायतीराज  चुनाव फिर नजदीक  आ गये हैं चुनाव कोई पहली बार थोड़े ही  आये हैं. वह तो आते ही रहते हैं. चुनाव तो पाँच साल पहले भी आये थे, दस साल पहले भी आये थे, और पन्द्रह साल पहले भी आये थे , बीस व पच्चीस साल पहले भी आये थे .और हर बार हम ठगे गये  लेकिन  समाज के युवाओ , इस बार के चुनाव में कुछ तो ख़ास है. ऐसा कुछ, जो पहले के किसी चुनाव में कभी नहीं रहा है।इस बार हमारी  नई बनी हुई ग्राम पंचायत है । . वरना हमने  तीन तीन  बार हार देखी है वो इसलिये कि समाज मे एकता की कमी और राजनीति मे अनुभव की भी कमी थी  और सिर्फ पिछ्ली  बार थोड़ी एकता दिखायी तो  पंचायत समिति सदस्य मे जीत हासिल हो गई । लेकिन कुछ लोगो को जीत से तकलिफ भी हुई और  एक पैतरा अपनाने को मजबुर कर दिया कि ये पांच साल मे कुछ भी काम कर ना सके । और आपस मे लड़ते रहे ।  और वहीँ हुआ ।
ये तो अपने गाँव  की  राजनीति है! अब  वोटरों  को फिर से जगाया जा रहा है. घाव छीले जा रहे हैं. इसलिए नहीं कि किसी को कहीं मरहम लगाना है. इसलिए भी नहीं कि किसी को अपने किये पर वाक़ई कोई पछतावा हो! इसलिए भी नहीं कि किसी को रत्ती भर भी यह एहसास हो कि उनके किये हुये गलतियो का क्या हुआ? इसलिए नहीं कि इतिहास के इन कलंकों से कोई लज्जित है और कोई उनको धोना चाहता है. राजनीति में शर्म के लिए कभी कोई जगह नहीं होती! वह पाँसों का खेल है.। खिलाड़ी चाहे जो हो, खेल की चालें, तरकीबें, तिकड़में और तड़ी वही की वही रहती हैं! इसीलिए चमचे  जगाये जा रहे हैं और चमचे जगेंगे तो वोट गिरेंगे. चमचे अकलमन्द तो वोट जोड़ सकते हैं और बिना अकल के वोट  तोड़नें मे भी नही चूकते है ।  ये एक कटु सत्य है कि आज तक खुद की गलती खुद को कभी नही दिखती है । और जिसको अपनी गलती दिख जाती है वो कभी गिर नही सकता है । और गिरने लग भी जाये तो लोग उनको  गिरने नही देते है सम्भाल लेते है ।   

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