मंगलवार, 13 अगस्त 2019

भुरट - एक घास


भूरट (भुर्ंट) घास राजस्थान मे पायी जाने वाली  एक वर्षीय घास है जिसे भूरट या भुरूट  भुन्ट भी कहते हैं। इस घास को पशु बीज बनने से पहले चाव से खाते हैं। बीज सूखने के बाद कांटेदार रोये बन जाते हैं, जो पशुओं के मुँह में चुभते हैं, अतः इस घास को कच्ची अवस्था में पशुओं की चराई के काम में ली जाती हैं अथवा कच्ची अवस्था में कांटे बनने से पूर्व काटकर सूखाकर अथवा ‘हे‘ बनाकर भी पशुओं को खिलाने के काम में ले सकते हैं। 
यह घास मुख्यतः बाजरा मूँग तिल ज्वार आदि के साथ उगती है अथवा फसलों में निदाण (खरपतवार) के समय इसको काट देते है । फिर भी खेतो के किनारे किनारे देखने को मिल जाती है।  जो निदाण के बाद मे काटकर सुखाया जाता है इस घास को मुख्यतः पश्चिमी राजस्थान के सभी क्षेत्रों में देखा जा सकता है।
भुन्ट के बीज छोटे छोटे बाजरी के दाने जैसे होते है । भुन्ट का चारा  कच्ची अवस्था में बीज बनने से पूर्व पशुओं को काटकर खिलाने के काम में लिया जा सकता है।इस घास को कच्ची अवस्था में गाय, भैंस, भेड़, बकरी व ऊँट रूचि से खाते हैं। ये सुखने  बाद अगर हम इनके नजदीक से भी निकल जाते है तो भी हमारे कपड़ो मे बालो मे चिपक जाते है।  दिन रात चुभते रहते है । इसलिये निदाण के समय खासकर ये ध्यान रखा जाता है कि भुन्ट का एक भी पौधा खेत मे नही रहना चाहिए नही तो ये  काटने व लाटा लेने तक चुभते रहता है।
राजस्थानी मे एक कहावत है कि जो खासकर देवासियो मे प्रसिद्ध हैं  कि  "भुन्ट ठेट रो है या अधबीसलो"  "यानी  किसी के साथ मे आने वाले को कहा जाता है कि ये अन्त तक साथ चलेगा या आधे रास्ते से  ही वापस लौट जायेगा ।   

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