गुरुवार, 18 अगस्त 2016

रक्षाबंधन

देख पूनम सावणीं यूं मेघ उमड़ियां। हाथां झाली राखँडी ज्यूं उभी धिवड़ियां॥ बहिनां जोवे बाटड़ी हियो घणो अधीर। ज्यूं सावणीं सरित में कुचळे ऊंचौ नीर॥ तीज तिवारां है घणा सासरियां रां सैंण। वीरां मिलण राखड़ी राह जोवे सहुं बैन॥ बहिन भाई स्नेह रो राखी तणौ तिवार। धन विधाता सृजियों कर कर करोड़ विचार॥ आई पूनम सावणीं हियो धरे नहीं धीर। भाईयां बांधण राखड़ी बैना आज अधीर॥ सावणं वरसण वादली कर रहीं दौड़म दौड़। (यूं)बहिन मौळावें राखड़ी कर कर मन में कोड़॥ वरसे घटा बावली नदि अथंगा नीर। (यूं) बहिनां बांधे राखड़ी हरख उमंगे वीर॥ चमकी भलीज सावणीं वूठों भळोज मेंह। बहिना भळीज राखड़ी तूठों भठोज नेंह॥ छायी आकाशां बादळी, दे संदेसो गाज। बहिनां बान्धो राखड़ी, भाईयां रक्षण काज॥ रक्षाबन्धन सूत्र में, बध्यों बली हमेश। तिन देव चौकी भरे, ब्रह्मा विष्णुं महेस॥ सुरग पताळ मरतुळोक में, बहीना घणों अरमान। बळराजा री राखड़ी, सहं ठौड़ यजमान॥

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