रविवार, 1 सितंबर 2019

विलुप्त होती मिट्टी की हान्डीया

मित्रो समय के साथ साथ बर्तनों मे भी बहुत बदलाव हुआ है ।प्राचीन समय से मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता आ रहा है । बाद मे बदलते समय के साथ  लोहे, तांबे ,पीतल, एलुमिनियम, स्टील , आदि के बर्तन आने लग गये और मिट्टी के बर्तनो को दरकिनार कर दिया गया । देखा जाए तो मिट्टी के बरतन के जैसा स्वास्थ्य के लिये लाभदायक  कोई भी बर्तन नही होता है । मिट्टी के बरतनो मे एक बरतन होता था हान्डिया(हान्डी)
ये  एक प्रकार का मिट्टी का गोलाकार (छोटे घड़े जैसा) बर्तन होता है।यह चूल्हे पर खिन्सड़ी, दाल, सब्ज़ी, खीर  आदि पकाने के काम में आता था। और बड़ी हान्डी मे तो छोटा बिलौना करने के काम भी  करते थे । यह चाक पर साधारण घड़े के मुक़ाबले बेहतर और अधिक चिकनी मिट्टी से बनाया जाता था । और इसका पैंदा भी घड़े के मुक़ाबले मोटा होता था कुम्हार भी  इसे साधारण मिट्टी के बर्तनों की अपेक्षा "नेवा" में अधिक देर तक धीमी आग से पकाते थे, जिससे यह अधिक तापमान के उतार चढ़ाव को झेल सके। और दही चलाकर मट्ठा (छाछ) बनाने और मक्खन निकालने की प्रक्रिया में मथानी की चोटों से टूट ना जायें।
अब हमको  ये हान्डीया देखने को भी नही मिलती है । बढती हुई महंगी मजदूरी के साथ कुम्हारों ने भी मिट्टी के बरतन बनाने का काम कम कर दिया है । अब सिर्फ पानी की मटकी  जरुर देखने को मिलती है । बाकी मिट्टी की पराते ,तव्वे , बुगती, हान्डी ,छाडीया, मुण्ँ  घड़े, कुलड़ी, वाड़ी  ,गोलियाँ, आदि विलुप्त हो गये है । 

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