।। राम राम सा ।।
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उगे सो ई आथमे रे , फूले सो कुम्हलाय !
चिणिया देवल गिर पड़े जी , जन्मे सो मर जाय !
ओ तो जग झुठो रे संसार.....!
सोने री गढ लंका बणी रे , सोने रा दरबार !
रत्ती भर सोनो ना मिल्यो जी रावण मरती बार!
ओ तो जग झुठो रे संसार ...... !
हँस हँस मिठा बोलता रे दिन मे सौ सौ बार !
वे माणस किण दिस गया जी सुरतां करे विचार !
ओ तो जग झुठो रे संसार ......!
सेर सेर सोनो पहरती रे मोतीड़ा मरती भार !
घड़ी एक झोलो बाजियो जी घर -2 री पणिहार !
ओ तो जग झुठो रे संसार .....!
हाथा पर्वत तौलता रे भूमि ना झेलती भार !
वे माणस माटी मे मिल गया,भाण्डा घड़े रे कुम्हार !
ओ तो जग झुठो रे संसार.....!
पाली ना चाली पावण्डो रे , चाली कोस पच्चास !
काशी नगर के चोहटे जी हरिचन्द बेची नार!
ओ तो जग झुठो रे संसार .....!
इस जग में तेरो कोई नहीं साथी रे स्वार्थ का संसार।
मोह माया में भूल गयो रे कोई नहीं चाले साथ।
ओ तो जग झूठो रे संसार .....।
ढाई आखर प्रेम का रे , राम नाम तत् सार !
कहत कबीर सुणो भाई साधो हरिभज उतरो पार !
ओ तो जग झुठो रे संसार ...... !
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