सोमवार, 12 अगस्त 2019

देसी भजन - गुरु बिन घोर अन्धेरा रे संतो

भजन

गुरु बिन घोर अँधेरा संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी । 
बिना दीपक मंदरियो सुनो,
अब नहीं वास्तु का वेरा हो जी ॥

जब तक कन्या रेवे कवारी,
नहीं पुरुष का वेरा जी । 
आठो पोहर आलस में खेले,
अब खेले खेल घनेरा हो जी ॥

मिर्गे री नाभि बसे किस्तूरी,
नहीं मिर्गे को वेरा जी । 
रनी वनी में फिरे भटकतो,
अब सूंघे घास घणेरा हो जी ॥

जब तक आग रेवे पत्थर में,
नहीं पत्थर को वेरा जी । 
चकमक छोटा लागे शबद री,
अब फेके आग चोपेरा हो जी ॥

रामानंद मिलिया गुरु पूरा,
दिया शबद तत्सारा जी । 
कहत कबीर सुनो भाई संतो,
अब मिट गया भरम अँधेरा हो जी ॥

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