राम राम सा
मित्रो हमे जीने के लिये अन्न-जल और वायु की जरुरत होती है और इसी के साथ प्रकृति की भी उतनी ही आवश्यकता है धरती पर सभी पशु पक्षियों कीड़े मकोड़ो की आवश्यकता है ज्यादातर पशु पक्षी आजकल विलुप्त होते जा रहे है। आज 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस होने के नाते सिर्फ गौरया के बारे मे ही बता रहा हुँ। घरो मे मनुष्य के साथ रहने वाली गौरया आजकल बहुत कम हो गई है । गौरैया को हम चिड़िया ही बोलते है । बचपन मे जब मे छोटा था उस समय मैं चिड़ियो के घोंसलों को अपने घर के झुम्पो मे औराऊ व पोळ की मिट्टी की दीवारों के दरारों में, थैपड़ो की छतों में देखा करता था। मेरी दादी माँ घर के आंगन में बाजरी की रोटी का चुरा बनाकर डालती थी बाजरा के दाने भी डालतीथी ,जिसके कारण बहुत अधिक गौरैया घर में आ जाती थीं। घर की गुवाड़ी की रेत मे स्नान करती थी । झुम्पौ के वळौ में उन्हें घोंसला बनाने में आसानी होती थी।और बिल्लीयो से खतरा भी नही होता था । गौरैया मनुष्य के साथ सेन्कड़ो वर्षों से रह रही है, लेकिन अब हाल ही के बीस पच्चीस सालो मे गौरैया शहरों मे तो दिखणी बन्द हो गई है अब गाँवों मे भी दुर्लभ पक्षी बन गई। फिर भी जब भी गाँव जाता हूँ तो अभी भी चिडियों के चीं- चीं की आवाजों को सुनकर खुश हो जाता हूँ ।चिड़िया की बात आते ही मुझे अपने बचपन की बात याद आ गई मित्रो इन छोटी की चिड़िया के लिये दादाजी ने बचपन मे एक बार मेरी पिटाई कर दी थी हुआ यूँ कि होली के दिनो मे मेरे हाथ रन्ग की डीब्बीया आ गई थी और मैने एक चिडियाँ को पकड़कर रन्ग दिया था । मेरी इस करतूत का पता दादाजी को पहले से ही था लेकिन उन्होने कहा कि चिड़ी को इतना बढिया रन्ग किसने लगया , बढिया रन्ग का सुनकर मैने भी गर्व से बोल दिया दादाजी मैने ही लगाया हुँ। दादाजी बोले कि मुझे भी पता है बेटा ऐसा काम तुमने ही किया होगा। बेटा इधर आ ! मै समझा इनाम मे गुड़ या पतासे मिलेंगे लेकिन हुआ कुछ उल्टा सीधा कान पकड़कर धुलाई शुरु कर दी दे धनाधन वो दिन मै आजतक नही भुला पाया हूँ।
लेकिन उनके आवास के लिये बड़ी चिन्ता होती है कि आजकल गाँवों मे ना तो झुंपे बसे है ना ही ओळै है ना ही पोळै बसी है आजकल पक्के मकान बन गये है। गांवों मे आंगण, गुवाड़ व गलियाँ पक्की हो गई है ।
हमारी आधुनिक जीवन प्रणाली से चिडियाँओ को सामान्य रूप से रहने के लिए बाधा हो रही है । इनके अनुकूल पेड़ों की कमी भी आई है ।
चिड़ियो के लिये भोजन और जल की कमी घोसलों के लिए उचित स्थानों की कमी
तेज़ी से कटते पेड़-पौधे ,चिड़ियौ के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते है, लेकिन आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं, जिससे ना तो पौधों को कीड़े लगते हैं और ना ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है। इसलिए छोटी चिडियाँओ समेत दुनिया भर के हज़ारों पक्षी आज या तो विलुप्त हो चुके हैं या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे हैं।
और जैसे जैसे पृथ्वी पर जीव जन्तु पशु-पक्षियों की कमी आ रही है इसी के साथ मनुष्यों मे जानलेवा बिमारियों का प्रकोप बढता जा रहा है । लेकिन मनुष्यों की इस बात की बिलकूल परवाह नहीं है।
हमे इस प्रजाति व प्रकृती को जीवित रखने के लिए इनका साथ देना चाहिये
हम थौड़ा बहुत प्रयास करके इन छोटी छोटी चिडियाँओ को वापस अपने घर आने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
घर के छतों, आँगन, खिड़कियों और छज्जों पर दाना और पानी जरूर रखें।
बाजार से कृत्रिम घोंसले लाकर रख सकते हैं।
पहले की भांति घरों में , बाजरा सिटिये फिर से लटकाना शुरू कर दें। यदि घर में कहीं घोसला बना रही हैं तो उन्हें हटाये नही ।
कोशिश करें कि घर में कार्टून,मे छेद करके टाँग दे ताकी वो अपना घौन्सला बना सके।
गर्मियों में पीने के लिए पानी की उचित व्यवस्था करें।
गुमनाराम पटेल सिनली
मित्रो हमे जीने के लिये अन्न-जल और वायु की जरुरत होती है और इसी के साथ प्रकृति की भी उतनी ही आवश्यकता है धरती पर सभी पशु पक्षियों कीड़े मकोड़ो की आवश्यकता है ज्यादातर पशु पक्षी आजकल विलुप्त होते जा रहे है। आज 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस होने के नाते सिर्फ गौरया के बारे मे ही बता रहा हुँ। घरो मे मनुष्य के साथ रहने वाली गौरया आजकल बहुत कम हो गई है । गौरैया को हम चिड़िया ही बोलते है । बचपन मे जब मे छोटा था उस समय मैं चिड़ियो के घोंसलों को अपने घर के झुम्पो मे औराऊ व पोळ की मिट्टी की दीवारों के दरारों में, थैपड़ो की छतों में देखा करता था। मेरी दादी माँ घर के आंगन में बाजरी की रोटी का चुरा बनाकर डालती थी बाजरा के दाने भी डालतीथी ,जिसके कारण बहुत अधिक गौरैया घर में आ जाती थीं। घर की गुवाड़ी की रेत मे स्नान करती थी । झुम्पौ के वळौ में उन्हें घोंसला बनाने में आसानी होती थी।और बिल्लीयो से खतरा भी नही होता था । गौरैया मनुष्य के साथ सेन्कड़ो वर्षों से रह रही है, लेकिन अब हाल ही के बीस पच्चीस सालो मे गौरैया शहरों मे तो दिखणी बन्द हो गई है अब गाँवों मे भी दुर्लभ पक्षी बन गई। फिर भी जब भी गाँव जाता हूँ तो अभी भी चिडियों के चीं- चीं की आवाजों को सुनकर खुश हो जाता हूँ ।चिड़िया की बात आते ही मुझे अपने बचपन की बात याद आ गई मित्रो इन छोटी की चिड़िया के लिये दादाजी ने बचपन मे एक बार मेरी पिटाई कर दी थी हुआ यूँ कि होली के दिनो मे मेरे हाथ रन्ग की डीब्बीया आ गई थी और मैने एक चिडियाँ को पकड़कर रन्ग दिया था । मेरी इस करतूत का पता दादाजी को पहले से ही था लेकिन उन्होने कहा कि चिड़ी को इतना बढिया रन्ग किसने लगया , बढिया रन्ग का सुनकर मैने भी गर्व से बोल दिया दादाजी मैने ही लगाया हुँ। दादाजी बोले कि मुझे भी पता है बेटा ऐसा काम तुमने ही किया होगा। बेटा इधर आ ! मै समझा इनाम मे गुड़ या पतासे मिलेंगे लेकिन हुआ कुछ उल्टा सीधा कान पकड़कर धुलाई शुरु कर दी दे धनाधन वो दिन मै आजतक नही भुला पाया हूँ।
लेकिन उनके आवास के लिये बड़ी चिन्ता होती है कि आजकल गाँवों मे ना तो झुंपे बसे है ना ही ओळै है ना ही पोळै बसी है आजकल पक्के मकान बन गये है। गांवों मे आंगण, गुवाड़ व गलियाँ पक्की हो गई है ।
हमारी आधुनिक जीवन प्रणाली से चिडियाँओ को सामान्य रूप से रहने के लिए बाधा हो रही है । इनके अनुकूल पेड़ों की कमी भी आई है ।
चिड़ियो के लिये भोजन और जल की कमी घोसलों के लिए उचित स्थानों की कमी
तेज़ी से कटते पेड़-पौधे ,चिड़ियौ के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते है, लेकिन आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं, जिससे ना तो पौधों को कीड़े लगते हैं और ना ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है। इसलिए छोटी चिडियाँओ समेत दुनिया भर के हज़ारों पक्षी आज या तो विलुप्त हो चुके हैं या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे हैं।
और जैसे जैसे पृथ्वी पर जीव जन्तु पशु-पक्षियों की कमी आ रही है इसी के साथ मनुष्यों मे जानलेवा बिमारियों का प्रकोप बढता जा रहा है । लेकिन मनुष्यों की इस बात की बिलकूल परवाह नहीं है।
हमे इस प्रजाति व प्रकृती को जीवित रखने के लिए इनका साथ देना चाहिये
हम थौड़ा बहुत प्रयास करके इन छोटी छोटी चिडियाँओ को वापस अपने घर आने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
घर के छतों, आँगन, खिड़कियों और छज्जों पर दाना और पानी जरूर रखें।
बाजार से कृत्रिम घोंसले लाकर रख सकते हैं।
पहले की भांति घरों में , बाजरा सिटिये फिर से लटकाना शुरू कर दें। यदि घर में कहीं घोसला बना रही हैं तो उन्हें हटाये नही ।
कोशिश करें कि घर में कार्टून,मे छेद करके टाँग दे ताकी वो अपना घौन्सला बना सके।
गर्मियों में पीने के लिए पानी की उचित व्यवस्था करें।
गुमनाराम पटेल सिनली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें