रविवार, 1 सितंबर 2019

विलुप्त होती हुई हाथ से चलने वाली चक्की (घट्टी)

।।राम राम सा ।।
घट्टी अर घटूली म्हारा ई नांव।
पाथर री काया, लकड़ी रो हाथ।
जुगां-जुगां सूं मिनखां रै साथ।

मित्रो अनाज पिसने की चक्की को हमारे यहाँ घट्टी कहते है । कही कही चाखी भी कहते है । घट्टी  का प्रयोग काफ़ी पुराने समय से ही अनाज आदि पीसने के लिए किया जाता रहा है। पहले भारत में अधिकांश घरों में घट्टी हुआ करती थी  बाजरा  गेंहूँ आदि पीसने के लिए इसका प्रयोग भी किया जाता था, किन्तु अब इसका प्रयोग लगभग समाप्त सा हो गया है।
मेरी दादीजी कहा करती थी कि जब गाँव मे
कोई बड़ा प्रोग्राम होता था तो गावँ की औरते मिल कर गेहूँ पिसती थी और ये भी कहती थी कि एक साथ एक दिन मे  एक मण यानी 40 किलो अनाज पिसना  मेरे लिये कोई बड़ी बात नही थी ।
आज हमारे घरो मे घट्टीया तो है पर पिचने वाली कोई नहीं है। 
  अब सिर्फ़ अतीत की एक वस्तु होकर रह गई है। घट्टी (चक्की) पत्थरों के दो पाटों से मिलकर बनी होती है। ये पत्थर वजन में भारी होते हैं, जिन्हें गोल-गोल घुमाकर अनाज आदि पीसा जाता है। घट्टी के चारो और मिट्टी की या फिर लकड़ी की पुड़ी बनी होती हैं उसमे पिसा आटा इकठ्ठा होता है । 
कुछ ही वर्षो पहले तक  जब बिजली नहीं थी  गाँव-देहातों की महिलाएँ अपने घरों में ही पत्थर के पाटों से बनी इस हाथ की चक्की से गेंहूँ और अन्य अनाज आदि पीस लिया करती थीं।
वजन में भारी पत्थरों से बनाई जाने वाली इन घट्टीयों के निचले पाट की ऊपरी सतह और ऊपरी पाट की निचली सतह खुरदरी रखी जाती है, जिससे इनके बीच में पीसा जाने वाला अनाज, गेंहू, ज्वार आदि आसानी से पिस सके। घट्टी के ऊपर वाले पाट में किनारे कि तरफ़ एक छिद्र होता है, जिसमें मजबूत लकड़ी से बना हुआ एक हत्था लगा रहता है। इसी हत्थे की मदद से घट्टी  को घुमाया जाता है। पाट में एक दूसरा छिद्र बिल्कुल बीच में होता है, जिसमें से पीसा जाने वाला अनाज डाला जाता है। जब चक्की को घुमाते हैं तो अनाज दोनों पाटों के बीच में घूमते हुए पाटों के वजन से पिसना प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार लगातार चक्की को घुमाते हुए अनाज को महीन पीस लिया जाता है। इस प्रकार पीसा गया अनाज शत-प्रतिशत शुद्ध और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
आज बिजली उपकरण की घट्टीया हर घर मे आ गयी है ।  हाथ से चलाने वाली घट्टी पिचने वाली औरतो  का शरीर स्वास्थ रहता था।  ताजे पिसे हुए आटे में स्वास्थ्य से जुड़े फायदे तो मिलते ही थे  इसका स्वाद व सुंगध भी बरकरार रहती थी।शुद्धता के मामले में घट्टी का आटा शत-प्रतिशत खरा होता है।इसके बने आटे में शरीर के लिए पोषण संबंधी अधिकांश आवश्यक तत्व मौजूद रहते हैं।घट्टी का सबसे बड़ा फायदा ये था कि पूरे साल शुद्ध ताजे आटे की रोटियों का आनन्द लिया जा सकता था।
आज घट्टी बन्द हुए थोड़े ही वर्षो मे नतिजा हम सब देख ही रहे है  अस्पतालों मे भिड़ लगी रहती है । आज 70 प्रतिशत बच्चे सिजेरियन से हो रहे हैं। फिर भी आज औरते घटी चलाने मे शर्म महसूस कर रही है।    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें