अकल सरीरां मांय, तिलां तेल घ्रित दूध में।
पण है पड़दै मांय, चौड़े काढ़ो चतरसी।।
‘‘जिस प्रकार तिलों में तेल और दूध में घी होता है, उसी प्रकार मनुष्य में अक्ल होती है। लेकिन वह एक पर्दे के पीछे छुपी होती है इसलिए उसे बाहर निकालना चाहिए, उसका उपयोग लेना चाहिए।’’
एक सेठ के यहां एक जाट नौकर था। उसका दिमाग बहुत तेज था। सेठ नित्य राजदरबार में जाया करता था। एक दिन जाट ने सेठ से कहां कि मैं भी आपके साथ चला करूंगा। सेठ ने कहा कि वह बादशाह का दरबार है और तुम जट्ट हो। वहां तुम कहीं बेअदबी कर बैठे तो लेने के देने पड़ जाएंगे। तुम राजदरबार के कायदे तो जानते हो नहीं, कहीं मूर्खता कर बैठोगे, इसलिए तुहें साथ ले जाना ठीक नहीं होगा। तब जाट ने सेठ से कहा कि मैं राजदरबार में कुछ भी नहीं बोलूंगा। आप मुझे एक बार ले जाकर तो देखिए! कुछ सोचविचार कर वह जाट को राजदरबार में ले गया। वह वाकई कुछ नहीं बोला, राजदरबार की गतिविधियां चुपचाप देखता रहा। सेठ को जाट पर भरोसा हो गया कि यह राजदरबार में कोई मूर्खता नहीं करेगा। अब जाट सेठ के साथ बराबर दरबार में जाने लगा। दरबार में दोपहर की एक काजी बादशाह को कुरान पढक़र सुनाया करता था। एक दिन काजी ने बादशाह से कहा कि हुजूर, आज के सातवें दिन कयामत होगी। काजी की बात सुनकर सबके मुंह बंद हो गए। दरबार में सन्नाटा छा गया। लेकिन जाट से रहा नहीं गया। वह बोल पड़ा कि काजी झूठ कहता हैं, कयामत नहीं होगी। बादशाह को जाट की बात नागवार गुजरी। सेठ तो भय से कांपने लगा कि अब बादशाह ने जाने या करेंगे? लेकिन जाट अपनी बात पर अड़ा रहा। आखिर में दोनों के बीच यह शर्त तय हुई कि यदि कयामत हो जाए तो दस हजार रूपये जाट काजी को दे और यदि कयामत न हो तो काजी जाट को दस हजार रूपये दे। काजी की ओर से बादशाह ने रूपयों की हां भर ली। लेकिन सेठ ने जाट की हां नहीं भरी। तब जाट ने सेठ को अलग ले जाकर समझाते हुए कहा कि इस सौदे में अपने लिए कोई घाटा नहीं है। यदि प्रलय हो गई तो न काजी बचेगा और न हम, फिर कौन किससे रूपये लेगा? और यदि प्रलय नहीं हुई तो हमको दस हजार रूपये मिल जाएंगे। बात सेठ की समझ में आ गई। उसने जाट की ओर से रूपये देने की हां भर ली। सातवें दिन न प्रलय होनी थी और न हुई। सेठ को शर्त के दस हजार रूपये मिल गए।
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