रविवार, 19 अप्रैल 2020

लोकडाउन 2

।। राम राम सा।। 
मित्रो कल रात को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लाइव प्रेसकांफ्रेंस मे कुछ बाते कही है । जो राज्य के हित के साथ देश हित के लिये भी सही हो सकती है। लेकिन उसके लिये सभी राज्यो की सहमती भी जरुरी है उन्होने कहा कि कोटा मे पढने वाले छात्र जो देश के बहुत से राज्यो से है उन्हे वापस पहुँचाने की पहल की जिसमे उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा किसी ने हाँ नही भरी थी । और राजस्थान के मजदूर व छोटे छोटे व्यवसायी जो पुरे देश के हर कौने मे बैठे है । और दुसरे राज्यो के मजदूर जो राजस्थान मे है उन्हे एक बार अपने राज्यों मे भेजने के लिये केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को पहल करनी चाहिये । दूसरे राज्यो से किसी भी भाई को आपने राज्य में जाने के लिए दोनों राज्यो की भूमिका जरूर है क्योंकि यह 144 धारा केंद्र सरकार के पास में है ऐसे में आप घर छोड़कर बाहर तक नही जा सकते पुलिस के पास विशेष रूप आपको हिरासत में लेने का अधिकार है ।
अब कानून व्यवस्था बनाए रखने के तो ठीक है लेकिन बड़े शहरो मे तो दिनों-दिन व्यवस्था बिगड़ती जा रही है ।  ये वो गरीब मजदूर लोग है, जिनके पास न तो खुद का घर है और न ही उनका परिवार यहाँ पर रहता है। 21 दिनों के लॉक डाउन ने, न सिर्फ इनसे इनका काम छीना बल्कि इन्हें रोटी-पानी के लिए तरसा दिया था । फिर भी इन्होंने खुद को बांधे रखा और एक-एक दिन गिनकर 14 अप्रैल के दिन का इंतजार किया। लेकिन पुनः जब 19 दिनों के लॉक डाउन के बढ़ने की खबर से निराश हो गये है ।  अब इनके संयम का बांध टुट गया है बड़े शहरों मे स्तिथि भी भयंकर हो गई है सोशल डिस्टेंसिंग किसी भी प्रकार से सम्भव नहीं है।
अब समय रहते केन्द्र सरकार व राज्य सरकारो  को सोचना चाहिये कि जगह जगह फन्सै हुये मजदूरो का स्वास्थय परिक्षण करवाकर अपने अपने गृहराज्यो मे भेजने का उपाय शुरु करें तो आने वाले दिनों के लिये उचित होगा । नही तो आगे हाहाकार मच सकता है।
अब कुछ स्थानिय नेता भी दौ तीन दिन से राजनिती की रोटियाँ  सेकने लग गये है जो एक लेटर लिख कर अपने Twitter account Facebook,  WhatsApp ,Instagram account पर डाल रहे है । कोई कुछ कह रहा है तो कोई और ही कह रहा है । जो लोग अपने पत्र सोशल मीडिया पर डाल कर प्रचार कर रहे है ।सब ढोंग कर रहे है इनको करना कुछ नही हैं सिर्फ दिखावा के अलावा कुछ नही है लेकिन 
सरकारें मजदूरों के प्रति अपनी इतनी भी नैतिक जिम्मेदारी नहीं समझ रहीं कि अब जब उनके पास ना तो काम-धंधा है, न पैसे है और बहुतों के पास तो सिर छुपाने की जगह भी नहीं, तो कम से कम उनको पेट भर भोजन मिलता रहे। सरकारों द्वारा कहीं भी मजदूरों की इतनी-सी मांग भी नहीं मानी जा रही है, कि उन्हें भोजन-पानी और बकाया मजदूरी उपलब्ध कराई जाये या फिर उन्हें अपने घर जाने दिया जाये।
आज लाखौ लोगो को खाना खिलाना किसी भी राज्य सरकार के बस की बात नही है । देश के कोई भी शहर कोई भी गली मोहले मे खाना उन्ही को मिलता है जो अपने वोटर है और  जो मजदूर अन्य किसी राज्य से है उन गरीबों को खाना नसीब नही होता है ।
अगर सरकारों के पास मजदूरों को घरों तक भेजने की व्यवस्था मुमकिन नहीं तो , कम से कम खाने पीने की व्यवस्था तो करवाये।
आज तक कोई भी राज्य सरकार के पास मे  मजदुरो व उनकी संख्या के वास्तविक आंकड़े तक नहीं भी नही हैं,  लॉकडाउन देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य के विरुद्ध भीषण कदम  जरुर हो सकता है लेकिन इसके कारण लोगों को न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामाजिक व मनौवैज्ञानिक दबावों से भी गुजरना पड़़ रहा है, जिसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर लम्बा और गहरा विपरीत असर जरुर होगा । जो आने वाले समय मे घातक सिद्ध होगा । सरकार अगर इस बात का इन्तज़ार कर रही है कि  मरीज मिलने बंद होने के बाद मे सभी को अपने अपने राज्यों में जाने की अनुमती देंगे  तो ये उनकी भूल हो सकती है ।क्योकि अभी तक मामले तेज गति से बढ़ रहे हैं।लोगो को आठ-दस दिनो तक पता ही नही चलता है और कई  संक्रमित लोग जानबूझ कर सामने नही आ रहे है। इसिलिए सरकार  को निर्णय लेना चाहिये ।

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