अशुद्ध फागण
1
एक तो वायेलौ मारे
चूला आगे तापे ओ,,,,2
दुजुडो वायलौ मारी
छाती रौन्दे ओ के तिजौ पोळ मे,,,2
मोल~~ तिजौ पोळ मे
चौथौडौ किन्वाड़ भौन्गे ओ
तीजौ पोळ मे
2
,,,,,,,,सा रौ फेटीयौ
जापा मे मेलौ करियौ ओ,,,2
चार जापा करिया जोबन
मौलौ पडीयौ ओ आयो भुडापौ,,,,,2
मोल ~~आयौ भुडापौ
पिन्डी री नाड़ौ पतली पड़गी ओ
के आयौ भुडापौ ,;,,,,2
3
भँवरीयाँ पटीया मे म्हारौ
तिमणियौ आलुजे ओ,,,2
बान्कड़ली मूँछो मे म्हारी
वाली अडगी ओ नाको तौडीयो
मोल नाकौ तौडीयौ
सोना रे सौन्दौ दौरौ लागे ओ
नाकौ तौडीयौ
4
सोना रौ तिमणियौ म्हारे
छाती माथै बादौ ओ,,,,,,2
वान्कड़ली मूँछों मे म्हारी
वाली अडगी ओ वाली चौड़ावो
मोल वाली चौड़ावौ
सोना रे सौन्दौ लागे कौनी ओ
वाली चौड़ावो
मंगलवार, 31 मार्च 2020
चंग फागण 2020 अशुद्ध फागण
सोमवार, 30 मार्च 2020
चंग फागण 2020
राम राम सा
1
नदियो रै पैलौड़ी तीर
जुनौ जोगी तापे ओ,,,2
हाथ मे सौकलियौ लैने
जमियौ नापे ओ के मुण्डा रौप दौ,,,2
मोल ~~मुण्डा रोप दौ
दुनिया रौ जगड़ौ मेट दौ altr
के मुण्डा रौप दौ,,,,2
2
नारकिया थाकौडा वै तौ
गौळ रौ वौन्टो दैऊ ओ
पौणती थाकौडौ वै तो
लाडू सौन्धु ओ भेळ मैथी रौ
मोल ~~भेल मैथी रौ
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,altr
भैल मैथी रौ
3
चांदनी चवदस रा राजा
रोपणी रोपाई ओ
रोपणी रोपाई राजा
होली बाली ओ आयौ उनालौ
मोल ~~आयौ उनालौ
घुन्घटीया मे गरमी होगी ओ
के आयो उनालौ
4
आऊआ रा अमली राजा
बौमणी घर घाली ओ
महलों चढ़ती बौमणी
सराप दिदौ ओ के बलजौ आऊऔ
मोल ~~बलजौ आऊऔ
आऊआ री जागा गऊओ चरजौ ओ
के बलजौ आऊऔ
5
एक तो नन्गारो धणियौ
रातेनाडे वाजै ओ,,,2
दुजुडो नन्गारो धनीयौ
गेट वाजे ओ के गिरदी कोर्ट मे ,,,2
मोल ~~गिरदी कोर्ट मे
मेहलौ मे राणी सूरज पूजे ओ
के गिरदी कोर्ट मे ,,,,2
6
रैशम री तणीयौ रौ हिन्डौ
आम्बली रे बादौ ओ,,,,,,,,2
ठाकर ने ठकराणी दौनु जौडे
हिन्डे ओ ,के हिन्डौ हौले दौ ,,,,2
मोल ~~हिन्डौ हौले दौ
खौळा मे कवँर जी हिन्डे ओ
हिन्डौ हौले दौ,,,,,2
7
नैणौ रौ सिणगार काजल
कुम्पली मे रेगौ ओ,,,,2
तीज रौ सिणगार तो
पैटी मे रैगौ ओ तालौ लागौडौ ,,,,2
मोल तालौ लागौडौ
सासुजी आगे कीकर खौलू ओ
तालौ लागौडौ ,,,,,,2
8
अलगा रौ ढीमड़ीयो थारै
आणौ जाणौ खौटो ओ,,,,2
मारग मे मसौण ने
भुतौ रौ डेरौ ओ डरजौ मती ओ,,,,2
मोल ~~डरजौ मती ओ
मान्दलियौ मन्तराय दैवू ओ
डरजौ मती ओ ,,,,,2
9
चार महिना ऊनाळौ
आन्धी ने वावळ वाजे ओ,;,,,2
चार महिना चौमासौ भादरवौ
वरीयौ ओ के वणियौ बळगी ओ,,,,,,2
मोल ~~ वणियौ बळगी ओ
आसौज वालौ झौलौ वैग्यौ
वणियौ बळगी ओ,,,,,2
10
पंचौ री हथाई माथै
गलियौ अलम वैवै ओ,,,,,2
ठाकरसा री पौल मे
दारूडौ वैवै ओ जूनी भटियौ रौ,,,,,2
मोल~~ जूनी भटियौ रौ
सालौ ने बैनौई पीवै ओ
जूनी भटियौ रौ,,,,,,2
11
पीतल रौ घड़ौलीयौ
नाली रे मुंडे पडीयो ओ,,,,2
सोना री इन्डोनी बैर
पौणी भरियौ ओ मीठा वैरा रौ,,,,2
मोल ~~मीठा वैरा रौ
राम रै रसौडे जावे ओ
मीठा वैरा रौ ,,,,,,2
छौरा तरसाड़ा तौड़े है
।। राम राम सा ।।
आज री इण विगत घड़ी मे कोरौना माहमारी सूँ हैरान महानगरो मे रैवण वाला प्रवासी छौरा घणा दुखी है। अठै रा जाया जलम्या छोरा आपरै घर आवणा सारू तरसाड़ा तौड़े । आपरी आन्गलियौ माथे दिन गिणे घन्टा गिणे नैतावा रौ खौज घमावे के ऐ नैता आप रै जितण रै वोटा रै खातिर तो बस टरेन लगावण सारू होड़ लगावता हा अर आज म्हे इण भीड़ भडाका मे मौत रे मुंडे बैठ्या नजर नी आ रहया हा।अपणा सवारथ रे खातिर नेता कुछ भी कर सके । नेतावों रौ कैहणौ भी साचौ है के जठै हो वठै रौ अठै बिमारी मती लाऔ । पण ऐ छोरा कैवे है कि बिमारी तो लखपती मिनखौ अर नेताऔ रे मान्गेने लायौड़ी है। लागे है कि आज री खबरों देखी है ।ऐ घरवालो ने कैवता की राज रे काम सूँ दिल्ली जाऊ कोई कैवता मथुरा जी दरसण करवा जाऊँ अर पाँच दीनौ थाइलेन्ड़ री सैर कर आवता हाँ । लारला पांच सात दिनौ सूँ विदेस जावण वाळा रौ डाटा सम्भालिजियौ जणा घणा मिनखौ री पोल खुलगी। म्हारौ तो कैणौ ओ है के थौड़ा दिना इन्तज़ार करौ नेताओं रे भरोसे मत रहयो। द्वारकानाथ बैडो पार करसी । नेता तो आप आप रे प्रसार मे लाग्योड़ा है।
जठै ताईं इण नेतावा रौ बस चल सके उठा ताईँ सरकारी मदद रै दाणा दाणा माथै खुद के नाम रौ ठप्पौ लगाय देवणा री कोसिस करै ।"
इक्का दुक्का नेताओ ने छोड़ अर चुनावा मे लाखौ करौड़ौ खरच करण वाला नेता
आज देश री संकट री घड़ी मे एक रिपियौ बारै काडण री कोसिस नी कर रहया है । एक कहावत है कि टीपे टीपे सूँ घड़ौ भरीजै भारत देश री इण धरती माथै आज भामाशाहो री कमी तो नी है । संकट री घड़ी मे भामाशाओ रौ भरपूर समरथन है ।नेता सरकारी कोष सूँ एक दौ लाख रुपया री फगत वात करणी (दैवणा नी है )इत्तो कह अर खुद नै दानवीर कर्ण सूँ कम नी आन्क रिया है।नेताओँ रा चमचा घणी ही लूंठी लूंठी बाता रा बखाण करै पण साची बात तो आ है कै आम आदमी अजै ताई देश रा सहरा सूँ पाळा आपरे गाँव पलायन करै रहया है। भूखा तिरसा ही चाल रहया है।हालत में कोई सुधार नीं व्हियौ नेता मन में मोटा भलांई व्हो पण इण सूं गरीब मजदुरा री हाय जरुर लागैला ।
नेता बैठा बैठा डिंगा हाँके अर उणारा चमचा फेसबूक वाटसप माथै ऊणरी वाहवाही कर रहया है मतलब "हांती थोड़ी अर हुळ हुळ घणी करै
जिण महामारी सूँ आज पुरौ विश्व रै साथै आपारौ देश जूझ रहयौ है ईण मे नेतावों रै ऊपर खासी बड़ी जिम्मेदारी बणै हैं । आज ईण्ं नेताओँ रा चमचा घणी ही वाह वाह कर रैह्या है दस किलो आटो देय अर दस फोटो खींचावता पण नी थाक रहया है। पण साची बात तो आ है कै इण सूं भामाशाहो री गाढी कमाई री राशी लाली रे लेखे लागण सूँ कोई टाळ नीं सकेला।
राजनेता इण केन्द्र सरकार री सगळी योजनावांओ रौ रायतौ बणावता दीखै है । जिण नेता आज ताई एक रूपया रौ दान नी करयौ वै राजनेता ही भामाशाहो नैं देस भगती अर कानून रौ पाठ पढावै रहया है । छौरा रा माँ बाप ही कैवे के जठै बैठा हो बठै ही रैहवो थांरै खाणा पीणा रैवणा री कोई कमी नी है तो आवणा सारू क्यू जिद्द करौ । पण छौरा आवणा सारू घुमरीयाँ घाल रीया है। म्हांनै तो आ लागे है कि छौरा रे मिराज गुटखा री कमी पड़गी वैला। गणाकरा भाई रै खौबा सुखिजण लागा व्हेला। म्हारौ तो आप सगळा प्रवासियों ने औ कैहणौ है कै पन्द्रहां दिना ताईं छाती काठी राखजौ आप रौ ठायौ छौडवा री कोसिस मत करजौ ।
राजपूत और सेठ की कहानी
राजस्थान प्रदेश में राजपूत जाति के लोग बहुत अक्खड़ स्वभाव के होते हैं। चलती पून (पवन) से लड़ाई करना उनका स्वभाव है। मिनटों में सिर फुड़ोबल तथा मरने-मारने को तैयार। वैसे जबान के एकदम पक्के, जो मुँह से बोल दिया वह लोहे की लकीर। पर जल्दी से कोई क्यों उलझे इसलिये बनिये आदि उनसे व्यवहार करने में कतराते है। हाँ तो एक बार जंगल में एक राजपूत तथा एक बनिया साथ-साथ जा रहे थे। वे एक दूसरे से थोड़े बहुत परिचित तो पहले से थे और रास्ता आपस में परिचय को बहुत जल्द पनपा भी देता है। इसलिये आपस में बातचीत शुरु हो गई।
एकाएक राजपूत सज्जन बोले-देखो वह जो बहुत दूर पर पेड़ दिखाई देता है, रास्ते के दाँयी ओर बड़ा-सा घेर घुमेरदार, वह पीपल का पेड़ है। बणिये ने स्वाभाविक रूप से ही कह दिया-नहीं, ठाकर साब! वह तो बड़ का पेड़ है। पर राजपूत को यह कहाँ गवारा था कि वे कोई बात बोले और दूसरा उसको काटे। वे थोड़ी अक्खड़ आवाज में बोले-मेरे हिसाब से तो वह पीपल का पेड़ है पर
इधर बनिये को स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि पेड़ बड़ का है। उसने भी कह दिया-नहीं यह बड़ का पेड़ है। बस इतनी-सी बात हुई कि राजपूत सज्जन तेश में आकर बोले-देख! यदि पीपल का पेड़ हुआ तो मैं तुम्हारी गरदन उतार लूँगा और बड़ का निकला तो तुम मेरी गरदन उतार लेना। बेचारे बनिये ने ऐसी शर्त कभी तीन पुश्त में नहीं की थी पर उसके आगे सिवाय हाँ भरने के कोई चारा नहीं था। उसको मंजूरी देनी पड़ी। और वे जब पेड़ के पास आये तो वह पेड़ बड़ का निकला। तब राजपूत ने कहा-सेठ! मैं होड़ (शर्त) हार गया। यह लो मेरी तलवार और मेरी नाड़ काट लो। पर बनिये बेचारे को कहाँ किसी का सिर काटना था उसने कहा-ठाकराँ! मुझे तो आपका सिर काटना नहीं है। आप राजी खुशी घर जायें। पर उस राजपूत ने कहा-देखो! जो होड़ हुई है वह पक्की है। अब तुम मेरा सिर नहीं काटते हो तो कोई बात नहीं है पर अब से मेरे गले का ऊपर का सब हिस्सा तुम्हारा हो गया। यह तुम्हारी अमानत मेरे पास है। बनिये बेचारे ने हाँमी भर ली और अपना पिण्ड छुड़ाया।
पर महीना भर भी नहीं बीता होगा कि उसे पता चला कि उसका पिण्ड कहाँ छूटा है? वह तो और ज्यादा शिकंजे में कस गया है। उस दिन उसने अपनी दुकान खोली ही थी और बोहनी के लिये ग्राहक की बाट जोह रहा था, ये महाशय ऊँट पर चढ़े हुए पहुँचे। खूब बढ़िया तेल फुलेल लगाये हुए तथा सिर पर कीमती साफा (पग्गड़) पहने हुए थे। आकर दुकान पर शान से बैठ गये। बणिये ने जब उनकी ओर देख कर जिज्ञासा की तो गरजती सी आवाज में बोले-सेठ बताओ, यह मुंड (गले के ऊपर का हिस्सा) मेरा है या तुम्हारा? तब बनिये के ध्यान में आया कि यह जंगल में होड़ में हारा वही राजपूत है। बिचारा, हिचकिचाते हुए बोला-मेरा! सुनकर ठाकर बोला-तो इसको साफ सुथरा रखने में इतने का साबुन लगा इतने का तेल-फुलेल लगा और कंघी चोटी में इतना लगा, कुल 80/- रुपये लगे सो दो। सेठ बिचारा क्या करे यदि ना-नू करे तो अभी यहाँ सीन खड़ा कर दे। गल्ले से चुपचाप 80/- रुपये निकाल कर दे दिये।
अब महीना सवा महीना बीतते न बीतते राजपूत महाशय सेठ की दुकान पर आ बिराजे और मूंड को खिलाने-पिलाने, रख-रखाव के 80/- - 100/- ले जाय। सेठ बिचारा इससे छुटकारा कैसे मिले इस चिन्ता में घुलकर आधा रह गया। इस तरह छह-आठ महीने बीत गये। बार-बार ठाकर का आना सेठ के पड़ोसी दुकानदार भी देख रहे थे और ताज्जुब करते थे कि क्या बात है? यह ठाकर-ठाठ से ऊँट पर आता है और मूँछों पर ताव देते हुए घड़ी आध घड़ी में लौट जाता है। एक दिन उनमें से एक ने सेठ से पूछा-भाइजी! मुझे पूछना तो नहीं चाहिये पर आपने इससे कोई रकम उधार ले रखी है क्या? सेठ ने माथे पर हाथ रखते हुए अपनी सारी पीड़ा खोल कर बताई। सुनकर पहले तो पड़ोसी दुकानदार सोच में डूब गया पर दो-चार दिन के बाद ही दोनों ने कानों कान सलाह मशविरा किया। उस दिन पहली बार इस सेठ के मुँह पर कुछ मुस्कान नजर आई। हाँ तो अपने समय पर राजपूत महोदय को तो आना ही था। सदा की तरह आकर बड़े रोब से ऊँट से उतरे और दुकान के गद्दे पर बैठ गये और अपना डॉयलाग बोलना चालू किया पर आज सेठ ने कहा-ठाकराँ! अभी जल्दी क्या है? आये हैं तो बैठिये। हमारे इस मूंड को जल व चिलम तम्बाकू पिलाइये फिर इतमिनान से ले जाइयेगा। और उनको बैठे आठ दस मिनट ही हुई होंगी कि बगलवाला दुकानदार आया और बोला-भाइसाहब! आज एक ग्राहक अजीब चीज माँग रहा है। दाम भी आकरा (बहुत अच्छा) देने को तैयार है। मुझे तो नहीं पता यह कैसे-कहाँ मिलेगा? मैंने कहा-मेरे पास नहीं है तो बोला-मुझे अरजेन्ट चाहिये कहीं से भी जोगाड़ कर के ला दो। सेठ ने पूछा-क्या चीज? तो संकोचवश सेठ के कान में बताया पर सेठ जोर से बोला-यह तो मैं ही दे सकता हूँ पर 200/- लगेंगे। दुकानदार 150/- देने पर राजी हुआ। आखिर में 175/- में सौदा पटा। फिर इस बनिये ने राजपूत महोदय की ओर मुखातिब होकर कहा-ठाकराँ यह मूंड मेरा है कि आपका? ठाकर ने कहा-आपका। इसीलिए तो रख-रखाव में 90/- लगे वे लेने आया हूँ। वे इतनी बात कर रहे थे कि अगल-बगल के दो-चार लोग और आ गये और बात सुनने लगे। अब इस बनिये ने बगल की दुकानवाले से कहा-आपको एक कान चाहिये तो? उसने कहा-हाँ। उसके हाँ बोलने के साथ उसे छुरी देते हुए कहा-इस ठाकर का एक कान काट कर ले जाओ और 175/- नगदी रख जाओ। अब ठाकर की चमकने की बारी थी, बोला-यह क्या? बात पूरी की पूरी मूंडी काटने की थी। सेठ बोला-ठाकराँ हम तो दुकानदार हैं। हमलोग बोरे के बोरे चीजों के थोक में खरीदते हैं और सेर-आध सेर, पाव, खुदरा में बिक्री करते हैं। आज एक कान का ग्राहक आया है तो उसे कान दे देवेंगे, कल यदि नाक का ग्राहक आया तो उसको नाक दे देंगे। भगवान करे कोई आँख का ग्राहक मिल जावेगा तो इस मूंड का बहुत अच्छा दाम मिल जावेगा। इतनी बात बोलते-बोलते उस दुकानदार की ओर देखकर बोला-देखते क्या हो मैं कहता हूँ ना एक कान काट कर ले जाओ और रोकड़ी 175/- रुपये रख जाओ। अब ठाकर हाय तोबा करने लगा। कुछ देर में गिड़गिड़ाने लगा। आखिर में लोगों ने बीच-बचाव किया और ठाकर को अपना 2000/- रुपये की कीमत का ऊँट देकर सेटलमेन्ट करना पड़ा।
राजपूत और सेठ की कहानी
राजस्थान प्रदेश में राजपूत जाति के लोग बहुत अक्खड़ स्वभाव के होते हैं। चलती पून (पवन) से लड़ाई करना उनका स्वभाव है। मिनटों में सिर फुड़ोबल तथा मरने-मारने को तैयार। वैसे जबान के एकदम पक्के, जो मुँह से बोल दिया वह लोहे की लकीर। पर जल्दी से कोई क्यों उलझे इसलिये बनिये आदि उनसे व्यवहार करने में कतराते है। हाँ तो एक बार जंगल में एक राजपूत तथा एक बनिया साथ-साथ जा रहे थे। वे एक दूसरे से थोड़े बहुत परिचित तो पहले से थे और रास्ता आपस में परिचय को बहुत जल्द पनपा भी देता है। इसलिये आपस में बातचीत शुरु हो गई।
एकाएक राजपूत सज्जन बोले-देखो वह जो बहुत दूर पर पेड़ दिखाई देता है, रास्ते के दाँयी ओर बड़ा-सा घेर घुमेरदार, वह पीपल का पेड़ है। बणिये ने स्वाभाविक रूप से ही कह दिया-नहीं, ठाकर साब! वह तो बड़ का पेड़ है। पर राजपूत को यह कहाँ गवारा था कि वे कोई बात बोले और दूसरा उसको काटे। वे थोड़ी अक्खड़ आवाज में बोले-मेरे हिसाब से तो वह पीपल का पेड़ है पर
इधर बनिये को स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि पेड़ बड़ का है। उसने भी कह दिया-नहीं यह बड़ का पेड़ है। बस इतनी-सी बात हुई कि राजपूत सज्जन तेश में आकर बोले-देख! यदि पीपल का पेड़ हुआ तो मैं तुम्हारी गरदन उतार लूँगा और बड़ का निकला तो तुम मेरी गरदन उतार लेना। बेचारे बनिये ने ऐसी शर्त कभी तीन पुश्त में नहीं की थी पर उसके आगे सिवाय हाँ भरने के कोई चारा नहीं था। उसको मंजूरी देनी पड़ी। और वे जब पेड़ के पास आये तो वह पेड़ बड़ का निकला। तब राजपूत ने कहा-सेठ! मैं होड़ (शर्त) हार गया। यह लो मेरी तलवार और मेरी नाड़ काट लो। पर बनिये बेचारे को कहाँ किसी का सिर काटना था उसने कहा-ठाकराँ! मुझे तो आपका सिर काटना नहीं है। आप राजी खुशी घर जायें। पर उस राजपूत ने कहा-देखो! जो होड़ हुई है वह पक्की है। अब तुम मेरा सिर नहीं काटते हो तो कोई बात नहीं है पर अब से मेरे गले का ऊपर का सब हिस्सा तुम्हारा हो गया। यह तुम्हारी अमानत मेरे पास है। बनिये बेचारे ने हाँमी भर ली और अपना पिण्ड छुड़ाया।
पर महीना भर भी नहीं बीता होगा कि उसे पता चला कि उसका पिण्ड कहाँ छूटा है? वह तो और ज्यादा शिकंजे में कस गया है। उस दिन उसने अपनी दुकान खोली ही थी और बोहनी के लिये ग्राहक की बाट जोह रहा था, ये महाशय ऊँट पर चढ़े हुए पहुँचे। खूब बढ़िया तेल फुलेल लगाये हुए तथा सिर पर कीमती साफा (पग्गड़) पहने हुए थे। आकर दुकान पर शान से बैठ गये। बणिये ने जब उनकी ओर देख कर जिज्ञासा की तो गरजती सी आवाज में बोले-सेठ बताओ, यह मुंड (गले के ऊपर का हिस्सा) मेरा है या तुम्हारा? तब बनिये के ध्यान में आया कि यह जंगल में होड़ में हारा वही राजपूत है। बिचारा, हिचकिचाते हुए बोला-मेरा! सुनकर ठाकर बोला-तो इसको साफ सुथरा रखने में इतने का साबुन लगा इतने का तेल-फुलेल लगा और कंघी चोटी में इतना लगा, कुल 80/- रुपये लगे सो दो। सेठ बिचारा क्या करे यदि ना-नू करे तो अभी यहाँ सीन खड़ा कर दे। गल्ले से चुपचाप 80/- रुपये निकाल कर दे दिये।
अब महीना सवा महीना बीतते न बीतते राजपूत महाशय सेठ की दुकान पर आ बिराजे और मूंड को खिलाने-पिलाने, रख-रखाव के 80/- - 100/- ले जाय। सेठ बिचारा इससे छुटकारा कैसे मिले इस चिन्ता में घुलकर आधा रह गया। इस तरह छह-आठ महीने बीत गये। बार-बार ठाकर का आना सेठ के पड़ोसी दुकानदार भी देख रहे थे और ताज्जुब करते थे कि क्या बात है? यह ठाकर-ठाठ से ऊँट पर आता है और मूँछों पर ताव देते हुए घड़ी आध घड़ी में लौट जाता है। एक दिन उनमें से एक ने सेठ से पूछा-भाइजी! मुझे पूछना तो नहीं चाहिये पर आपने इससे कोई रकम उधार ले रखी है क्या? सेठ ने माथे पर हाथ रखते हुए अपनी सारी पीड़ा खोल कर बताई। सुनकर पहले तो पड़ोसी दुकानदार सोच में डूब गया पर दो-चार दिन के बाद ही दोनों ने कानों कान सलाह मशविरा किया। उस दिन पहली बार इस सेठ के मुँह पर कुछ मुस्कान नजर आई। हाँ तो अपने समय पर राजपूत महोदय को तो आना ही था। सदा की तरह आकर बड़े रोब से ऊँट से उतरे और दुकान के गद्दे पर बैठ गये और अपना डॉयलाग बोलना चालू किया पर आज सेठ ने कहा-ठाकराँ! अभी जल्दी क्या है? आये हैं तो बैठिये। हमारे इस मूंड को जल व चिलम तम्बाकू पिलाइये फिर इतमिनान से ले जाइयेगा। और उनको बैठे आठ दस मिनट ही हुई होंगी कि बगलवाला दुकानदार आया और बोला-भाइसाहब! आज एक ग्राहक अजीब चीज माँग रहा है। दाम भी आकरा (बहुत अच्छा) देने को तैयार है। मुझे तो नहीं पता यह कैसे-कहाँ मिलेगा? मैंने कहा-मेरे पास नहीं है तो बोला-मुझे अरजेन्ट चाहिये कहीं से भी जोगाड़ कर के ला दो। सेठ ने पूछा-क्या चीज? तो संकोचवश सेठ के कान में बताया पर सेठ जोर से बोला-यह तो मैं ही दे सकता हूँ पर 200/- लगेंगे। दुकानदार 150/- देने पर राजी हुआ। आखिर में 175/- में सौदा पटा। फिर इस बनिये ने राजपूत महोदय की ओर मुखातिब होकर कहा-ठाकराँ यह मूंड मेरा है कि आपका? ठाकर ने कहा-आपका। इसीलिए तो रख-रखाव में 90/- लगे वे लेने आया हूँ। वे इतनी बात कर रहे थे कि अगल-बगल के दो-चार लोग और आ गये और बात सुनने लगे। अब इस बनिये ने बगल की दुकानवाले से कहा-आपको एक कान चाहिये तो? उसने कहा-हाँ। उसके हाँ बोलने के साथ उसे छुरी देते हुए कहा-इस ठाकर का एक कान काट कर ले जाओ और 175/- नगदी रख जाओ। अब ठाकर की चमकने की बारी थी, बोला-यह क्या? बात पूरी की पूरी मूंडी काटने की थी। सेठ बोला-ठाकराँ हम तो दुकानदार हैं। हमलोग बोरे के बोरे चीजों के थोक में खरीदते हैं और सेर-आध सेर, पाव, खुदरा में बिक्री करते हैं। आज एक कान का ग्राहक आया है तो उसे कान दे देवेंगे, कल यदि नाक का ग्राहक आया तो उसको नाक दे देंगे। भगवान करे कोई आँख का ग्राहक मिल जावेगा तो इस मूंड का बहुत अच्छा दाम मिल जावेगा। इतनी बात बोलते-बोलते उस दुकानदार की ओर देखकर बोला-देखते क्या हो मैं कहता हूँ ना एक कान काट कर ले जाओ और रोकड़ी 175/- रुपये रख जाओ। अब ठाकर हाय तोबा करने लगा। कुछ देर में गिड़गिड़ाने लगा। आखिर में लोगों ने बीच-बचाव किया और ठाकर को अपना 2000/- रुपये की कीमत का ऊँट देकर सेटलमेन्ट करना पड़ा।
रविवार, 29 मार्च 2020
इक्कीस दिन लोकडाउन के दौहे
*इक्कीस दिन इक्कीस दोहे।"*
पर घर पग नी मैलणो,
चाहै कित्ती करें मनवार ।
अरज करे है आपने,
भारत री सरकार ।।1
जे कोरोना ने रोकणो,
तो पहले रूकजो आप ।
नी रूक्या जै आज तो,
पछै रहसी पछताप ।।2
दवा नहीं इण रोग री,
बचिया ही उपचार ।
हैं रती भर मिनखपणो,
तो मत आजो थे बा'र ।।3
हाथ मिलाणो छोड ने,
दूर सूं करो नमस्कार ।
मास्क लगा ने बोलजो,
ओ ही है उपचार ।।4
साबु सूं हाथ धोवजो,
दिन में दस-दस बार ।
तो ही रुकसी देस में,
कोरोना रा परसार ।।5
कोरोना रे कोप सूं,
मचियो हाहाकार ।
मिनख हुवो तो मानजो,
मत आजो थै बा'र ।।6
पुलिस खड़ी है सड़क पर,
सब री पहरेदार ।
ऐकर मन सूं बोलजो,
इणा की जय जयकार ।।7
अठी उठी नी जावणो,
घर में कर विसराम ।
मान सलाह सरकार री,
पूरण होसी काम ।।8
ठंडी चीजों सूं भला,
करजो थै परहेज ।
पछै भली थै खावजो,
थोड़ी करलो जेज ।।9
जै चावो थै देस में,
हो खुशियों रो ताज ।
तो सरकारी आदेश ने,
थे सगळा मानो आज ।।10
खबर सही अखबार री,
जिण रो कर परसार ।
झूठी अफवा इण घड़ीमें,
मत मानो नर नार ।।11
भारत रो परधान भी,
सबनै जोड़े हाथ ।
समय बितावो आपरो,
घरवालों रै साथ ।।12
धरती अर भगवान री,
सेवा आठो याम ।
दूर करे ऐ रोग ने,
आप करो विसराम ।।13
भामाशाह भी जोर रो,
कर रहिया उपकार ।
घर में बैठ कीजिए,
इणा रा भी सत्कार ।।14
संकट री इण टेम में,
सब करजो उपकार ।
भूखे पेट गरीब ने,
रोटी री मनवार ।।15
काळाबाजारी कठी,
मत करजो रै सेठ ।
मजबूरी रो फायदो,
कितोक भरसी पेट ।।16
पीएम ने सलाम है,
सजग करिया प्रांत ।
काफी हद तक हो गयो,
कोरोना भी शांत ।।17
मिलनै री वैळा नहीं,
मन सूं राखो मेळ ।
घर वासो भगवान रो,
मत मानो थै जेळ ।।18
पढ़ो किताबों ज्ञान री,
और पढ़ो अखबार ।
दुनिया भर री खबर सूं,
पावो सच्चो सार ।।19
घर बैठा मत भूलजो,
करलो वांने याद ।
जिण रै कारण दैस री,
सीमाएं आबाद ।।20
इक्कीस दोहे हर दिन,
पढ़ता रहजो आप ।
PM मोदी री वीणती,
घर ने राखो साफ ।।21
ज़य हिंद ज़य भारत।।
शनिवार, 28 मार्च 2020
महानगरो की खस्ती हालत
।। राम राम सा ।।
जब सरकार कह रही है कि सौसल डिस्टेंसिंग रखो तो महानगरो मे मुंबई बेंगलोर पुणे सुरत दिल्ली अहमदाबाद रहने वाले फेक्ट्रीयो मे काम करने वाले दिहाड़ी लोगो को आपने देखा ही होगा की इन स्लम बस्तियो मे 8×10 मे आठ-नौ आदमी रहते है सार्वजनिक शोषालयो का उपयोग करते है भोजनालयों मे खाना खाते है जिस बस्ती मे रहते है भिड़ भरा इलाका रहता पानी के लिये भिड़ रहती है । आज भोजनालय बन्द हो चुके है ।सार्वजनिक शौषालय संचालक जमिन्दोज हो गये है लोग इस भिड़ से मुक्त होकर अपने गृह राज्यों मे जाना चाहते है ।मजदूर डरे हुये है । समय रहते सरकार को स्वास्थय परिक्षण करवाकर भिड़ को कम करने का काम शुरु करना चाहिये अन्यथा जिस तरह से महानगरो से लोग बैबसी के साथ पैदल ही पलायन कर रहे है वो वापस शहरो मे आने की सात बार सोचेन्गे आज देश के सभी महानगरों से जगह जगह से लोग गाँव के लिये पैदल चल पड़े है । पुलिस को पैसा दो या फिर डण्डे खाओ । स्वास्थय परिक्षण की कही पर व्यवस्था नही दिखती नजर आ रही है । सरकार अमीरो को बचाने के लिये हवाईजहाज द्वारा विदेशो से लोगो को ला रही है लेकिन गरीबो के लिये बसे उपलब्ध नहीं है ।लेकिन सरकार और अमीर ये कभी ना भूले ले कि बिना मजदूरो के वापस फेक्ट्रीया पुनः चालू नही हो पायेगी समय रहते महानगरो के स्लम ऐरियो से इन मजदूर प्रवासियों का सवास्थ्य परिक्षण कर वा कर अपने अपने गृह राज्यों मे भेजना चाहिये।
सवाल यह है कि नेता रोज लाइव और टीवी पर आकर दावा कर रहे हैं कि हम लाखौ लोगों को रोज खाना खिला रहे हैं, हम उनके रहने का इंतजाम कर रहे हैं, हम कोशिश कर रहे हैं कि वो बाहर न जाएं। ये सब खौखली बाते लग रही है ।
पर जब पलायन करते मजदूरों की बातो से तो यही लग रहा है ये सब झूठ है तो वो बता रहे हैं कोई इंतजाम नही है, ऐसे में हम किसी भी तरह अपने घर पहुंचना चाहते हैं।