गुरुवार, 26 सितंबर 2019

बचपन की शरारते

राम राम सा
मित्रो बचपन मे जब स्कूल में पढ़ता था और जैसा कि बच्चे शैतानियां करते हैं मैं भी शैतानिया बहुत करता था ।
मुझे जब कभी बचपन की ऐसी बातें याद आती हैं तो लगता है वो भी क्या दिन थे। मैं अपने दोस्तो की बहुत सी नादानियां और शैतानियां माफ कर देता था। अपने बचपन की बातों को याद करके। कुछ बातें जो मुझे याद है वो इस प्रकार हैं
कुछ लोगो के पास साइकिलें हुआ करती थी जो मुझे साइकिल पर नही बिठाता था  मैं और मेरे दोस्त उसे देखते ही टायर से हवा निकाल  देते थे। और हम भाग जाते।
घर पर काकड़िया व मतीरे होने के बाबजूद भी  स्कूल से घर के बीच के रास्ते में धवा गाँव के खेतो मे से काकड़ी मतीरे मून्गौ की फलिया  चुराकर खाने मे भी  मजा बहुत आता था । खेत वाला आने पर तेजी से भाग जाना भी कोई रेस से  कम नही था । रास्ते मे आने वाली  हर एक बोरडी के बौर खाना ये भी एक हिस्सा हुआ करता था,। किसी भी साइकिल की पिछली सीट पर लटक जाना। आते जाते ट्रेकटर टौली के पीछे लटकना व कभी गिर गाना भी एक अजीब था ।
स्कुल दीवार से कुदकर स्कूल के बगल के प्याऊ से ठंडा पानी पीना, इस वजह से कई बार पकड़े जाने पर डन्डे भी खाये थे । आज सोचता हूं, पानी पीने पे कोई किसी को कैसे डांट सकता है।
कभी कभी सहपाठीयो को डराते हुए धवा स्कुल से सिनली गाँव तक दोड़  लगवाना। बड़े होकर पता चला के इसे बुलिंग कहते है।
होली से दस दिन पहले से ही सहपाठीयो को पानी से भिगोना ।
कहीं से भी पुरानी माचिस की डिब्बी इकठा करना, फिर वो किसी कूड़ेदान में ही क्यों ना पड़ी हो।
बिना चप्पल पहने हुये भरी दोपहरी में गर्मियों के दिनों में  बिना  किसी बात की परवाह किए हुए खेलना।
दिवाली के अगले दिन सुबह सुबह उन पटाखों को ढूंडने निकल जाना जो पिछली रात फटे नहीं।
ऐसी ही और ढेर सारी बातें हैं जो रह रह कर कभी कभी याद आती हैं, फिर कभी बाकी की बातें लिखूंगा, फिलहाल इतना ही सही ।

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