किसी शख्शियत ने..
✏बेजुबान पत्थर पे लदे हैं करोंडो के गहने मंदिरो में, उसी देहलीज प एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है..
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✏सजे थे छप्पन भोग और मेवे मुर्ती के आगे, बाहर एक फ़कीर को भुख सें तड़प के मरते देखा है..
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✏लदी हुई है रेशमी चादरों सें वो हरी मजार, पर बाहर एक बुढ़ी अम्मा को ठंड सें ठिठुरते देखा है..
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✏वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हॉल के लिए, घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है..
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✏सुना है चढ़ा था सुली पर कोई दुनिया का दर्द मिटाने को,
आज चर्च में बेटे की मार सें बिलखते मां बाप को देखा है..
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✏जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन, आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत सें लड़ते देखा है..
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✏जिसने नहीं दी मां बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी, आज उनको लगाते "भंडारे" मरने के बाद देखा..
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✏दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने, आज पीटते उसी शौहर के हाथों सरे बाजार देखा है..
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✏मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारों, जिसे खुद को काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरों का माहिर लिखते देखा है..
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✏जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों, आज उसीके आंगन में खिंचती दीवार को देखा है..
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✏बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर, अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा..
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✏आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर, अब इंसान सें ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता..
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✏गिद्ध भी कहीं चले गए लगता है, उन्होंने देख लिया कि इंसान हमसें अच्छा नोंचता है..
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✏कुत्ते कोमा में चले गए,ये देखकर कि
क्या मस्त तलवे चाटते हुए इंसान को देखा है..
✏दोस्तों इस कविता को मैंने आप तक पहुंचाने में सिर्फ उंगली का उपयोग किया है, और लिखने वाले को सादर नमन
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