।। राम राम सा ।।
कोरौना की महामारी के चलते कुछ लोग इसको गम्भीरता से नही ले रहे है । लॉकडाउन को अभी एक सप्ताह ही बीता है। लोगो मे अपने अपने घर जाने के लिये होड़ सी लगा के रखी है बेंगलोर हुब्बली हैदराबाद मुंबई सुरत पुणे चैन्नई के अलावा देश के छौटे बड़े सभी गाँवों से लाखों प्रवासी मज़दूर लोग बड़ी तादाद में अपने अपने गृह राज्यों यूपी बिहार और राजस्थान आदि के लिये पलायन कर रहे हैं। हालांकि सरकार ने कहा था कि जो जहां है वहीं रूका रहे। सबको उनके घर पर ही खाना पानी और अन्य आवश्यक सुविधायें पहुंचाई जायेंगी। लेकिन देखने मे यह आ रहा है कि जो दुकानें कारखानें और उद्योग बंद हो गये हैं।
उनके दुकान या अन्य व्यवसाय के मालिक अपना पीछा छुड़ाने को अपने यहां काम करने वाले मज़दूरों उनके परिवार वालों और अन्य स्टाफ को चंद रूपये पकड़ा कर चलता कर दे रहे हैं। दूसरी तरफ जिन आम लोगों कामगारों और श्रमिकों को कोरोना के बारे में ठीक से जानकारी नहीं है। उनको कोरोना के ख़तरे की भयावहता का अनुमान नहीं हैं। वे कोरोना से अधिक अपनी भूख आजीविका और अपने घर पर सुरक्षित पहुंचने के लिये अपने कार्यस्थलों से पैदल ही दुर्गम सफर पर निकल चुके हैं।
हम सबको जो सबसे ज़रूरी बात समझनी है। वो यह है कि सरकार जो कुछ कर रही है। वह सब हमारी भलाई के लिये ही कर रही है। महामारी फैलने पर सबको अस्पतालों में भर्ती करना लगभग असंभव सा हो जायेगा। हमें यह भी जानना ज़रूरी है कि हम इस समय कोरोना की दूसरी स्टेज में हैं। अगर यह तीसरी यानी बेकाबू स्टेज में पहुंच गया तो फिर यह सरकार और जनता सबकी पकड़ से बाहर होकर महामारी का रूप का धारण कर सकता है। हमारे देश की जनसंख्या के हिसाब से स्वास्थय सेवाये बहुत ही बौनी साबित होगी । सरकार द्वारा अकस्मात का लोकडाउन भी शायद गलत ही गलत था । पुरे देश एक साथ बंद करने को चार घंटे का समय बहुत कम था शायद 15 या 16 मार्च को अल्टीमेटम दिया होता तो लोग सावधान हो जाते थे । एकदम बन्द यानी हडकंप सा मस गया। आवश्यक खाने पीने के सामान की पूर्ति अचानक राज्यों की सीमायें सील हो जाने से जहां की तहां रूक गयीं। पुलिस यह तय नहीं कर सकी कि किसको रोकना है और किसको जाने देना है। इसका नतीजा यह हुआ कि जो जहां था। अचानक लोकडाउन के ऐलान से वहीं फंसकर रह गया। वैसे होना यह चाहिये था कि लोगों को अपने आवश्यक काम निबटाने और अपने कार्यस्थलों से घरों तक पहुंचने को कुछ दिन का समय दिया जाना चाहिये था।
छोटे गाँवों व छोटे शहरो मे तो ठीक है लेकिन भिड़ भरे महानगरो मे हालात सही नही है । अगर कुछ समय दिया गया होता तो इन शहरों से लगभग 25% लोग खाली हो जाते थै । कल रात मुंबई के सबसे बड़े स्लम धारावी इलाके मे कोरोना संदिग्ध मिलना भी किसी परमाणु बम से कम नही है । ये देश का सबसे बड़ा भीड़ भरा इलाका है ।धारावी में लाखों की संख्या में दिहाड़ी मजदूर और छोटे कारोबारी रहते हैं पुरे मुंबई शहर में प्रति वर्ग किलोमीटर में एक लाख तीस हजार लोग रहते हैं, लेकिन धारावी इलाके मे डेढ़ वर्ग किलोमिटर मे लगभग 650000 साढे छह लाख लोग रहते है । इससे सीधा अनुमान लगाया जा सकता है की ये संदिग्ध कोरोना संक्रमित व्यक्ति कितना घातक साबित होगा । ये तो उपर वाला ही जानता है । लेकिन इस इलाके में कुछ लोग आज भी लाकडाउन का पूर्णतया पालन नहीं कर रहे हैं । पुलिस और प्रशासन की कड़ी मेहनत के बाद भी लोग आज भी धड़ल्ले से कहीं भी आ जा रहे हैं। लोग अपनी मनमर्जी कर रहे हैं व मनमर्जी से घूम रहे हैं। उनको नियंत्रण करने वाला कोई नहीं है। सही तरीके से मेडिकल जांच नहीं हो पा रही है। इसलिये यहाँ पर कोरोना के संक्रमण के डर का खतरा अधिक मंडरा है। सभी जगह चिकित्सकीय जांच करवाना बहुत जरूरी है। यदि ऐसा नहीं हो पाया तो कोरोना जैसी बड़ी बीमारी को रोक पाना मुश्किल हो जाएगा।हमारे यहाँ लोगों का जीवन सुरक्षित नहीं रह पायेगा।
गुमनाराम पटेल सिनली
बुधवार, 1 अप्रैल 2020
महानगरों मे कौराना
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