बुधवार, 3 अगस्त 2016
Kahani
किसी गाँव मेँ एक साधु रहता था जो दिन भर लोगोँ को उपदेश दिया करता था। उसी गाँव मेँ एक नर्तकी थी, जो लोगोँ के सामनेँ नाचकर उनका मन बहलाया करती थी।एक दिन गाँव मेँ बाढ़ आ गयी और दोनोँ एक साथ ही मर गये। मरनेँ के बादजब ये दोनोँ यमलोक पहूँचे तो इनके कर्मोँ और उनके पीछे छिपी भावनाओँके आधार पर इन्हेँ स्वर्ग या नरक दिये जानेँ की बात कही गई। साधु खुद को स्वर्ग मिलनेँ को लेकर पुरा आश्वस्त था। वहीँ नर्तकी अपनेँ मन मेँ ऐसा कुछ भी विचार नहीँ कर रही थी। नर्तकी को सिर्फ फैसले का इंतजार था।तभी घोषणा हूई कि साधु को नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है। इसफैसले को सुनकर साधु गुस्से से यमराज पर चिल्लाया और क्रोधित होकर पूछा , “यह कैसा न्याय है महाराज?, मैँ जीवन भर लोगोँ को उपदेश देता रहा और मुझे नरक नसीब हुआ! जबकि यह स्त्री जीवन भर लोगोँ को रिझानेँ के लिये नाचती रही और इसे स्वर्ग दिया जा रहा है। ऐसा क्योँ?”यमराज नेँ शांत भाव से उत्तर दिया ,” यह नर्तकी अपना पेट भरनेँ के लिये नाचती थी लेकिन इसके मन मेँ यही भावना कि मैँ अपनी कला को ईश्वर के चरणोँ मेँ समर्पित कर रही हूँ। जबकि तुम उपदेश देते हुये भी यह सोँचते थे कि कि काश तुम्हे भी नर्तकी का नाच देखने को मिल जाता !हे साधु ! लगता है तुम इस ईश्वर के इस महत्त्वपूर्ण सन्देश को भूल गए कि इंसान के कर्म से अधिक कर्म करने के पीछे की भावनाएं मायने रखती है। अतः तुम्हे नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है। “मित्रों , हम कोई भी काम करें , उसे करने के पीछे की नियत साफ़ होनी चाहिए , अन्यथा दिखने में भले लगने वाले काम भी हमे पुण्य की जगह पाप का ही भागी बना देंगे।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें