।। राम राम सा ।।
मित्रो राजस्थान मे पुराणे समय मे अन्न भण्डारण के लिये परम्परागत तरीके से माट्टी की कोठी बणाई जाती थी अब तो सिर्फ पुरानी है उसका उपयोग कर रहे है ।इन दस पंद्रह सालो से नई बनाते हुये तो मैने नही देखा है । वैसे ये छोटी से लेकर बड़ी आकार मे बणाई जाती है । जो चौकोर बनाते है उसको कोठा या कन्हारा भी कहते है । ये डबल जोड़े मे भी बनाया जाता था कोठी माटी के अलावा पेड़ो की कोमल टहनियों से भी बनाई जाती है। उनके अन्दर व बाहर गोबर व माटी का लेप करते है कोठी अगर कमरे के अन्दर होती है ।तो उसको ढक्कन से ही ढका जाता है और कमरे के बाहर हो तो उस पर जुम्पी बनाई जाती है ताकि बरसात के दिनो मे भिगे नही । जो अनाज कोठी मे सुरक्षित रहता है वैसा और किसी मे नही रहता है । इसमे ऊपर से अनाज डालते है । लेकिन निकालने के लिये नीचे की तरफ एक बड़ा छेद होता है जहाँ से अनाज निकाला जा सके। भुल गया हूँ इस को भी कुछ नाम से कहते हैं।
पहले हर घर मे चार पाँच बड़ी व आठ दस छोटी छोटी कोठिया अनाज से भरी रहती थी । क्योकि राजस्थान मे हर चार साल मे तीन साल अकाल ही रहता है। अब गाँवों मे सभी के पक्के घर हो गये है तो पक्के मकानों मे ये कोठिया कई लोगो को अच्छी भी नही लगती है । वैसे लोगो ने आजकल अन्न भण्डारण करना छोड़ दिया है।
अक्टूबर-नवम्बर में रबी की फसल की कटाई के बाद किन्हारा बनाते हैं। किन्हारा घर की रसोई, आँगन या पिछवाड़े में बनाया जाता है।
माटी की कोठी बनाने मे मेहनत बहुत लगती है माटी को सड़ा कर तैयार किया जाता है बाद में प्रतिदिन आधा आधा फिट करके दस पन्द्रह दिनों मे तैयार की जाती है अन्दरुनी और बाहरी सतह को गाय के गोबर से भी लीपा जाता है। क्योंकि गाय के गोबर को जीवाणु प्रतिरोधी माना जाता है। अब तो ये भी कुछ ही वर्षो मे विलुप्त होने के कगार पर है