गुरुवार, 29 अगस्त 2019

राजस्थानी भजन - हद बेहद दोनो तरसे ओलखो अन्तर सन्तो

दोहा -जहाँ ना छिटी चढ़ सके, और राई ना ठहराए 

मन पवन को खबर नही कहा पहुचाये "

हद बेहद दोनों में दरसे, ओल खो अंतर संतो 

नहीं मजिद नहीं मंदिर में ,....१

द बेहद दोनों में दरसे, ओल खो अंतर संतो 

नहीं माजिद नहीं मंदिर में ,

गुरूजी का वचन ज्ञान कर सोजो  

सोल मूल सागर में ,

गज रा सीस किन दिशा गया, सो दो ला किस गड में संतो 

हद बेहद दोनों में दरसे, ओल खो अंतर संतो 

नहीं मजिद नहीं मंदिर में 

मुसलमान माजिद में पुकारे , कर कर उदा सर ने 

ऐ हिन्दु दोड़ दवारका जावे ने पूजे घडियां  पत्थर ने 

हद बेहद दोनों में दरसे, ओल खो अंतर संतो 

नहीं मजिद नहीं मंदिर में  

ब्रह्मा थाका  विष्णु भी थाका 

बावन  अक्सर काल पसरो उभारो ला किस घर में 

अलक पुरुस अटल अविनाशी नहीं आवे देखन ने 

कहे लिख्मो कृपा सतगुरु की 

पायो भेद भजन में संतो 

हद बेहद दोनों में दरसे, ओ खो अंतर संतो 

नहीं मजिद नहीं मंदिर में 

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