*सुणलो कानजी*
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आठ तो पटराण्यां थारे
राधा रुकमणं राणीं।
अठै एक इक्कीस बरोबर
दिनभर खेंचाताणीं।
आप तो माखण मिसरी खांता
म्हैं खावां हां मेगी।
थारा मन री पूरी होगी अर
म्हारे मन में रेगी।
मात जसोदा मिक्सी लेली
नहीं माखण नहीं मटका।
आप तो लूट लूट कर खांता
म्हांनें आवे भटका।
नहीं रिया अब ऊंखल मूसल
नहीं रिया अब छींका।
दरसण दुरलभ होग्या असली
दूध दही अर घी का।
गोपियां मोडर्न होयगी
नहीं सुणे बे बंशी।
राजनिती में घुसबा लाग्या
थारा यादव वंशी।
आज थारी गायां रा बछडा
बूचडखानां जावे।
ब्रह्माजी नें केजो आंनें
ब्रह्मलोक ले जावे।
नहीं मांगे बो चांद खिलोणों
नहीं माखणं अर रोटी।
आज कन्हैयो नहीं केवे है
कबहुं बढेगी चोटी।
न तनसुख है न मनसुख है
सब धनसुख नें है चावे।
नवलख धेनु बेच नंदजी
डेरी अबै चलावे।
कुंजन वन मैदान होयग्या
नहीं कदम री छायां।
प्लास्टिक री थेल्यां चाबे
नंदगांव री गायां।
कृष्ण कानजी भारत मे थै एकर पाछा आज्यो।
मुरली मधुर बजाकर कान्हां
गीता रो ग्यान सुणाज्यो।
*जय श्री कृष्णा*
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