।। राम राम सा ।।
मित्रो वर्तमान समय मे पुरा विश्व कोरोना के भय से कांप रहा है। ये एक प्राकृतिक आपदा है हमे इस प्राकृतिक आपातकाल के लिये अगले 25-30 दिन तक सावधान रहना होगा। कल रात हमारे प्रधान-मंत्री माननीय नरेन्द्र मोदीजी ने जो निर्देश दिये है उनकी पालना करनी है इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग व सरकार द्वारा दिये निर्देशौ का भी पालना करनी होगी । तब जाकर हम इस खतरनाक वाइरस से मुक्त होन्गे ।
वैसे तो संसार मे अनेक तरह के जीव जन्तु पशु-पक्षी है, लेकिन मनुष्य अपनी बुद्धि, विवेक, जिज्ञासा से स्वयं को सभी में से सर्वोच्च मानता है । पर ऐसा क्या है जो इतना ज्ञानी और विवेकशील होने के पश्चात भी मनुष्य आज सबसे ज्यादा दुखी है
मेरे विचार से इसका कारण है मनुष्य का धर्म व उसकी रहन-सहन खानपान की प्रवृति जिससे वह आज विमुख हो गया है।
मित्रो हम पशुओं में घोड़े, गाय, भैंस ,भेड़, बकरी समेत सभी पशुओं को देखते है इसके अलावा पक्षियों में कबूतर, तोता, चिड़िया,मोर आदि को भी देखते है इनको देखकर यह तो साफ हो जाता है कि वह सब ऐसा कोई कार्य नहीं करते जो उनके धर्म के आचरण के विरुद्ध हो। यानि वह अपनी मूल प्रवृति के साथ प्रकृति के अनुसार ही खानपान व आचरण करते हैं। वह कुछ ना कुछ करके केवल पशु धर्म का पालन तो कर रहे हैं। पशु करोड़ो वर्ष पहले आरम्भ काल में भी घास ही खाते थे और आज भी घास ही खाते हैं।
एक शेर आज से करोड़ो वर्ष पहले भी मांस खाता था और आज भी मांस ही खा रहा है, एक कबूतर शाकाहारी था आज भी शाकाहारी है।
लेकिन मनुष्य शुरु से ही अपना खानपान बदलता आ रहा है और जीवित रहने के लिए कुछ भी खा लेता है।पशु-पक्षियों कीड़े मकोड़े किसी को नही छोड़ता है ।
आज पूरी दुनिया मे सबसे घातक कोई जीव है तो वो मनुष्य ही है ।आज मनुष्य अपने खाने मे उड़ने वालों में पतंग को , पानी में रहने चलने वालों में नाव को और चार पैर वालों में सिर्फ चारपाई को छोडक़र सभी को खा जाता है । शायद यही सब मनुष्य के दुखों का सबसे बड़ा कारण भी है।
सच और झूठ का तो पता नही है लेकिन हाल ही में कोरोना वायरस को लेकर जब मैंने सुना कि यह बीमारी चमगादड़ का सूप पीने से फैली तो मुझे बहुत ही अजीब लगी।
पूरी पृथ्वी पर जिस मनुष्य को हम सर्वश्रेष्ठ मानते है उसका आज कितना पतन हो गया और वह इसे पतन न मानकर आधुनिकता और फैशन समझ रहा है। पशु घास खाते है लेकिन जैसे ही उनका पेट भरता है फिर चाहें जंगल में कितनी भी हरियाली क्यो ना हो पेट भर खाने के बाद मे वह चरता नहीं है । दिन में चरता है रात में विश्राम करता है लेकिन आज मनुष्य का कोई टाइम टेबल नहीं है।
सुबह भी खाता है, शाम को भी, रात में भी खाता है ज्यादा देर जगा तो आधी रात में भी खाता है, हम खाना इसलिये खाते है कि हमारा शरीर सुचारू रूप काम करने के लिये ताकत वं ऊर्जा के लिए अनेकों पोषक तत्वों की पूर्ति हो सके। जो हमें भोजन सेमिलती है ज्यादा ताकत की खोज करते-करते मनुष्य ने अपने भोजन को इतना घटिया बना लिया कि कुछ भी खा जाता है। किसी भी पशु-पक्षियों कीड़े मकोड़ो को खाने लग जाता है । जबकि उसकी उर्जा के लिए पूर्ण पोषक तत्व साग सब्जी व अनाज में भी उपलब्ध है।
मित्रो हमारा जीवन बहुत ही बहुमूल्य है और यह सौभाग्य से प्राप्त हुआ है और जीवित रहने के लिए ही हमे सिर्फ शाकाहारी खाना ही खाना चाहिये । पशु पक्षी जीवित रहने के लिए प्रकृति के साथ जुड़ रहे है और अपना भोजन ले रहे है। परंतु मनुष्य अच्छे स्वाद और जीवित रहने के लिए मूक पशु-पक्षियों कीड़े मकोड़े जहरीले सांप से लेकर आज चमगादड़ तक को निगल रहा है।
इसी वजह से सबसे ज्यादा दुखी है मनुष्य इन मूक प्राणियो की हत्याएँ करते हुये ये कभी नही सोचता है कि एक दिन शायद इनका भी आ सकता है। आज इस छोटे से कीटाणु ने पूरी धरती पर पैर पचार दिया है । अब डरना नही है सावधान रहना होगा। बाकी का काम प्रकृती पर ही छोड़े तो बेहतर होगा ।
गुमनाराम पटेल सिनली
शुक्रवार, 20 मार्च 2020
कोरोना का खौफ
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