बुधवार, 3 अगस्त 2016

हरियाली अमावस्या

अमावस्या में श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहर सावन में प्रकृति पर आई बहार की खुशी में मनाया जाता है। हरियाली अमावस पर पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती हैं और परिक्रमा दी जाती है। इस दिन मालपूए का भोग बनाकर चढाये जाने की परम्परा है। हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का अधिक महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि एक पे़ड दस पुत्रों के समान होता है। पे़ड लगाने के सुख बहुत होते है और पुण्य उससे भी अधिक होते हैं। वृक्ष सदा उपकार की खातिर जीते है। इसलिये हम वृक्षों के कृतज्ञ है। वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु परिवार के प्रति व्यक्ति को हरियाली अमावस्या पर एक-एक पौधा रोपण करना चाहिये। पे़ड-पौधों का सानिध्य हमारे तनाव को तथा दैनिक उलझनों को कम करता है। वृक्षों में देवताओं का वास- धार्मिक मान्यता अनुसार वृक्षों में देवताओं का वास बताया गया है। पीपल के वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास होता है। इसी प्रकार आंवले के पे़ड में लक्ष्मीनारायण के विराजमान की परिकल्पना की गई है। इसके पीछे वृक्षों को संरक्षित रखने की भावना निहित है। पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए ही हरियाली अमावस्या के दिन वृक्षारोपण करने की प्रथा बनी। इस दिन कई शहरों व गांवों में हरियाली अमावस के मेलों का आयोजन किया जाता है। जिसमें सभी वर्ग के लोंगों के साथ युवा भी शामिल हो उत्सव व आनंद से पर्व मनाते हैं। गु़ड व गेहूं की धानि का प्रसाद दिया जाता है। स्त्री व पुरूष इस दिन गेहूं, ज्वार, चना व मक्का की सांकेतिक बुआई करते हैं जिससे कृषि उत्पादन की स्थिति क्या होगी का अनुमान लगाया जाता है। मध्यप्रदेश में मालवा व निम़ाड, राजस्थान के दक्षिण पश्चिम, गुजरात के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी इलाकों के साथ ही हरियाणा व पंजाब में हरियाली अमावस्या को पर्व के रूप में मनाया जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें