मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

लोकडाउन-2

।। राम राम सा ।।
मित्रो कोरौना महामारी के बढते हुये प्रकोप के कारणआज हमारे देश में 3 मई तक लोकडाउन बढा दिया गया है। साथ ही 20 अप्रैल से सशर्त छूट की भी बात कही है । कोरोना को हराने की दिशा में सबसे विचार-विमर्श करके लिया गया फैसला भी जनहित में ही होगा। इस संकट समय कोरोना को हराने के लिए सिर्फ सरकार को ही  नहीं ब्लकि  देश की जनता को भी कड़ी तपस्या करने की आवश्यकता है।आज ना तो कोई किसी से मिल पा रहा है, न कोई कहीं आ-जा पा रहा है।और यह हम लोगों की समझदारी, सतर्कता, धैर्य से ही संभव है।
हम सभी ने लॉकडाउन के बीते 21 दिन इस आशा में बिताए कि 14 अप्रैल के बाद आवागमन  होना प्रारंभ हो जाएगा। परंतु कुछ लोगो  की लापरवाही के कारण अंधेरा छंटने का नाम नहीं ले रहा। कई घरों में प्रतिदिन कमाई से परिवार पलता था, वहां भी स्थिति विकट होने लगी है । परंतु अभी सबसे बड़ी समस्या यही है कि भले ही हम फिर से व्यापार शुरू कर देन्गे , भले ही फिर से मिलना-जुलना शुरू कर देन्गे , पर सबसे जरूरी है कि हम एक-दूसरे से दूरी भी बनाकर चलें, दायरे को बढ़ाकर रखें। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि जरा सी छूट अगर मिल जाये तो हम नियमों की धज्जियां उड़ाने में बिल्कुल देरी नहीं करते। हमारी यही कमजोरी हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या बन गई। सरकार के बार-बार आग्रह के बावजूद हम न तो एक-दूसरे से दूरी बनाकर रख रहे हैं न घरों में चुपचाप बैठ रहे हैं। बीते 21 दिनों में यदि हम सब मिलकर समझदारी का परिचय देते तो आज समस्या इतना विकराल रूप धारण नहीं करती। जमात के चंद मूर्खों ने जो हरकत की, उसे भी देश कभी भूल नहीं सकेगा। दिल्ली मे केजरीवाल ने भी कुछ कसर नही छोड़ी और आज लोकडाउन 2 के कुछ समय बाद मुंबई मे बांद्रा लोकल स्टेसन पर राजनीति शुरु कर दी गई। जहाँ लगभग तीन चार हज़ार लोग इकट्ठा हो गये और ये कह दिया कि वो सब प्रवासी थे अरे भाई  घर जाने वाले प्रवासी मजदूरों की भीड़ थी  तो इनमें से किसी के भी पास बैग, थैले, समान क्यूं नहीं था ।भीड़ लोकल स्टेसन की मस्जिद के सामने क्यूँ थी महाराष्ट्र में 30 अप्रैल तक का लॉकडाउन पहले से ही घोषित था तो आज ही  हंगामा क्यूं किया ।मुझे तो इसमे राजनितिक साजिश की बू आ रही है।
अब अति सीमित संसाधनों के सहारे 3 मई तक का समय शांति के साथ निकलना हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती हो गई है । और इससे भी बड़ी चुनौती शांति के साथ लॉकडाउन के नियमों का पालन करना है। यह समय यदि हम सब मिलकर सावधानीपूर्वक बीता लेते और संक्रमण की संख्या में कमी आती तो हम अपने घर जा सकते थे।  बीते समय की लापरवाही ने ‘अच्छे दिन’ को थोड़ा और दूर कर दिया गया है। ऐसी विकट परिस्थितियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 अप्रैल के बाद शर्तों के साथ छूट देने की बात तो  कही है  हमें भी संकल्प लेना होगा  लोकडाउन का पालन करना आवश्यक है, तभी कोरोना महामारी से देश को मुक्ति मिलेगी।
अभी अखबारों में प्रतिदिन ये खबर आ रही है, किसी के यहां राशन खत्म हो गया, किसी ने सात दिन से चाय तक नहीं पी। घर या दुकान का किराया देने के लिए पैसे खत्म हो गए। कोई बाहर अन्य शहर में कई दिनों से अटका हुआ है। देशभर में इस तरह की खबर पढ़ने-सुनने को मिल रही है। कई जगह सामाजिक संस्थाएं जरूर सहायता करने के लिए आगे आए हैं, परंतु कुछ विडम्बनाएं ऐसी हैं, जिनका समाधान मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है। व्यापार न होने से खर्च निकलना मुश्किल, दूर रह रहे अपनों को पास बुलाना मुश्किल, मध्यम वर्ग का होने के कारण खुलकर सहायता मांगना मुश्किल, जिनके पास पैसे हैं उनके लिए बाजार से दूरी बनाकर सामान लाना मुश्किल। तमाम मुश्किलों के बीच कोरोना को जीतना जरूरी है। यह समय समझदारी का है। तपस्या कड़ी है, मुश्किल बड़ी है, पर जीतना भी बहुत जरूरी है।

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