बुधवार, 3 अगस्त 2016
राजस्थान
बाजरे की रोटी पोई , ओ फलियाँ रो साग जी।
जीमण बैठी गोरड़ी ,जद बोलणे लाग्यो काग जी।
झुक झुक झोला खावे , आ चुनड़ी लहरावे जी।
ऊनाऴ रे कारणे , म्हारो तनड़ो पड़ग्यो काळो जी
हुळस हुळस म्हारो हिवड़ो रोवे,रोवे थे के जाणो अनजाण जी
खड़ी उडीके गोरड़ी थे ,,, उंठा क्सो पिलाण जी
पुरवाई लहरावे खेता में अब पकी ज्वार जी
आता लाज्यो दांतली करके तीखी धार जी
खळो बुहरियो छाणीयो , कद रो है त्यार जी
बैगा पाछा बावड़ो तो अन्न धनं भरा भंडार जी
बाजरे की रोटी पोई , ओ फलियाँ रो साग जी।
जीमण बैठी गोरड़ी ,जद बोलणे लाग्यो काग जी। —
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