गुरुवार, 29 अगस्त 2019

कबीर दास जी के दोहे

।। कबीर के दोहे  ।।
गुरु मुरति आगे खडी,
दुतिया भेद कछु नाहि।
उन्ही कूं परनाम करि,
सकल तिमिर मिटी जाहिं॥

गुरु की आज्ञा आवै,
गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं,
आवागमन नशाय॥

भक्ति पदारथ तब मिलै,
जब गुरु होय सहाय।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो,
पूरण भाग मिलाय॥

गुरु को सिर राखिये,
चलिये आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को,
तीन लोक भय नहिं॥

गुरुमुख गुरु चितवत रहे,
जैसे मणिहिं भुवंग।
कहैं कबीर बिसरें नहीं,
यह गुरुमुख को अंग॥

कबीर ते नर अंध है,
गुरु को कहते और।
हरि के रूठे ठौर है,
गुरु रूठे नहिं ठौर॥

भक्ति-भक्ति सब कोई कहै,
भक्ति न जाने भेद।
पूरण भक्ति जब मिलै,
कृपा करे गुरुदेव॥

गुरु बिन माला फेरते,
गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन सब निष्फल गया,
पूछौ वेद पुरान॥

कबीर गुरु की भक्ति बिन,
धिक जीवन संसार।
धुवाँ का सा धौरहरा,
बिनसत लगै न बार॥

कबीर गुरु की भक्ति करु,
तज निषय रस चौंज।
बार-बार नहिं पाइए,
मानुष जनम की मौज॥

काम क्रोध तृष्णा तजै,
तजै मान अपमान।
सतगुरु दाया जाहि पर,
जम सिर मरदे मान॥

कबीर गुरु के देश में,
बसि जानै जो कोय।
कागा ते हंसा बनै,
जाति वरन कुल खोय॥

आछे दिन पाछे गए,
गुरु सों किया न हेत।
अब पछतावा क्या करै,
चिड़ियाँ चुग गईं खेत॥

अमृत पीवै ते जना,
सतगुरु लागा कान।
वस्तु अगोचर मिलि गई,
मन नहिं आवा आन॥

बलिहारी गुरु आपनो,
घड़ी-घड़ी सौ सौ बार।
मानुष से देवत किया,
करत न लागी बार॥

गुरु आज्ञा लै आवही,
गुरु आज्ञा लै जाय।
कहै कबीर सो सन्त प्रिय,
बहु विधि अमृत पाय॥

भूले थे संसार में,
माया के साँग आय।
सतगुरु राह बताइया,
फेरि मिलै तिहि जाय॥

बिना सीस का मिरग है,
चहूँ दिस चरने जाय।
बांधि लाओ गुरुज्ञान सूं,
राखो तत्व लगाय॥

गुरु नारायन रूप है,
गुरु ज्ञान को घाट।
सतगुरु बचन प्रताप सों,
मन के मिटे उचाट॥

गुरु समरथ सिर पर खड़े,
कहा कमी तोहि दास।
रिद्धि सिद्धि सेवा करै,
मुक्ति न छोड़े पास॥

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