रविवार, 29 सितंबर 2019

अन्न भण्डारण - कोठी व कोठा

।। राम राम सा ।।
मित्रो  राजस्थान मे पुराणे समय मे अन्न भण्डारण के लिये परम्परागत तरीके से  माट्टी की कोठी बणाई जाती थी अब तो सिर्फ पुरानी है उसका उपयोग कर रहे है ।इन दस  पंद्रह सालो से नई बनाते हुये तो मैने नही देखा है । वैसे ये छोटी से लेकर बड़ी आकार मे बणाई जाती है । जो चौकोर  बनाते है उसको कोठा या कन्हारा भी कहते है । ये  डबल जोड़े मे भी बनाया जाता था  कोठी माटी के अलावा पेड़ो की कोमल टहनियों से भी बनाई जाती है। उनके अन्दर व बाहर गोबर व माटी  का लेप करते है कोठी अगर कमरे के अन्दर होती है ।तो उसको ढक्कन से ही ढका जाता है और कमरे के बाहर हो तो उस पर जुम्पी बनाई जाती है ताकि बरसात के दिनो मे भिगे नही । जो अनाज कोठी मे सुरक्षित रहता है वैसा और किसी मे नही रहता है । इसमे ऊपर से अनाज डालते है । लेकिन निकालने के लिये  नीचे की तरफ एक बड़ा छेद होता है जहाँ से अनाज निकाला जा सके। भुल गया हूँ इस को भी कुछ  नाम से कहते  हैं।
पहले हर घर मे चार पाँच बड़ी व आठ दस छोटी छोटी कोठिया अनाज से भरी रहती थी । क्योकि राजस्थान मे हर चार साल मे तीन साल अकाल ही रहता है।  अब गाँवों मे सभी के पक्के घर हो गये है तो पक्के मकानों मे ये कोठिया कई लोगो को अच्छी भी नही लगती है । वैसे लोगो ने आजकल अन्न भण्डारण करना छोड़ दिया है। 

अक्टूबर-नवम्बर में रबी की फसल की कटाई के बाद किन्हारा बनाते हैं। किन्हारा घर की रसोई, आँगन या पिछवाड़े में बनाया जाता है।
माटी की कोठी बनाने मे मेहनत बहुत लगती है  माटी को सड़ा कर तैयार किया जाता है बाद में प्रतिदिन आधा आधा फिट करके दस पन्द्रह दिनों मे तैयार की जाती है  अन्दरुनी और बाहरी सतह को गाय के गोबर से भी लीपा जाता है। क्योंकि गाय के गोबर को जीवाणु प्रतिरोधी माना जाता है। अब तो ये भी कुछ ही वर्षो मे विलुप्त होने के कगार पर है 

रंगीलो राजस्थान

सिंझ्या ढळगी सायबा ,चंदै भरली बांथ ।
खडी़ उडीकूं बारणैं , कद आवैला नाथ ॥
ताचक बैठी गौरडी़ , गोखै साम्हीं पंथ ।
ऊपर चमकै चांदियो ,कद आवैला कंत ॥
थारै हाथां जीम सूं , कंत पधारो आज ।
नींतर भूखी पोढ सूं , सेजां रा सिरताज ॥
भीतर ढाळूं ढोलियो , ऊपर छाऊं आंख ।
थांरै आयां सायबां , म्हारै आवै पांख ॥

राजस्थानी भजन- मीठा बोलो रे

।।  राम राम सा ।।
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उगे सो ई आथमे रे , फूले सो कुम्हलाय !
चिणिया देवल गिर पड़े जी , जन्मे सो मर जाय !
ओ तो जग झुठो रे संसार.....!

सोने री गढ लंका बणी रे , सोने रा दरबार !
रत्ती भर सोनो ना मिल्यो जी रावण मरती बार!
ओ तो जग झुठो रे संसार ...... !

हँस हँस मिठा बोलता रे दिन मे सौ सौ बार !
वे माणस किण दिस गया जी सुरतां करे विचार !
ओ तो जग झुठो रे संसार ......!

सेर सेर सोनो पहरती रे मोतीड़ा मरती भार !
घड़ी एक झोलो बाजियो जी घर -2 री पणिहार !
ओ तो जग झुठो रे संसार .....!

हाथा पर्वत तौलता रे भूमि ना झेलती भार !
वे माणस माटी मे मिल गया,भाण्डा घड़े रे कुम्हार !
ओ तो जग झुठो रे संसार.....!

पाली ना चाली पावण्डो रे , चाली कोस पच्चास !
काशी नगर के चोहटे जी हरिचन्द बेची नार!
ओ तो जग झुठो रे संसार .....!
इस जग में तेरो कोई नहीं साथी रे स्वार्थ का संसार।
मोह माया में भूल गयो रे कोई नहीं चाले साथ।
ओ तो जग झूठो रे संसार .....।

ढाई आखर प्रेम का रे , राम नाम तत् सार !
कहत कबीर सुणो भाई साधो हरिभज उतरो पार !
ओ तो जग झुठो रे संसार ...... !

आज का मोबाइल युग सेल्फी

राम राम सा

मित्रो आजकल का दौर सौशल मिडिया का है। आज सभी के पास मे स्मार्ट फोन है  आदमी हो या औरत जहाँ पहुचें की सेल्फी तो लेनी ही है  अब इन दिनो कोई भाई  गाँव जाता है तो बाजरी या मूँग ज्वार मोठ काटते हुये सेल्फी जरुर लेते है  कोई मतिरा खाते हुये । कोई नेताजी के पास मे जाकर कोई गोगाजी के मेले मे कोई तेजाजी के मेले मे कोई रामदेवजी के मेले मे  ! पर कई लोग दातुड़ौ हाथ मे लेकर सेल्फी लेते है और स्टेटस
आज गाँव मे  सुबह से लेकर शाम तक काटी बाजरी ।
बन्दे  मे  दम अभी भी है फिर भी नही ली हूँ हाजरी ।।

शर्ट पेंट के अन्दर ही दातुड़ौ उल्टो बाजरी उलटा हाथ सूँ पकड़ी है अरे भाई एक दिन धुप मे सुबह से शाम तक काटो तो मालुम पड़े  कि  किसान कितने  सुखी है ।अगर कोई कही मिलने गये तो  हालचाल नही पुछेगे। पहले सेल्फी लेंगे । अगर कोई बच्चा ननिहाल जाकर आयेगा तो घर वाले भी हालचाल की बजाय कहेंगे बता बेटा नानी के साथ सेल्फी कैसी आई है ।ये नही पूछेगा कि नानी की  तबियत कैसी है ।
अब हम सब जानते ही है की आज के  युग को मोबाइल युग कहे तो सही रहेगा । लोग एक ही घर मे रहकर दो दो तीन तीन दिन आपस में बात नहीं करते हैं। मां  -बाप  बेटा बेटी बहु सब के सब फोन मे व्यस्त रहते है ।चाचा चाची भुआ  बहिन को भले याद ना करे पर अमेरिका या ब्रिटेन मे फ्रेंड को विश कर देंगे
आज के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण जरुरत यही तो है!कुछ दिनों पहले जब मोबाइल  नहीं हुआ करता  था, पहले गाँव में कोई रिश्तेदार या मेहमान आता था तो सबसे पहले वो घर की राजी-ख़ुशी के बारे में पूछता,फिर घर में गाय भैन्स के धिणा व  दूध-  के बारे पूछता! फिर  मूँग बाजरी चारा खेत-खलिहान के बारे में!
उसके बाद इधर-उधर कि बातों पर चर्चा होती!पर अब आने वाले समय में  ये बाते पुरानी हो जायेगी!
एक बार मै मेरे मेहमान के घर गया  तो हम शाम को खाना खाने के बाद टीवी भी देख रहे थे और साथ मे  बाते भी कर रहे थे अचानक मेरे ध्यान में  एक बात आई और मैने  उनसे पुछ ही लिया कि आपके बच्चे व दुकान का स्टाप  बहुत ही सिधे है एकदम छुपछाप सब  सो गये है । तो वो थोड़ा मुस्कराये और फिर मुझे वो दृश्य दिखाया  तो मै देखकर दंग रह गया  वहाँ  wifi लगा है और सब के सब मोबाइल मे व्यस्त थे । 
आजकल घर में घुसते ही राजी-ख़ुशी के बाद मेहमानो की नजर सीधी  चार्जर पर  जाती है   "चार्जर कठे है सा ।थोड़ी टाईम के बाद  एक और है  काई ? दुजूड़ौ फोन री बेटरी डाऊन है?" 
आज के दौर मे सम्पुर्ण  भारत मे आपको बिना मोबाइल का कोई  भी भिखारी भी नही मिलेगा ।
वाह रे मोबाइल तेरी महिमा तो  न्यारी है
गुमनाराम पटेल सिनली

राजस्थानी तड़का

>>> शुभरात्री। <<<
तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव।
घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बिन म्हारा पीव!
जब से तुम परदेस गए, गया हमारा चैन।
'कनबतिया' कब मन भरे, तरसण लागे नैन।।
चैटिंग-चैटिंग तुम करो, वैटिंग-वैटिंग हम्म।
चौका-चूल्हा-रारमें, गई उमरिया गम्म।।
सुणो सयाणा सायबा, आ'गी करवा चौथ।
एकलड़ी रै डील नै, खा'गी करवा चौथ।।
दीवाळी सूकी गई, गया हमारा नूर।
रोशन किसका घर हुआ, दिया हमारा दूर।।
दिप-दिप कर दीवो चस्यो, चस्यो न म्हारो मन्न।
पिव म्हारो परदेस बस्यो, रस्यो न म्हारो तन्न।।
रामरमी नै मिल रया, बांथम-बांथां लोग।
थारा-म्हारा साजनां, कद होसी संजोग।।
म्हैं तो काठी धापगी, मार-मार मिसकाल।
चुप्पी कीकर धारली, सासूजी रा लाल!
जैपरियै में जा बस्यो, म्हारो प्यारो नाथ।
सोखी कोनी काटणी, सीयाळै री रात।।
म्हारो प्यारो सायबो, कोमळ-कूंपळ-फूल।
एकलड़ी रै डील में, घणी गडोवै सूळ।।
दिन तो दुख में गूजरै, आथण घणो ऊचाट।
एकलड़ी रै डील नै, खावण लागै खाट।।
पैली चिपटै गाल पर, पछै कुचरणी कान।
माछरियो मनभावणो, म्हारो राखै मान।।
माछर रै इण मान नैं, मानूं कीकर मान।
एकलड़ी रै कान में, तानां री है तान।।
थप-थप मांडूं आंगळी, थेपड़ियां में थाप।
तन में तेजी काम री, मन में थारी छाप।।
आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ।
प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ।।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

पश्चिमी राजस्थान मे बरसात से कहीं खुशी तो कही गम

।। राम राम सा ।।
कहीं खुशी कहीं गम
मित्रो मारवाड़ में ढाई महिने पहले जो किसान  इन्द्र भगवान से बारिश की फरियाद कर रहे थे वही किसान इन्द्र भगवान अब  से बारिश थमने की फरियाद  लगा रहे हैं. आज की बरसात ने  ने कई इलाकों में फसल को चौपट कर दिया मेरे एक मित्र ने ये विडियो भेजा है उसे देखकर  बहुत दुख हुआ है एक किसान कितनी मेहनत करके फसल को पकाता है और वो खराब हो जाये तो ऊस किसान को  कितना दुख हुआ होगा ।  आज  मारवाड़ मे हो रही तेज हवा के साथ-साथ बरसात  के बाद कई किसानों से चेहरे पर चिंता की लकीरें नजर आई तो कुछ किसानो चेहरे पर खुशी भी नजर आ रही है । इस बार  की फसल से अच्छी बारिश होने के चलते पैदावार भी अच्छी होने की उम्मीद थी,  पहले तो लगातार हो रही बारिश से  अनाज बुवाई नही हुई और जिसकी हुई थी अब उनकी  फसलै खराब हो गई है.कुछ गाँवो मे  बारिश से फसलै तो अच्छी हुई और फिर मौसम खुलने के बाद किसान फसलों की कटाई कर रहे थे , लेकिन आज एक बार फिर से हुई बारिश ने किसानों की फसल पर पानी फेर दिया और फसल चौपट हो गई. बाजरे की फसल में दाने कम ही बने थे  और बारिश के बाद जो दाने बने वो फिर से अंकुरित हो जायेंगे . ऐसे में बाजरे  व मूँग की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जायेगी.  नेताओ से मेरी अपील है कि अब सरकार द्वारा खराबे का सर्वे करवाया जाए, जिससे किसानों को उसित  मुआवजा मिल सके और नुकसान की भरपाई हो सके
आज की बरसात कईगाँवों मे तो किसानो के लिये तो वरदान साबित होगी लेकिन जिन किसानो ने फसल काट ली है उन किसानो के लिये तो मुसीबत बन गयी है ।जहाँ जहाँ मारवाड़ मे आज की बरसात हुई है वहाँ ज्यादतर  हिस्सों में आज की  इस बारिश से फसल को जीवनदान मिल जायेगा, वहीं भारी बारिश व तेज हवा वाले इलाकों में खेतो मे पानी भर जाने पर बड़े स्तर पर फसल बर्बाद  भी हो गई है
गुमनाराम पटेल सिनली
27 सितंबर 2019

राजस्थानी भजन - राम राम रे भाया राम राम रे

राम राम रे भाया राम राम रे ||
ओ मारी बोली चाली रा करजो गुना माफ़, मारे भईड़ो ने राम राम रे
राम राम रे भाया राम राम रे || २ ||

आज री सत्संग आपे भेडी करी रे भईडा राम राम रे
मारा जाग तोडा भायो ने,राम राम सा
राम राम रे भाया राम राम रे  |

कागज हो तो पढ़ लेना भाई ला, राम रमा रे
ये तो किस्मत वाछा कोणी जाये
राम राम रे भाया राम राम रे

खेतड होवे तो खड़े लेवा भाया, राम राम रे
ओ तो डूगड मासु खादियो नहीं जाए
मारा भईड़ो ने राम राम रे, भाया राम राम रे
राम राम रे भाईडो ने  राम राम रे

महादेव जी मिलावे तो आपो फिर मिलिसू, मारा भायो ने  राम राम रे
अरे रामजी मिलावे तो फिर सु मालिस, मारा भईड़ो ने राम राम रे
राम राम रे भाया राम राम रे

ओ तो मिलावु सवारिय के हाथ, मारी बेठोडी सभा ने राम राम रे
राम राम रे भाया राम राम रे

ओ रानी रुपडे री विनती सजनो, राम राम रे भाया राम राम रे
मारे सदुड़ो रो, अमरा पुर में वास रे
राम राम रे भाया राम राम रे

बेटोड़ी सभा ने राम राम रे , सब भाइयो ने राम राम
सब बायो ने सब भक्तो ने राम राम रे भाया राम राम रे
राम राम रे भाया राम राम रे

राजस्थानी भजन- अरे जिमो म्हारा साँवरा

अरे जिमो मारा सवारा  थाने जिमावे कर्मा जाटनी ||१||

दही भर लायी वाटकु, ने थारी भरोयो खीस
अरे सरम आवे तो सवार, अंखिया लेवो मीच

अरे जिमो मारा सवारा  थाने जिमावे कर्मा जाटनी ||१||

कर्मा जाटनी रे कारण, आयो सावरो आज
भोली कर्मा जाटनी के कारण, आयो सावरो आप
दही भर पिघो वाट्को, खीस घालियो हाथ

जिमो मारा सवारा, थाने जिमावे कर्मा जाटनी ||१||

कर्मा उभी अरज करे थे सुनजो सिर्जन हार
भजन मंडल ऋ विनती कीड़ी भक्ति भारी

अरे जिमो मारा सवारा,  थाने जिमावे कर्मा जाटनी ||२||
बोलो भगत और भगवान की जय हो

राजस्थानी भजन- चेत रे नर चेत थारे चिड़िया चुग गई खेत


चेत रे नर चेत थार चिड़िया चुग गयी खेत रे, नर नुगरा रे
अब तो मन में चेत रे, तो अब तो दिल में चेत रे

चेत रे नर चेत थार चिड़िया चुग गयी खेत रे, 

गुरु के नाम से आटी रे, अब कुन चडावे थारी घाटी रे नर नुगरा रे

चेत रे नर चेत थार चिड़िया चुग गयी खेत रे, नर नुगरा रे
अब तो मन में चेत रे, तो अब तो दिल में चेत रे ||१||

गुरूजी बता वेगा भेद रे, जब मिटेगी कर्म की रेख रे
नर नुगरा रे अब तो दिल में चेत रे,

गुरूजी बतावे भेद रे जब मिटे जन्म री केद रे, नर नुगरा रे अब तो मन में चेत रे

चेत रे नर चेत थार चिड़िया चुग गयी खेत रे, नर नुगरा रे
अब तो मन में चेत रे, तो अब तो दिल में चेत रे

थोड़ो समझ देख ने आख ले रे, अब गाडोरे हो गयो नर नुगरा रे अब तो मन में चेत रे

चेत रे नर चेत थार चिड़िया चुग गयी खेत रे, नर नुगरा रे
अब तो मन में चेत रे, तो अब तो दिल में चेत रे

गुरु चरण दास जी वाणी रे, संसार शब्द ना पहचानी रे
अब तो दिल में चेत रे, नर नुगरा रे

चेत रे नर चेत थार चिड़िया चुग गयी खेत रे, नर नुगरा रे
अब तो मन में चेत रे, तो अब तो दिल में चेत रे ||१||

राजस्थानी भजन- आदी अनादि निमण पन्त मोटो

आदी अनादी नीमन पंत मोटो
ओ साधो संतो वाली तिरिया ओ साधो भाई ||१||

बिना भजन कुन तरिया संतो भाई

मूल महल बिच चारो चोकी गनपत आसन धरिया
आशन पूरी एडिक होए बेठा ओ संतो

अरे जाप हो अज्म्पा जपिया ओ संतो भजन
बिना भजन कुन तरिया संतो भाई

आवे ओ पहलों नीमन, मारो मात पिता ने
उत पूत पालन करिया रे संतो ||१ ||

बिना भजन कुन तरिया संतो भाई
दूजो निमन इन धरती माता, ने जिन पर पघला धरिया रे संतो

बिना भजन कुन तरिया साधो भाई
आदी अनादी नीमन पंत मोटो

ओ साधो संतो वाली तिरिया ओ साधो भाई ||१||
तिजोड़ो नीमन मारा गुरु पिरो ने

ह्रदय में उजाला करिया ओ संतो भाई बिना नीमन कुन तरिया रे

चोथोड़ी नीमन मारी इन सत री सत्संग ने
जिसमे जाए ने सुधारिय ओ संतो भाई बिना भजन कुन तरिया

आदी अनादी नीमन पंत मोटो
ओ साधो संतो वाली तिरिया ओ साधो भाई ||१||

नीमन करा मारा सूर्य देव ने सकल उजाला करिया
अरे घनो नीवन इन अन्न देव ने जिनाथी उदर रे भरिया संतो भाई

बिना भजन कुन तरिया संतो भाई

आदी अनादी नीमन पंत मोटो
ओ साधो संतो वाली तिरिया ओ साधो भाई ||१||

नीमन करा मारा जयोति  सरूपाः ने होए इन्दर हो बरसिया
अम्रत वर्षा बर्षण लागी, नीमन जेट जल भरिय ओ संतो भाई

बिना भजन कुन तरिया संतो भाई

आदी अनादी नीमन पंत मोटो
ओ साधो संतो वाली तिरिया ओ साधो भाई ||१||

बिना पाड रो भवसागर भरियो, बिना पाड भवसागर भरिया
गुरु चरणों में उभरियो जी

गुरु खिमानजी के चरणे माली लिख्मोजी बोले अरे भूल भरम सब करिया
बिना भजन कुन तरिया संतो भाई

आदी अनादी नीमन पंत मोटो

ओ साधो संतो वाली तिरिया ओ साधो भाई ||२||

गुरुवार, 26 सितंबर 2019

राजस्थानी भजन - मुरली फुटरी बजाई रे नन्द लाला

मुरली फुटरी बजाई रे नंदलला
नंद जी के लाला मैं फेरू थारी माला

थारा मुरली की आवाज़ मैं तो बागा मै सुनी
फुलडा तोड़ ता छोड़ आई रे नंदलाला 

थारा मुरली की आवाज़ म्हे तो पनघट मै सुनी
पानी भरता छोड़ आई रे नंदलाला

थारा मुरली की आवाज़ म्हे तो रसोडा मै सुनी
फ़लका पोवता छोड़ आई रे नंदलाला

थारा मुरली की आवाज़ म्हे तो मंदिर मै सुनी
म्हे तो दौड़ी दौड़ी आई रे नंदलाला

थारा मुरली की आवाज़ म्हे तो महलामे मै सुनी
साजन सुवता छोड़ आई रे नंदलाला

नंदलाला जी म्हारा सावरिया
सावरिया मैं तेरी बावरिया

राजस्थानी भजन - गुरुवाणी

गुरु शब्द है, गुरु समझ है, गुरु मार्गदर्शन है,
गुरु के द्वारा शिष्य, अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है,

चंदा जाएगा, सूरज जाएगा, और जाएगा पानी,
कहे कबीर, एक नाम नई जाएगा, ये है अमर निशानी,

गुरु बिन माला फेरते, और गुरु बिन करते दान,
अरे गुरु बिन सब निष्फल गया, और वाचो वेद पुराण,

राम कृष्ण से कौन बड़ा, और उन्होंने तो गुरु कीन्हि,
अरे तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ,

हमरे गुरु की दो भुजा, और गोविन्द के भुज चार,
अरे चार से कछु ना सरे, और गुरु उतारे पार ,
अरे चार से चौरासी कटे, और दोऊ उतारे पार,

गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे, कुल अभिमान मिटावे हे,
कुल अभिमान मिटावे हो साधो, अरे सतलोक को जावे हे,
गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे,,,,,,,,,,,,,,,

नारी कहे मैं संग चलूँगी, ठगनी ठग ठग काया है,
अंत समय मुख मोड़ चली है, तनिक साथ नहीं देना है,
गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे, कुल अभिमान मिटावे हे,
कुल अभिमान मिटावे हो साधो, अरे सतलोक को जावे हे,
गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे,,,,,,,,,,,,,,,

अरे कौड़ी कौड़ी माया रे जोड़ी, जोड़ के महल बनाया है,
अंत समय में थारे बाहर करिया, उस पर रहम नहीं पाया है,

गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे, कुल अभिमान मिटावे हे,
कुल अभिमान मिटावे हो साधो, अरे सतलोक को जावे हे,
गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे,,,,,,,,,,,,,,,

अरे यत्न यत्न कर सुखो में पाला, वा को लाड अनेक लड़ाया है,
तन की लकड़ी तोड़ी लियो है, लम्बा हाथ लगाया है ,
गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे, कुल अभिमान मिटावे हे,
कुल अभिमान मिटावे हो साधो, अरे सतलोक को जावे हे,
गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे,,,,,,,,,,,,,,,

अरे भाई बंधू और कुटम्ब कबीला, धोखे में जीव बंधाया है,
कहे कबीर सुनो भाई साधो, कोई कोई पूरा गुरु बन्ध छुड़ाया है,

गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे, कुल अभिमान मिटावे हे,
कुल अभिमान मिटावे हो साधो, अरे सतलोक को जावे हे,
गुरु जी बिना कोई कामे नी आवे,,,,,,,,,,,,,,,

राजस्थानी भजन -राम गुण गाओ रे भाई, श्रीराजाराम जी महाराज भजन

राम गुण गाओ रे भाई,

एक दिन झोलो बाजसी रे,
थोरी कली रे कली रूल जाई,
राम गुण गावो ए भई रे,
हरी गुण गावो रे भाई,
राम नाम प्रताप सु थारी,
आवागमन मिट जाई हा।।

अरे माया देखने मूर्ख बनीयो,
नही करणा अनी आयी,
रे जीवडा नही करणा अनी आयी,
माया देखने मूर्ख बनीयो,
नही करणा अनी आयी,
काल बली रो लागे झपाटो,
काल बली रो लागे झपाटो,
ए मुसा ज्यु ले जाई,
राम गुण गावो ए भई रे,
हरी गुण गावो रे भाई,
राम नाम प्रताप सु थारी,
आवागमन मिट जाई हा।।

ए गज हस्ती चढ राजा जावे,
सोवन पालकी माई,
अरे गज हस्ती चढ राजा जावे,
सोवन पालकी माई,
मना भई सोवन पालकी माई,
ए क्या जानु क्या होवसी रे,
क्या जानु क्या होवसी रे,
ए पाव पलक रे माई,
राम गुण गावो ए भई रे,
हरी गुण गावो रे भाई,
राम नाम प्रताप सु थारी,
आवागमन मिट जाई हा।।

अरे तू जाने मै नही जावुला,
रेवुला जुग रे माई,
अरे तू जाने मै नही जावुला,
रेवुला जुग रे माई जीवडा,
रेवुला जुग रे माई,
ए तेरे सरीका लाखो घलीया,
तेरे सरीका लाखो घलीया,
महाभारत रे माई,
राम गुण गावो ए भई रे,
हरी गुण गावो रे भाई,
राम नाम प्रताप सु थारी,
आवागमन मिट जाई हा।।

अरे मन रे मते कभी नहीं चलना,
नही करना अन्याय,
अरे मन रे मते कभी नहीं चलना,
नही करना अन्याय,
मनवा नही करना अन्याय,
अरे राजा रामजी कहे समझावे,
अरे राजा रामजी कहे समझावे,
अवसर बीतो जाई,
राम गुण गावो ए भई रे,
हरी गुण गावो रे भाई,
राम नाम प्रताप सु थारी,
आवागमन मिट जाई हा।।

एक दिन झोलो बाजसी रे,
थोरी कली रे कली रूल जाई,
राम गुण गाओ रे भाई,
हरी गुण गावो रे भाई,
राम नाम प्रताप सु थारी,
आवागमन मिट जाई हा।।

राजस्थानी भजन- वारि जाऊ रे गुरु बलिहारी जाऊ रे

वारि जाऊ रे गुरु बलिहारी जाऊ रे 
मेरे सतगुरु आगन आया में तो वारि जाऊ रे ...१

वारि जाऊ रे गुरु ने बलिहारी जाऊ रे
मारा धिन गुरु आगन आया में वारि जाऊ रे ... १

मारा सतगुरु आगन आया में गंगा गोमती नाया .१
मारी निर्मल हो गयी काया  रे में वारि जाऊ रे ...२

वारि जाऊ रे गुरु बलिहारी जाऊ रे 
मेरे सतगुरु आगन आया में तो वारि जाऊ रे ..१

ओ  मारा सतगुरु दर्शन दिना मारा भाग उदय कर दिना ...२
मारा  भूल भरम सब छिना ...२

वारि जाऊ रे गुरु बलिहारी जाऊ रे 
मेरे सतगुरु आगन आया में तो वारि जाऊ रे ..२

सब सखिया मिल आवो, केसर का तिलक लगावो  रे
ऐ गुरु देव को बधावो  में  गुरु ने वारि जाऊ रे

वारि जाऊ रे गुरु बलिहारी जाऊ रे 
मेरे सतगुरु आगन आया में तो वारि जाऊ रे ..२

आ सतसंग बन गयी  भरी  गावो मंगला चारी
ओ मारे खुली  मनडा री बारी ओ में सतगुरु ने वारि जाऊ रे
ओ मारे खुली  ह्रदय की खिड़की रे

वारि जाऊ रे गुरु बलिहारी जाऊ रे 
मेरे सतगुरु आगन आया में तो वारि जाऊ रे ..२

नारयण दास जस गावे गुरुदेव ने मनावे ..२
अरे मारो बेड़ा पार लगावे जी में वारि जाऊ रे मारा गुरुदेव ने

वारि जाऊ रे गुरु बलिहारी जाऊ रे 
मेरे सतगुरु आगन आया में तो वारि जाऊ रे ..२

                                       

बचपन की शरारते

राम राम सा
मित्रो बचपन मे जब स्कूल में पढ़ता था और जैसा कि बच्चे शैतानियां करते हैं मैं भी शैतानिया बहुत करता था ।
मुझे जब कभी बचपन की ऐसी बातें याद आती हैं तो लगता है वो भी क्या दिन थे। मैं अपने दोस्तो की बहुत सी नादानियां और शैतानियां माफ कर देता था। अपने बचपन की बातों को याद करके। कुछ बातें जो मुझे याद है वो इस प्रकार हैं
कुछ लोगो के पास साइकिलें हुआ करती थी जो मुझे साइकिल पर नही बिठाता था  मैं और मेरे दोस्त उसे देखते ही टायर से हवा निकाल  देते थे। और हम भाग जाते।
घर पर काकड़िया व मतीरे होने के बाबजूद भी  स्कूल से घर के बीच के रास्ते में धवा गाँव के खेतो मे से काकड़ी मतीरे मून्गौ की फलिया  चुराकर खाने मे भी  मजा बहुत आता था । खेत वाला आने पर तेजी से भाग जाना भी कोई रेस से  कम नही था । रास्ते मे आने वाली  हर एक बोरडी के बौर खाना ये भी एक हिस्सा हुआ करता था,। किसी भी साइकिल की पिछली सीट पर लटक जाना। आते जाते ट्रेकटर टौली के पीछे लटकना व कभी गिर गाना भी एक अजीब था ।
स्कुल दीवार से कुदकर स्कूल के बगल के प्याऊ से ठंडा पानी पीना, इस वजह से कई बार पकड़े जाने पर डन्डे भी खाये थे । आज सोचता हूं, पानी पीने पे कोई किसी को कैसे डांट सकता है।
कभी कभी सहपाठीयो को डराते हुए धवा स्कुल से सिनली गाँव तक दोड़  लगवाना। बड़े होकर पता चला के इसे बुलिंग कहते है।
होली से दस दिन पहले से ही सहपाठीयो को पानी से भिगोना ।
कहीं से भी पुरानी माचिस की डिब्बी इकठा करना, फिर वो किसी कूड़ेदान में ही क्यों ना पड़ी हो।
बिना चप्पल पहने हुये भरी दोपहरी में गर्मियों के दिनों में  बिना  किसी बात की परवाह किए हुए खेलना।
दिवाली के अगले दिन सुबह सुबह उन पटाखों को ढूंडने निकल जाना जो पिछली रात फटे नहीं।
ऐसी ही और ढेर सारी बातें हैं जो रह रह कर कभी कभी याद आती हैं, फिर कभी बाकी की बातें लिखूंगा, फिलहाल इतना ही सही ।

रंगीलो राजस्थान

खेतां हरखै बाजरी,धरती करै रचाव ।
थारै आयां सायबा, ढूंढो करै बणाव॥
थारै आयां सायबा, बोल्या डेडर मोर ।
आभै चमकी बीजळी,बादळ गाज्या जोर ॥
साल बदळसी काल नै , होसी उच्छब अपार ।
घर-घर गोठां चालसी , आगत रै सतकार ।।

फसलै कटाई के लिये लाह करना

।। राम राम सा ।।
(लाह )
मित्रो पुराने जमाने से चली आ रही लाह प्रथा अब लगभग कम हो गई है गाँवो कोई भी  मौके जैसे निदान, कटाई, कराई ,कालर घर निर्माण आदि पर गाँवों के लोग परस्पर सहभागिता से एकजुट होकर काम करते हैं। इस प्रक्रिया को लाह(अदौल )कहते हैं। कटाई के समय किसान अपने पड़ोसियों व अन्य किसानों को कटाई में सहायता के लिये आमंत्रित करता है। सामान्यतया प्रत्येक परिवार से एक सदस्य इस काम में भाग लेता है। इस प्रकार सब परिवार एक दूसरे के खेत में फसल कटाई में मदद करते हैं। कभी-कभी तो लाह इतनी बड़ी होती है कि पड़ोसी गाँव के लोग भी उसमें सहभागिता (कटाई) हेतु भाग लेते हैं।

यह एक सामुदायिक काम है जो पारस्परिक सहयोग से होत है। किसान काम करने आये लोगों को मजदूरी नहीं देता है बल्कि वह सभी लोगों को अपनी हैसियत के मुताबिक अच्छा खाना, लाप्सी आदि खिलाता है।
खेत में लाह से काम जल्दी और एक बार में पूरा हो जाता है।
लाह से ग्रामीणों के आपसी सम्बन्ध में प्रगाढ़ता आती है।
इस अवसर पर अच्छा खाना परोसा जाता है और सभी लोग इसे उत्सव की तरह मनाते हैं।