मित्रो आज हम बैलगाड़ी के बारे मे कुछ बताने जा रहे है । बचपन मे हमने भी बैलगाड़ी चलाई थी । और उसका नतीजा आज भी है सामने के एक ऊपर का व एक निचे का दो दाँत टुट गये थे जब मै 6वी कक्षा मे पढता था । दीपावली के कुछ दिन बाद लाटा से चारा घर मे ला रहें थे तो चारा ज्यादा भरा होने के कारण खाली करते समय बैलगाड़ी को ऊपर करते हुये कन्ट्रोल नही कर पाया और बैलगाड़ी आगे से बैलो पीठ पर निचे गिर जाने से बैल भड़क कर मेरे ऊपर गिर गये और मुहँ पर चोट लग गयी।
बैलगाड़ी पर बैठने का बहुत शौक था चाचाजी के साथ मे तालाब पर पानी के लिये व खेत मे बाजरा , मूँग आदि लाने के लिये साथ मे जरुर जाते थे । मेरे दादाजी कहते थे कि पुराने समय में आवागमन मे हमारे लिये बैलगाड़ी ही एक साधन था । शादी के समय बैलो व बैलगाड़ी को बढीया से सजाते थे। शादीयो मे बैलगाड़ीयो की रेस के बारे मे भी कहते थे कि अब ऐसे नजारे देखने को कभी नही मिलेंगे। बैलगाड़ी के बाद हमारी शादी मे तो ट्रेकटर का जमाना आ गया था। लेकिन आजकल के समय में बारातों में अगर कारो का काफिला न दिखे तो तौहीन समझी जाती है
बैलगाड़ीया तो बारात से गायब ही नहीं,
बल्कि गाँवो में दिखना भी बंद हो गई है।
बैलगाड़ी पुराने समय में खेतीबाड़ी और कहीं आने जाने के लिए खूब प्रयोग की
जाती थी। लेकिन जब से खेती के काम के लिए ट्रैक्टर का उपयोग होने के बाद से जैसे बैलगाड़ी का पतन ही
शुरू हो गया था । गाँव मेंधीरे-धीरे लोगों ने जानवर पालने कम कर दिए,जिसके साथ-साथ बैलगाडिय़ों
को खींचने वाले बैल भी कम होते गए। और बैलगाड़ीया तो फोटो मे ही देख सकेंगे जिनके पास जो पुरानी बैलगाड़ी थीं उन्हीं
को ठोकपीट कर काम चलाते रहे। आज बैलगाड़ी बनाने वाले भी नही रहे है अब तो देखने को भी नही मिलती है गाँवों में लोग खेती का सारा काम ट्रैक्टर
से कराने लगे हैं।"अब तो इन बैलगाड़ी की जरुरत भी नही रही है।
पहले सामान ढोने के लिए बैलगाडिय़ों का
खूब इस्तेमाल होता था।
दादाजी कहते थे कि गाँव से बाजारों
तक अनाज लाना होया फिर मंडी तक
ले जाना हो , एक गाँव से करीबन
10 से 15 बैलगाडिय़ां एक साथ एक
कतार में निकलती थी।यह सफर चार से पांच दिन तक चलता था।रास्ते में रुक कर खाना-पीना खाने
के बाद सफर फिर शुरू हो जाता था । लेकिन आज माल ढोने के लिए छोटे वाहन टेम्पो पिकप, मेटाडोर आदि
आ जाने से भी बैलगाडिय़ों की जरुरत भी
नही रही है। "पहले और आज में बहुत फर्क आ गया है। आज के दौर में पिकप और अन्य छोटे
टेम्पो माल ढोने वाले वाहनों के ज्यादा
चलने से बैलगाडिय़ों का चलना
कम बन्द हो गया है। जितना समय बैलगाड़ी से जाने पर चार पांच दिन लगते है उतनी दूर तो ये फर्राटा भरती गाडिय़ां कुछ ही घंटो में पहुंच जाती है । इसी वजह से हमलोगों को आज कल ये बैलगाड़ीया नजर नही आ रही है ।
शनिवार, 31 अगस्त 2019
विलुप्त होती बैलगाड़ी
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