चरखा
मित्रो आजकल जो हम कपड़े पहनते है। वो तो लूम की मशीनो से तैयार किया जाता है लेकिन कुछ ही वर्ष पहले हाथो से सुत कातकर कपड़े तैयार किये जाते थे जो एक चरखा (अटीया) द्वारा रुई से कपड़ा बनाया जाता था और उसे हम आज भी खादी कहते है । चरखा एक हस्तचालित यंत्र है जिससे सूत तैयार किया जाता है। चरखा की शुरुआत कब तथा कैसे हुई ये तो पता नहीं है ,लेकिन अंग्रेज़ों के भारत आने से पहले भारत भर में चरखे और करघे का प्रचलन था। हमारे देश में 1500 ई. तक खादी और हस्तकला उद्योग पूरी तरह विकसित था।
भारत में चरखे का इतिहास बहुत प्राचीन होते हुए भी इसमें सुधार का काम महात्मा गांधी के जीवनकाल का ही हुआ था
मेरे घर पर भी तीन चरखे थे । मेरे बचपन के समय मेरी दादी व भुआ भेड़ की ऊन कातती थी । जिससे सर्दियो मे ओढने के पटुडा बनाया जाता था । अब दो चरखे तो उदाई की भेंट चढ़ गये है। सब खड़े चरखे ही थे। खड़े चरखे में एक बैठक, दो खंभे, एक फरई । और आठ पंक्तियों का दोनो तरफ चक्र होता है । मैने जितने भी चरखे देखे हैं जिसमे सब अलग अलग आकार के खड़े चरखे हैं। चरखे का व्यास लगभग 12 इंच से 24 इंच तक का व और ताकला की लंबाई अठारह उन्नीस इंच तक होती है।आजकल चरखे तो विलुप्त हो चुके है । सिर्फ फोटो देखकर ही रह जाते है । जब हम ये ताकला व चरखों को देखते हैं तो आश्चर्य होता है कि पहले के ज़माने के लोग कितने मेहनती थे।
चरखे पर एक भजन भी सुनते है कि चरखा रो भेद बता दे ए कातण वाली नार
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