शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

देसी भजन भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजे ।

। राम राम सा ।।

कबीर जी की  बहुत ही अच्छी भजन रचना है 
पर घर प्रीत मत कीजे,

छैल चतुर रंग रसिया रे भवरा,
पर घर प्रीत मत कीजे,
पर घर प्रीत मत कीजे,
पराई नार आ नैण कटारी,
रूप देख मत रीझे,
रे भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजै।।

घर के मंदरिया में निपट अंधेरो,
पर घर दीवला मत जोजे,
घर को गुड़ कालो ही खा लीजे,
पर चोरी की खांड मत खाजे,
पर घर प्रीत मत कीजै,
रे भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजे।।

पराया खेत में बीज मत बोजे,
बीज अकारत जावे,
कुल में दाग जगत बदनामी,
बुरा करम मत कीजे,
पर घर प्रीत मत कीजै,
रे भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजे।।

जग री बाँता भाई झिणी घणै री ।।
जिणमे ध्यान मत दिजे
मित्र थांरा लौभी घनेरा
उणा सूं अलगौ रेईजे
पर घर प्रीत मत कीजै,
रे भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजे।।

ऊन्डा ऊन्डा नीर अथंग जल भरीया ।।
जिणमे पाँव मत धरजै
कुड़ कपट री कमाई मत करजे
राम जी सूं डरतौ रैईजे
पर घर प्रीत मत कीजै,
रे भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजे।।

भाइला री नार जमाण जाई लागे,
बेहनड़ के बतलाजे,
कहत कबीर सुनो रे भाई साधु,
बैकुंठा पद पाजे,
रे भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजे।।

छैल चतुर रंग रसिया रे भवरा,
तू पर घर प्रीत मत कीजै,
पर घर प्रीत मत कीजै,
पराई नारी रा रूप कटारी,
रूप देख मत रीझे,
रे भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजे।।पर घर प्रीत मत कीजे,

छैल चतुर रंग रसिया रे भवरा,
पर घर प्रीत मत कीजे,
पर घर प्रीत मत कीजे,
पराई नार आ नैण कटारी,
रूप देख मत रीझे,
रे भाई म्हारा पर घर प्रीत मत कीजै।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें