शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

राजस्थानी कहावतें 5

घ-

घटतोला मिठ बोला।घड़ी को सिर हाल दियो, ढीयै को जबान कोनी हलाई।घड़ी को ठिकाणूं कोनी अर नाम अमरचन्द।घड़ै कुम्हार, भरै संसार।घड़ै गैल ठीकरी, मा गैल डीकरी।घड़ै सुनार, पैरे नार।घड़ै ही गडुओ, होगी भेर।घड़ो फूट कर गिरगण ही हाथ आवै।घण जाया घण ओलमा, घण जाये घण हाण |हिंदी– अधिक सन्तान होने से अधिक उपालम्भ मिलते हैँ तथा गालियां भी सुननी पड़ती हैँ।घण जायां घण नास |हिंदी– अधिक सन्तान कुटुम्ब की एकता का नाश कर देती हैँ।घण जीते, सूरमों हारै।घण बूंठा कण हाण।घणै मीठा मैँ कीड़ा पड़ै | हिंदी– अत्यधिक प्रेम से खरास पड़ती है।घणा जायां घण ओलमा, घणा जायं घण हाण।घणा हेत टूटण का, बड़ा नैण फूटण का।घणी की कांच दाबण गई, आ पड़ी आपकी।घणी रे घणी म्हारा निघण घणी। तूं बैठ्यां म्हारै चिन्ता घणी।घणी तीन-पांच आछी कोन्या।घणी दाई घणा पेट फाड़ै।घणी सराही खीचड़ी दांतां कै चिपै।घणी सुधी छिपकली चुग चुग जिनावर खाय । हिंदी– अधिक सीधा या चतुर व्यक्ति कभी–कभी अधिक खतरनाक होता है।घणूं खाय ज्यूं घणूं मरै।घणूं बल करया घूंडो पड़ै | हिंदी– खीँचातान से वैमनस्य बढ़ता है।घणूं बल भर्यां घूंडी पड़ै।घणूं सियाणो कागलो दे गोबर में चांच।घणों सयाणों कागलो हुवै जको गू मे चांच दे ।घर आयो पावणो रोवतड़ी हँस।घर का टाबर काणा भी सोवणा।घर का टाबर खीर खा, देवता भलो मानै।घर का पूत कुंवारा डोलै, पाडोसी का नो नो फेरा।घर की आदी ई भली।घर की खांड किरकिरी लागै, गुड़ चोरी को मीठो।घर की खाय, सदा सुख पाय।घर की छीज लोक की हांसी।घर की डाकन घर का नै ही खाय ।घर को जोगी जोगणूं आन गांव को सिद्ध।घर को देव अर घर का पूजारा।घर गयां की छांग उसी का केरड़ा, बेटां री बोताज क नैड़ा खेतड़ा।घर गैल पावणूं या पावणा गैल घर।घर जाए का दिन गिणूँ क दांत।घर तो घोस्यां का बी बलसी, पण सुख ऊंदरा भी कोनी पावै।घर तो नागर बेल पड़ी, पड़ौसन को खोसै फूस | हिंदी– व्यक्ति के पास सब कुछ होते हुए भी वह दूसरे के माल पर नजर रखता है।घर नै खोवाई साळो ।घर नै खोवै सालो, भीँत नै खोवै आलो।घर बळतो कोनी दीखै, डूंगर बळतो दीखैघर ब्याह, भू पीपलां।घर में अंधेरो तिलां की सी रास।घर में आई जोय, टेडी पगड़ी सीधी होय।घर में कसालो, ओढ़ै दुसालो।घर में कोन्या तेल न ताई, रांड मरै गुलगुलां तांई।घर में घीणा होय क हुडी चोलणा, एता दे करतार फेर नह बोलणा।घर में नाही अखत को बीज, रांड पूजै आखा तीज।घर में सालो, दीवाल में आलो, आज नहीं तो काल दिवालो।घर मैँ कोन्या तेल न ताई, रांड मरै गुलगुला तांई | हिंदी– घर मेँ तेल भी नहीँ है तथा रांड गुलगुले खाने के लिए लालायित है।घर मोटो टोटो घणूं, मोटो पिव को नांव ऐं कारण धण दुबली, म्हारो रसता ऊपर गांव।घर रोक्यो सालां, भींत रोकी आलां।घर वासे ही रांड अर गोद की बेटी गिरलाई न्ह्याल करै।घर सै उठ बनै में गया अर वन में लागी लाय।घर सै बेटी नीसरी, भांवै जम ल्यो भांवै जंवाई ल्यो।घरकां नै मारणूं, चोरां नै धारणूं।घर-घर माटी का चूल्हा | हिंदी– सभी की एक सी स्थिति।घर-बार थारा, पण ताला कूंची म्हारा।घरै घाणी, तेली लूखो क्यूं खावै?घाघरी को साख नजीक को हो ज्याय।घायल गत घूमैह, रै भूमी मारवाड़ री। राळो रुं रुं मेह, साहित इमरत सूरमों॥घिरत ढुल्यो मूंगा कै मांय।घी खाणूं तो पगड़ी राख कर खाणूं।घी घाल्योड़ो तो अंधेरा में बी छान्यूं कोन्या रैवै।घी जाट को, तेल हाट को।घी सक्कर, अरू दूध क ऊपर पप्पड़ा, सात भयां कै बीच सवाया कप्पड़ा।घी सुधारै खीचड़ी नाम बहू को होय।घी सुधारै खीचड़ी, और बड्डी बहू का नाम ।घुरी में गादड़ो ई सेर।घूंघटा सै सती नहीँ, मुंडाया जती नहीँ | हिंदी– स्त्री घूंघट निकालने से सती नहीँ होती तथा पुरुष सिर मुंडा लेने मात्र से संन्यासी नहीँ हो जाता।घूंस चालती तो बाणियो धरमराज नै भी घूंस दे देतो।घूमटा सैं सती नहीं, मुंडाया सै जती नहीं।घूमर हाली कै बिछिया चाये।घैरगडी सासू छोटी भू बडी ।घोड़तां कै ब्या में गादड़ा ही गीत गावै।घोड़ा तो ठाण बिकै।घोड़ै के अवसार को अर बूडली माई को साथ?घोड़ै कै नाल जड़तां गधेड़ो ही पग उठावै।घोड़ै को लात सूं घोड़ो थोडी ही मरै।घोड़ो घास सैं यारी करै तो खाय के?घोड़ो चाये निकासी नै, बावड़तो सो आए।घोड़ो तो ठाण बिकै | हिंदी– गुणी की कीमत उसके स्थान पर ही होती है।घोड़ो दौड़े दौडे, कुण जाणै।घोड़ो मर्द मकोड़ो, पकड्यां छोड़ै थोड़ो।चाली जैसो तिकूं रा बोलणा, एता दे करतार फेर न बोलण।बतलाया बोले नहीं अर बोलै तो डबको॥म्हरै सैं थारै गई जैंका काडूं खोज। थारै सैं बी जायगी मत गरबावै भोज॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें