रविवार, 1 सितंबर 2019

विलुप्त होते झोंपडे

राम राम सा
मित्रो हमे सर्दी गरमी व वर्षा से बचने के लिये घर की आवश्यकता होती है । अब तो सब पक्के मकान हो गये है । लेकिन
  बचपन मे हमारे आस-पास के गांवो  मे  मुख्यत हर घर मे झोपड़ी देखने को जरुर मिलती थी जिसको हमारे यहाँ झुम्पा बोलते है । जो गोलाकार बना होता था। दोनो तरफ ढलान से  बनी बड़े साईज को छौनड़ी व  छोटी-सी  बनी हुई को कोटड़ी कुटिया भी  कहा जाता था । झुम्पे मुख्यत: किसानो  के रहने का स्थान हुआ करते थे । झुम्पो  के निर्माण में यह ध्यान रखा जाता है कि मिट्टी  दीवारों  छोटी छोटी बारीया रखी जाती थी और उसका निवासी भीतर बैठे ही अधिक से अधिक प्राकृतिक दृश्य का अवलोकन कर सके। वर्तमान में झुम्पे अब कहीं-कहीं पर ही दिखाई देते हैं, इसके स्थान पर आधुनिक पक्के मकान बनाये जाने लगे हैं।

आजकल  कुछ लोग थोड़े दिन के विश्राम एवं मनोरंजन के हेतु बनवाते हैं। कही  कही होटलो मे भी झोंपड़ीया दिखाई देती है । झुम्पा की रचना में साधारण मकानों के निर्माण के हिसाब से ही बनता है  बिचोबिस एक खम्भा लगा होता है । जो पुराने समय मे तो लकड़ी का हुआ करता था लेकिन बाद मे पत्थर की लम्बी सिला लगाई जाती थी उपर बाजरे का के डोकौ का या खिम्प छज लगाया जाता है अब हमे  झुम्पे ,छानड़ीयां,कुटिया, कोटडिया, ओले  कही भी दिखाई नही देते है ।

टोटे सर का भिंतडा ,घाते उपर घास !
बारीजे भड झोंपड़ा , अध्पतियाँ आवास !!

झोंपड़ियाँ भड़ एकलो ,गढ़ में भरिया घाट !
तो पण गढ़ न झेलना ,झोंपड़ियाँ ऋ झाट !!

धीरा धीरा ठाकरां ,गुमर कियां म जाह !
मुहंगा देसी झोंपड़ा , जे घर होसी नाह !!

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