रविवार, 12 अप्रैल 2020

सपने मे आये कोरोना बाबा

हमारे देश में बाबा तो बहुत हुये पर ऐसे बाबा कभी नहीं हुये थे जिन्होंने रिश्तों की अहमियत सिखाई हो।

असल में हमारे यहां के बाबा तहलका पसंद होते हैं। कभी आश्रम में तहलका तो कभी जेल में। बस अपने घर में ही ऊधम मचाते रहते हैं। दूसरे देशों में तहलका मचाने से वंचित रहे। अभी जिन कोरोना बाबा ने तहलका मचाया है उन्हें आयातित किया गया है। जिसने जन्म तो पराये देश में लिया मगर तांडव दुनिया भर में मचा रखा है। लेकिन एक बात माननी पड़ेगी है बड़े स्वाभिमानी हैं। किसी देश में बिना बुलाए नहीं जाते। भारत के प्रणाम और नमस्कार को तो आदर ही नहीं मानते्। जब तक हाथ मिलाकर या गले मिलकर उसे चूमोगे नहीं तब तक आतिथ्य स्वीकार ही नहीं करता। इतना स्वाभिमानी है। अगर कहीं एक बार धोखे से हाथ पकड़ा तो लाखों को आर पार किये बिना ‌नहीं छोड़ता। इधर हमें देखो हम अपना स्वाभिमान छोड़ पराई पत्तल का बड़ा देख मुंह में पानी भर लेते हैं। अपनी चीनी भी हमें उतनी मीठी नहीं लगती जितना जितना चीन का नाम। वहां जाते ही अपनी संस्कृति उतार आपाद मस्तक उनकी संस्कृति में डूब जाते हैं। नमस्ते प्रणाम सब भूल जाते है। परिणाम स्वरुप‌ चूहे पर लदे पिस्सू की तरह हम भी चिपका कर आ गये।

हमारा धर्म कहता है कि आत्म कल्याण के साथ परहित को भी याद रखो। मगर उनका धर्म कहता है कि आत्मकल्याण के लिए दूसरों को बरबाद करो। हमने हमेशा प्रेम में धोखा खाया है। कब कब कब खाया बच्चा जानता है। फिर भी बापू के तीन बंदर बने हुए हैं। परिस्थितियां कहती हैं कि अब वो समय गया। अब हम स्वार्थ से भरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया युग में जी रहे हैं। जिस पर हमारा अधिकार नहीं है। अतः समय कहता है कि स्वयं होशियार रहो। मगर नहीं। हम आज भी अपना छोड़ दूसरों की महानता गायन में लगे हैं। हमारा बच्चा चीन में पढ़ रहा है इसलिए महान है। हमारी बेटी अमेरिका में ब्याही है इसलिए महान है। मगर आज कोरोना ने इस विचार धारा को एक ही जमीन पर लाकर खड़ा कर दिया है।

सोचते सोचते नींद लगी ही थी कि सपने में कोरोना बाबा प्रकट हो गये। मैंने दूर से ही प्रणाम करते हुऐ पूछा,हे चीनी बाबा पहले तो आपने कभी इतना भयावह विश्व भ्रमण नहीं किया था। अब ऐसी क्या बात हुई कि मेरे सपने में भी आ गये। वे बोले हमारी तैयारी तो पहले से ही चल रही थी। मगर समाचार सुन सुन कर हतप्रभ हूं। इतने सारे मारक यंत्र भेजने के बाद भी इंडिया को भेद नहीं सका । कभी खिलौने,कभी होली में रंग गुलाल इलेक्ट्रॉनिक आयटम। पर वाह री इंडिया कुछ तो है ऐसा कि" जाको राखे साइयां मार सक ना कोय,",बस यही मिरेकल देखने आया हूं। इस बार उसने भी हाथ जोड़कर कहा,धन्य है आपकी जीवन जीने की कला। जितनी इम्युनिटी आपमें देखने मिली उतनी और कही नहीं। आपकी अध्यात्म शक्ति , आपसी विश्वास और सहयोग। धन्य हैं आपकी धार्मिक विचार धारा जिसका उद्देश्य ही प्राणी मात्र की रक्षा करना है। भला ऐसे देश के अस्तित्व को कौन न मिटा सकता है।

मैं समझ गया। आपका धर्म रक्षक है तो हमारा धर्म भक्षक है। यही हमारी और आपकी संस्कृति में भेद है। मैं नतमस्तक हूं सनातनी काल से चली आ रही आपकी सभ्यता और संस्कृति के प्रति। जिस क्वारेंटाइन की महत्ता दुनिया आज जान सकी आप सदियों से उसके संवाहक रहे हो। आपको डरने की जरूरत नहीं। तथास्तु। मैं जा रहा हूं मगर आप घर में ही रहें स्वस्थ और सुरक्षित रहें। 

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